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जामुन का पेड़

कृष्ण चंदर

जामुन का पेड़

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    स्टोरीलाइन

    जामुन का पेड़ हमारी राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य है। एक आदमी तूफ़ान में जामुन के पेड़ के नीचे दब जाता है। अब उसे बचाने के लिए पेड़ काटा जाए या न काटा जाए, इसी सवाल को सुलझाने के लिए प्रशासन और उसके कारिंदे इस की तरह की कार्यशैली अपनाते हैं कि आदेश आने तक व्यक्ति की मौत हो जाती है।

    रात को बड़े ज़ोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरियट के लाॅन में जामुन का एक दरख़्त गिर पड़ा। सुब्ह जब माली ने देखा तो उसे मा'लूम पड़ा कि दरख़्त के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।

    माली दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया। चपरासी दौड़ा-दौड़ा क्लर्क के पास गया। क्लर्क दौड़ा-दौड़ा सुपरिटेंडेंट के पास गया। सुपरिटेंडेंट दौड़ा-दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में गिरे हुए दरख़्त के नीचे दबे हुए आदमी के गिर्द मजमा इकट्ठा हो गया।

    “बेचारा! जामुन का पेड़ कितना फलदार था।” एक क्लर्क बोला।

    “इसकी जामुन कितनी रसीली होती थीं।” दूसरा क्लर्क बोला।

    “मैं फलों के मौसम में झोली भर के ले जाता था। मेरे बच्चे इसकी जामुनें कितनी ख़ुशी से खाते थे।” तीसरे क्लर्क ने तक़रीबन आब-दीदा होकर कहा।

    “मगर ये आदमी?” माली ने दबे हुए आदमी की तरफ़ इशारा किया।

    “हाँ, यह आदमी!” सुपरिटेंडेंट सोच में पड़ गया।

    “पता नहीं ज़िंदा है कि मर गया!” एक चपरासी ने पूछा।

    “मर गया होगा। इतना भारी तना जिनकी पीठ पर गिरे, वह बच कैसे सकता है!” दूसरा चपरासी बोला।

    “नहीं मैं ज़िंदा हूँ!”, दबे हुए आदमी ने ब-मुश्किल कराहते हुए कहा।

    “ज़िंदा है!”, एक क्लर्क ने हैरत से कहा।

    “दरख़्त को हटाकर इसे निकाल लेना चाहिए।” माली ने मशवरा दिया।

    “मुश्किल मा'लूम होता है।” एक काहिल और मोटा चपरासी बोला। “दरख़्त का तना बहुत भारी और वज़नी है।”

    “क्या मुश्किल है?” माली बोला। “अगर सुपरिटेंडेंट साहब हुक्म दे तो अभी पंद्रह-बीस माली, चपरासी और क्लर्क ज़ोर लगाकर दरख़्त के नीचे से दबे आदमी को निकाल सकते हैं।”

    “माली ठीक कहता है।” बहुत-से क्लर्क एक साथ बोल पड़े। “लगाओ ज़ोर, हम तैयार हैं।”

    एकदम बहुत से लोग दरख़्त को काटने पर तैयार हो गए।

    “ठहरो!”, सुपरिटेंडेंट बोला, “मैं अंडर-सेक्रेटरी से मशवरा कर लूँ।”

    सुपरिटेंडेंट अंडर-सेक्रेटरी के पास गया। अंडर-सेक्रेटरी डिप्टी सेक्रेटरी के पास गया। डिप्टी सेक्रेटरी जॉइन्ट सेक्रेटरी के पास गया। जॉइन्ट सेक्रेटरी चीफ सेक्रेटरी के पास गया।

    चीफ सेक्रेटरी ने जॉइन्ट सेक्रेटरी से कुछ कहा। जॉइन्ट सेक्रेटरी ने डिप्टी सेक्रेटरी से कुछ कहा। डिप्टी सेक्रेटरी ने अंडर सेक्रेटरी से कुछ कहा। एक फ़ाइल बन गई।

    फ़ाइल चलने लगी। फ़ाइल चलती रही। इसी में आधा दिन गुज़र गया। दोपहर को खाने पर दबे हुए आदमी के गिर्द बहुत भीड़ हो गई थी। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कुछ मनचले क्लर्कों ने मामले को अपने हाथ में लेना चाहा।

    वह हुकूमत के फ़ैसले का इंतिज़ार किए बग़ैर दरख़्त को ख़ुद से हटाने का तहैया कर रहे थे कि इतने में सुपरिटेंडेंट फ़ाइल लिए भागा-भागा आया, बोला, “हम लोग ख़ुद से इस दरख़्त को यहाँ से हटा नहीं सकते। हम लोग महकमा-ए-तिजारत से मुतअ'ल्लिक़ हैं और यह दरख़्त का मामला है जो महकमा-ए-ज़राअत की तहवील में है। इसलिए मैं इस फ़ाइल को अर्जेन्ट मार्क करके महकमा-ए-ज़राअत में भेज रहा हूँ। वहाँ से जवाब आते ही इस को हटवा दिया जाएगा।”

    दूसरे दिन महकमा-ए-ज़राअत से जवाब आया कि दरख़्त हटवाने की ज़िम्मेदारी महकमा-ए-तिजारत पर आएद होती है। यह जवाब पढ़कर महकमा-ए-तिजारत को ग़ुस्सा गया। उन्होंने फ़ौरन लिखा कि पेड़ों को हटवाने या हटवाने की ज़िम्मेदारी महकमा-ए-ज़राअत पर आएद होती है। महकमा-ए-तिजारत का इस मामले से कोई तअल्लुक़ नहीं है।

    दूसरे दिन भी फ़ाइल चलती रही। शाम को जवाब भी गया। “हम इस मामले को हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेंट के सुपुर्द कर रहे हैं क्योंकि यह एक फलदार दरख़्त का मामला है और एग्रीकल्चरल डिपार्टमेंट सिर्फ़ अनाज और खेतीबाड़ी के मामलों में फ़ैसला करने का मजाज़ है। जामुन का पेड़ एक फलदार पेड़ है इसलिए पेड़ हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेंट के दायरा-ए-इख़्तियार में आता है।”

    रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया हालाँकि लॉन के चारों तरफ़ पुलिस का पहरा था कि कहीं लोग क़ानून को अपने हाथ में ले के दरख़्त को ख़ुद से हटवाने की कोशिश करें। मगर एक पुलिस काॅन्स्टेबल को रहम गया और उसने माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाज़त दे दी।

    माली ने दबे हुए आदमी से कहा, “तुम्हारी फ़ाइल चल रही है। उम्मीद है कि कल तक फ़ैसला हो जाएगा।”

    दबा हुआ आदमी कुछ बोला।

    माली ने पेड़ के तने को ग़ौर से देखकर कहा, “हैरत गुज़री कि तना तुम्हारे कूल्हे पर गिरा। अगर कमर पर गिरता तो रीढ़ की हड्डी टूट जाती।”

    दबा हुआ आदमी फिर भी कुछ बोला।

    माली ने फिर कहा, “तुम्हारा यहाँ कोई वारिस हो तो मुझे उसका अता-पता बताओ। मैं उसे ख़बर देने की कोशिश करूँगा।”

    “मैं ला-वारिस हूँ।” दबे हुए आदमी ने बड़ी मुश्किल से कहा।

    माली अफ़सोस ज़ाहिर करता हुआ वहाँ से हट गया।

    तीसरे दिन हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेंट से जवाब गया। बड़ा कड़ा जवाब था और तंज़-आमेज़। हॉर्टीकल्चरल डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी अदबी मिजाज़ का आदमी मा'लूम होता था।

    उसने लिखा था, “हैरत है, इस समय जब “दरख़्त उगाओ” स्कीम बड़े पैमाने पर चल रही है, हमारे मुल्क़ में ऐसे सरकारी अफ़सर मौज़ूद हैं जो दरख़्त काटने का मशवरा देते हैं, वह भी एक फलदार दरख़्त को! और फिर जामुन के दरख़्त को! जिस के फल अवाम बड़ी रग़बत से खाते हैं! हमारा महकमा किसी हालत में इस फलदार दरख़्त को काटने की इज़ाजत नहीं दे सकता।”

    “अब क्या किया जाए?”, एक मनचले ने कहा। “अगर दरख़्त काटा नहीं जा सकता तो इस आदमी को काटकर निकाल लिया जाए! यह देखिए, उसी आदमी ने इशारे से बताया। अगर इस आदमी को बीच में से, या'नी धड़ के मक़ाम से काटा जाए तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा और आधा आदमी उधर से बाहर जाएगा, और दरख़्त वहीं का वहीं रहेगा।”

    “मगर इस तरह से तो मैं मर जाऊँगा!” दबे हुए आदमी ने एहतिजाज किया।

    “यह भी ठीक कहता है!”, एक क्लर्क बोला।

    आदमी को काटने वाली तजवीज़ पेश करने वाले ने पुर-ज़ोर-एहतिजाज (कड़ा विरोध) किया, “आप जानते नहीं हैं। आजकल प्लास्टिक सर्जरी के ज़रिए धड़ के मक़ाम पर इस आदमी को फिर से जोड़ा जा सकता है।”

    अब फ़ाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया गया। मेडिकल डिपार्टमेंट ने फ़ौरन इस पर एक्शन लिया और जिस दिन फ़ाइल मिली, उसने उसी दिन इस महकमे का सबसे क़ाबिल प्लास्टिक सर्जन तहक़ीक़ात के लिए भेज दिया।

    सर्जन ने दबे हुए आदमी को अच्छी तरह टटोलकर, उसकी सेहत देखकर, ख़ून का दबाव, साँस की आमद-ओ-रफ़्त, दिल और फेफड़ों की जाँच कर के रिपोर्ट भेज दी कि, “इस आदमी का प्लास्टिक सर्जरी का ऑपरेशन तो हो सकता है और ऑपरेशन कामयाब भी हो जाएगा, मगर आदमी मर जाएगा।”

    लिहाज़ा यह तज्वीज़ भी रद्द कर दी गई।

    रात को माली ने दबे हुए आदमी के मुँह में खिचड़ी के लुक़मे डालते हुए उसे बताया, “अब मामला ऊपर चला गया है। सुना है कि सेक्रेटेरियट के सारे सेक्रेटेरियों की मीटिंग होगी। इसमें तुम्हारा केस रखा जाएगा। उम्मीद है सब काम ठीक हो जाएगा।”

    दबा हुआ आदमी एक आह भरकर आहिस्ता से बोला, “हमने माना कि तग़ाफुल करोगे लेकिन, ख़ाक़ हो जाएँगे हम, तुमको ख़बर होने तक!”

    माली ने अचंभे से मुँह में उँगली दबाई। हैरत से बोला, “क्या तुम शाइ'र हो?”

    दबे हुए आदमी ने आहिस्ता से सिर हिला दिया।

    दूसरे दिन माली ने चपरासी को बताया। चपरासी ने क्लर्क को और क्लर्क ने हेड-क्लर्क को। थोड़े ही अरसे में सेक्रेटेरियट में यह बात फैल गई कि दबा हुआ आदमी शाइ'र है।

    बस फिर क्या था। लोग जौक़-दर-जौक़ शाइ'र को देखने के लिए आने लगे। इसकी ख़बर शहर में फैल गई। और शाम तक मुहल्ले-मुहल्ले से शाइ'र जम'अ होना शुरू' हो गए। सेक्रेटेरियट का लॉन भाँत-भाँत के शाइ'रों से भर गया। सेक्रेटेरियट के कई क्लर्क और अंडर-सेक्रेटरी तक, जिन्हें अदब और शाइ'र से लगाव था, रुक गए।

    कुछ शाइ'र दबे हुए आदमी को अपनी ग़ज़लें और नज़्में सुनाने लगे। कई क्लर्क उससे अपनी ग़ज़लों पर इस्लाह लेने के लिए मुसिर होने लगे।

    जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी शाइ'र है तो सेक्रेटेरियट की सब-कमेटी ने फ़ैसला किया कि चूँकि दबा हुआ आदमी एक शाइ'र है लिहाज़ा इस फ़ाइल का तअल्लुक़ एग्रीकल्चरल डिपार्टमेंट से है, हाॅर्टीकल्चरल डिपार्टमेंट से बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ कल्चरल डिपार्टमेंट से है।

    कल्चरल डिपार्टमेंट से इस्तिदआ (गुज़ारिश) की गई कि जल्द से जल्द इस मामले का फ़ैसला करके बद-नसीब शाइ'र को इस शजर-ए-सायादार से रिहाई दिलाई जाए।

    फ़ाइल कल्चरल डिपार्टमेंट के मुख़्तलिफ़ शोबों से गुज़रती हुई अदबी अकादमी के सेक्रेटरी के पास पहुँची। बेचारा सेक्रेटरी उसी वक़्त अपनी गाड़ी में सवार हो कर सेक्रेटेरियट पहुँचा और दबे हुए आदमी से इंटरव्यू लेने लगा।

    “तुम शाइ'र हो?” उसने पूछा।

    “जी हाँ।” दबे हुए आदमी ने जवाब दिया।

    “क्या तख़ल्लुस करते हो?”

    “अवस।”

    “अवस!” सेक्रेटरी ज़ोर से चीख़ा। “क्या तुम वही हो जिसका मजमूआ’-ए-कलाम “अवस के फूल” हाल ही में शाया हुआ है?”

    दबे हुए शाइ'र ने इस बात में सिर हिलाया।

    “क्या तुम हमारी अकादमी के मेंबर हो?” सेक्रेटरी ने पूछा।

    “नहीं!”

    “हैरत है!” सेक्रेटरी ज़ोर से चीख़ा। “इतना बड़ा शाइ'र! “अवस के फूल” का मुसन्निफ़! और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है! उफ़, उफ़! कैसी ग़लती हो गई हमसे! कितना बड़ा शाइ'र और कैसे गोशा-ए-गुमनामी में दबा पड़ा है!”

    “गोशा-ए-गुमनामी में नहीं बल्कि एक दरख़्त के नीचे दबा हुआ… ब-राह-ए-करम मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिए।”

    “अभी बंदोबस्त करता हूँ।” सेक्रेटरी फ़ौरन बोला और फ़ौरन जाकर उसने अपने महकमे में रिपोर्ट पेश की।

    दूसरे दिन सेक्रेटरी भागा-भागा शाइ'र के पास आया और बोला, “मुबारक हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकादमी ने तुम्हें अपनी मर्क़ज़ी कमेटी का मेंबर चुन लिया है। यह लो परवाना-ए-इंतिख़ाब!”

    “मगर मुझे इस दरख़्त के नीचे से तो निकालो।” दबे हुए आदमी ने कराहकर कहा। उसकी साँस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और उसकी आँखों से मा'लूम होता था कि वह शदीद तशन्नुज और करब में मुब्तिला है।

    “यह हम नहीं कर सकते।” सेक्रेटरी ने कहा। “जो हम कर सकते थे, वह हमने कर दिया है। बल्कि हम तो यहाँ तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ तो तुम्हारी बीवी को वज़ीफा दिला सकते हैं। अगर तुम दरख़्वास्त दो तो हम यह भी कर सकते हैं।”

    “मैं अभी ज़िंदा हूँ।” शाइ'र रुक-रुककर बोला। “मुझे ज़िंदा रखो।”

    “मुसीबत यह है”, सरकारी अकादमी का सेक्रेटरी हाथ मलते हुए बोला, “हमारा महकमा” सिर्फ़ कल्चर से मुतअ'ल्लिक़ है। इसके लिए हमने “फॉरेस्ट डिपार्टमेंट” को लिख दिया है। “अर्जेंट” लिखा है।

    शाम को माली ने आकर दबे हुए आदमी को बताया कि कल फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के आदमी आकर इस दरख़्त को काट देंगे और तुम्हारी जान बच जाएगी।

    माली बहुत ख़ुश था कि गो दबे हुए आदमी की सेहत जवाब दे रही थी मगर वह किसी-न-किसी-तरह अपनी ज़िंदगी के लिए लड़े जा रहा है। कल तक… सुब्ह तक… किसी किसी तरह इसे ज़िंदा रहना है।

    दूसरे दिन जब फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के आदमी आरी-कुल्हाड़ी लेकर पहुँचे तो उनको दरख़्त काटने से रोक दिया गया। मा'लूम यह हुआ कि महकमा-ए-ख़ारजा से हुक्म आया कि इस दरख़्त को काटा जाए।

    वज्ह यह थी कि इस दरख़्त को दस साल पहले हुकूमत-ए-पिटोनिया के वज़ीर-ए-आ'ज़म (प्रधानमंत्री) ने सेक्रेटेरियट के लॉन में लगाया था। अब यह दरख़्त अगर काटा गया तो इस अम्र का शदीद अंदेशा था कि हुकूमत-ए-पिटोनिया से हमारे तअ'ल्लुक़ात हमेशा के लिए बिगड़ जाएँगे।

    “मगर एक आदमी की जान का सवाल है!” एक क्लर्क ग़ुस्से से चिल्लाया।

    “दूसरी तरफ़ दो हुकूमतों के तअ'ल्लुक़ात का सवाल है।” दूसरे क्लर्क ने पहले क्लर्क को समझाया। “और यह भी तो समझो कि हुकूमते-पिटोनिया हमारी हुकूमत को कितनी इमदाद देती है। क्या हम उनकी दोस्ती की ख़ातिर एक आदमी की ज़िंदगी को भी कुर्बान नहीं कर सकते?”

    “शाइ'र को मर जाना चाहिए।”

    “बिला-शुबा।”

    अंडर-सेक्रेटरी ने सुपरिटेंडेंट को बताया। “आज सुब्ह वज़ीर-ए-आ'ज़म बाहर-मुल्कों के दौरे से वापस गए हैं। आज चार बजे महकमा-ए-ख़ारजा इस दरख़्त की फ़ाइल उनके सामने पेश करेगा। जो वह फ़ैसला देंगे वही सबको मंज़ूर होगा।”

    शाम पाँच बजे ख़ुद सुपरिटेंडेंट शाइ'र की फ़ाइल ले कर उसके पास आया। “सुनते हो?” आते ही ख़ुशी से फ़ाइल हिलाते हुए चिल्लाया, “वज़ीर-ए-आ'ज़म ने दरख़्त को काटने का हुक्म दे दिया है और इस वाक़िए की सारी बैनुल-अक़्वामी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले ली है। कल वह दरख़्त काट दिया जाएगा और तुम इस मुसीबत से छुटकारा हासिल कर लोगे।”

    “सुनते हो? आज तुम्हारी फ़ाइल मुकम्मल हो गई!” सुपरिटेंडेंट ने शाइ'र के बाजू को हिलाकर कहा। मगर शाइ'र का हाथ सर्द था। आँखों की पुतलियाँ बेजान थीं और चींटियों की एक लंबी क़तार उसके मुँह में जा रही थी।

    उसकी ज़िंदगी की फ़ाइल भी मुकम्मल हो चुकी थी।

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