Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

पुरानी शराब नई बोतल

मुमताज़ मुफ़्ती

पुरानी शराब नई बोतल

मुमताज़ मुफ़्ती

MORE BYमुमताज़ मुफ़्ती

    स्टोरीलाइन

    यह ऐसी लड़की की कहानी है जो मॉर्डन ख़यालात की है। उसकी कई अफे़यर रहे हैं। मगर कुछ अरसा चलने के बाद सब टूट गए हैं, क्योंकि वह मोहब्बत को वादों-इरादों से ज़्यादा शारीरिक रूप में तवज्जो देती है। एमजी के साथ उसका अफे़यर भी इसी वजह से टूटा था, जिसके साथ बाद में उसकी सहेली सफ़्फ़ो ने शादी कर ली थी।

    बाई की आवाज़ सुनकर नमी ने आँखें खोल दें। सामने हाथ में सीटू थू स़्कोब लटकाए उस की सहेली सफ़ो खड़ी थी।

    हाएं उस वक़्त बिस्तर में। सफ़ो ने पूछा।

    बिस्ट लीज़िंग। इन बैड।

    मैं तो तुझे लेने आई हूँ।

    कहाँ?

    पिक्चर पर।

    क्यों?

    बुरी चार्मिन्ग पिक्चर लगी है। बुरी मुश्किल से छुट्टी मिली है। मुझे।

    मुश्किल से क्यों?

    भई फाईनल रहे। छुट्टी कैसे दें। चलो उट्ठो।

    ऊनाओं। मूड नहीं।

    आज आख़िरी दिन है पिक्चर उतर जाएगी।

    उतर जाये।

    पता है ली मेजर है इस में ऊनाओं आज ली मेजर भी इन नहीं।

    कौन इन है आज। सफ़ो मुस्कुराई।

    आज तो सिर्फ नमी इन है।

    वैसे लगती तो आउट हो। नाकड आउट।

    नानिसस नमी ने सफ़ो का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर खींच लिया। बैठो बातें करते हैं। इवनिंग शो देखेंगे। आनसट।

    घर वाले कहाँ है। सफ़ो ने पूछा।

    वो शहज़ादी आई तही। पता नहीं कहा ले गई है।

    कौन शहज़ादी?

    तुम नहीं जानती उसे।

    उन्हों।

    सभी जानते हैं उसे। बड़ी लाऊड वूमन है। इतनी भड़कीली है कि देखकर झुरझुरी आती है। सत रंगा लिबास पहनती है झिलमिल टाइप।

    वही तो नहीं जो गुट टू गेदर सैनिक बार पर मिली थी हमें? जब तो में और अनवर वहां बीफ बर्गर खा रहे थे। याद नहीं अनवर ने उसे देखकर कहा था। ये तो निरी लिप्स ही लिप्स और हिप्स ही हिप्स है।

    हाँ वही। नमी चलाई। वही तो है।

    तुम्हारे घर कैसे पहुंची?

    डैडी एक रोज़ उंगली लगा कर ले आए थे अब ख़ुद आने लगी। अच्छा तो डैडी ने उंगली लगा रखी है।

    उन्हों अब तो वो डैडी को उंगली लगाए फुर्ती है।

    तेरे डैडी भी समझ नहीं आते। सफ़ो मुस्कुराई।

    ख़्वाह-मख़ाह बिलकुल ट्रांसपैरंट हैं। इंद्र झाँके बग़ैर देख लू। उनका एक ना एक अफ़ईर तो चलता ही रहता है।

    उन्हों अफ़ईर नहीं। उन्हें सिर्फ इस बात का शौक़ है कि कोई उंगली लगाए फिरे। आगे कुछ नहीं। चाहे कोई लगाए?

    कोई हो यक-रंगी हो। सत-रंगी हो। बद रंगी हो। डैडी बड़े जज़बे में लत-पत रहते हैं। बस ज़रा छेड़ दो और खुल गया।

    तुम्हारी मम्मी भी साथ गई हैं किया?हाँ वो हमेशा साथ जाती हैं सुपर वीज़न के लिए। क्या मतलब? सफ़ो ने पूछा। मम्मी इस डर के मारे साथ चल पड़ती हैं कि कुछ हो ना जाये। सफ़ो ने क़हक़हा मारा जैसे रोक

    ही लेगी। हाँ अपनी तरफ़ से तो पूरा ज़ोर लगाती हैं। पूर मम्मी।

    मतलब ये कि बात नहीं बनती। बात कैसे बने? डैडी ताज़ा के क़ाइल हैं। टिंड के नहीं और मम्मी को बासी हो जाने में कमाल हासिल है। दरअसल डैडी से इशक़ है। अपना सब कुछ उनके चरणों में डाल रखा है। सब कुछ चरणों में डाल दो तो दूसरा बेनयाज़ हो जाता है फिर आहें भरो। इंतिज़ार करो।

    आई हैट सच्च साब स्टिफ़। ये बात तो पुराने ज़माने में चलती थी। अब नहीं चलती। और जो अनवर से बात चल रही थी तुम्हारी वो।

    आई लाईकड अनवर। ऑल राइट। बहुत अच्छा पीनईन था। बड़ा एग्री अबुल लुक्स भी तो थे। लुक्स की कौन परवाह करता है आजकल दे डोंट मीटर। पुराने ज़माने में लोग परीचेहरा ढ़ूंडा करते थे। सोहनी पर जान देते थे। यूसुफ़ की तरफ़ देखकर उंगलियां चीर लेते थे अब वो बातें गईं। उज़्मा तो कहती थी। नमी अज़ सटरकन विद लू फ़ार अनवर।

    गुड लार्ड नाट मी। भई मुझसे ये नहीं होता कि अपने जज़बा की भट्टी को दूं देती रहूं देती रहूं और जब भानहड़ मच जाये तो बैठ कर रोऊँ। आई ऐम नाट दी साबिंग ऐंड साविंग टाइप। मैं हर हद तोड़ सकती हूँ सफ़ो जा सकती हूँ लेकिन इतनी दूर नहीं कि वापसी ना-मुम्किन हो जाये। लू तो लैंड आफ़ नवेद में ले जाती है। हीओ गुड टाइम। बट लू... नौ नौ... नैवर। भई इस लिहाज़ से में तो माडर्न नहीं। सफ़ो ने कहा। फिर वो नमी के क़रीब हो गई। कुछ पता है वो आँखें मटका कर बोली। तेरे पड़ोस में डाक्टर नजमी के हाँ कौन आया हुआ है?

    लगता है ग्लैक्सो बेबी हो। गहरे भूरे बालों का इतना बड़ा ताज गोल बिखरा रंग और आँखों में लाल डोरे। सफ़ो ने यूं सीना थाम कर कहा जैसे हलचल भी हो। अभी की बात कर रही हो? सफ़ो ने पूछा। तो उसे जानती है?हाँ वो एक महीने हो गए उसे आए हुए। मिलने मिलाने के लिए आया है किया? उन्हों पोस्टिंग हुई है यहां। अलाटमैंट की इंतिज़ार में बैठा है उधर। कोई रीलीटो है डाक्टर नजमी का?

    कैसा लगता है तुम्हें? सफ़ो ने फिर सेना सँभाला। अच्छा-ख़ासा है नमी ने बेपर्वाई से कहा। अब बनू नहीं नमी। मैं तो नहीं बनती। ता बनता है पता नहीं ख़ुद को क्या समझता है। है नमी। सफ़ो ने फिर सेना सँभाला। पिट चक शर्ट। औरैंज सड़ा अकीड कोट और शॉकिंग। ग्रीन टाई। मैं तो देखकर भौंचक्की रह गई स्टैंड। हाँ चार्मिन्ग तो है। नमी ने कहा। मसली। चार्मिन्ग अज़ नौ वर्ड फ़ार इट। कभी मिली हो इस से?रोज़ जाता है। नमी ने सर चढ़ा रखा है। और तुमने? उन्हों? तुमसे भी मिलता है किया? हाँ। फिर सफ़ो का तनफ़्फ़ुस तेज़ हो गया। फिर नमी आँखें बंद कर के पड़ गई। सारा झगड़ा इस फिर। का था। इसी फिर की वजह से नमी उस रोज़ बिस्तर में पड़ी लीज़ कर रही थी। लीज़ तो ख़ैर बहाना था। लीज़ तो उस वक़्त होता है जब अमन हो। इंद्र झगड़े की हंडिया पक रही हो तो अमन कैसा। और अमन ना हो तो लीज़ कैसा। माना कि झगड़ा दिल की अथाह गहिराईयों में था जहां के शोर ग़ौग़ा की आवाज़ ज़हन तक नहीं पहुँचती।

    मुश्किल ये है कि ज़हन तक आवाज़ ना पहुंचे तो बात और उलझ जाती है ख़ुद को तसल्लीयां देना भी मुम्किन नहीं रहता। बहर-ए-हाल सारा झगड़ा इस फिर का था। नमी का दिल पूछ रहा था। फिर। इस की नहीफ़ आवाज़ सुनकर ज़हन कह रहा था फिर। का सवाल ही पैदा नहीं होता जब सिरे से कोई बात ही नहीं तो फिर कैसा?

    नमी एक माडर्न लड़की थी। माडर्न घर में परवरिश पाई थी। माडर्न माहौल में जवान हुई थी। उसे अपने माडर्न इज़म से इशक़ था इशक़। चाहे कुछ हो जाये माडर्न इज़म हाथ से ना जाये। इस का दिल फिर-फिर कर रहा था। कराह रहा था। सिसकियाँ भर रहा था। इस वक़्त नमी की ज़िंदगी की एक वाहिद प्राब्लम थी कि दिल की आवाज़ ना सुने, सुनाई दे तो उन-सुनी कर दे। इस सिर्फ एक हल था कि ज़हन से चिपट जाये और क़रीब और क़रीब जिस तरह जोंक ख़ून की रग से चिमट जाती है। नमी में ज़हन और दिल की कश्मकश पहले कभी इस शिद्दत से नहीं उभरी थी। नमी ने ज़िंदगी में चंद एक अफ़ीर चलाए थे

    सबसे पहले सईद था। इन दिनों वो बी में पढ़ती थी। वो एक दुबला पुतला मुनहनी लड़का था। जब भी कॉलेज में नमी उस के सामने आती तो इस की आँखें फट जातीं मुँह खुला का खुला रह जाता। और वो गोया पत्थर का बन जाता। फिर हवासगुम क़ियास ग़म वो बटर बटर नमी को देखता रहता। हती कि सबको पता चल जाता कि वो देख रहा है। लड़के फब्तियां कसते मज़ाक़ उड़ाते लेकिन उसे ख़बर ही ना होती। पहले तो नमी को सईद पर बड़ा तैश आता रहा कि ये क्या ड्रामा लगा कर खड़ा हो जाता है। फिर उसे इस तरस आने लगा। नम कम पोप देखने का सलीक़ा भी नहीं आता। बे-शक देखे, कौन मना करता है लेकिन देखने का अंदाज़ तो सीखे।

    दूसरा जे उवैस था। उधेड़ उम्र। डैडी का हमकार। उसे देखने का सलीक़ा था उतना सलीक़ा कि नज़र भर कर देखता ही ना था। बात हुई ना। भला देखना मक़सूद होता है किया। लोरज़ भी कितने अहमक़ होते हैं। बटर बटर देखने लगते हैं। जैसे देखना मक़सूद हो। या शायद उतना देखते हैं कि भूल जाते हैं कि मक़सद किया था। देखना ख़ुद रास्ते में रुकावट बन जाता है। चलो मान लिया कि देखना तआरुफ़ के लिए ज़रूरी है लेकिन एंटी मेस्सी मक़सूद हो तो।

    फिर वो अनवर था। कितना अच्छा कम पीनीन था। लेकिन अकेले में कबूतर की सी आँखें बना कर बैठ जाता। भई कोई बात करो जो छेड़े दे कोई जोक जो गुदगुदा दे हिंसा दे। कोई मंत्र फूंको कि कली खुल कर गुलाब बन जाये। भला घुटने टेकने से किया होता है। ख़्वाह-मख़ाह का स्कैंडल। मुहब्बत में यही तो ऐब है शोर ग़ौग़ा मचा देती है।

    नमी के अफ़ीरज़ तो बहुत थे। अब उन्हें गँवाने का फ़ायदा। बस थे दो एक तो ख़ासी दूर ले गए थे। इन तितलीयों ने नमी का कली से फूल बना दिया था। ऐसा फूल जो भंवरो को बैठने नहीं देता। लेकिन उड़ाता भी नहीं। तैत्तरीइयों की और बाती थी। वो भुन भुन कर शोर नहीं मचाती थी धूल नहीं उड़ाती थीं। लेकिन इस ग्लैक्सो बेबी एमजी ने आकर मुश्किल पैदा कर दी थी।

    पहले दिन तो बाओ निडरी वाल से हेलो हेलो हो गया। एमजी ने अपना तआरुफ़ करा दिया। दूसरे दिन वो बड़ी बे-तकल्लुफ़ी से घर गया। और नमी के छोटे भाई इमरान से जुड़ी खेलने लगा। मम्मी गईं तो उनसे गप्पें हाँकने लगा। मम्मी को वो लिफ़्ट दी वो लिफ़्ट कि उन्हें कभी मिली ना थी। वो बौखला गईं फिर नमी के पास बैठा। बातचीत छेड़ दी। बातें तो ख़ैर कलचरड थीं। लेकिन निगाहें बिलकुल ही करोड़ चौंका देने वाली। चुभने वाली। बड़ी एन यू यवाल। भला पास बैठ कर कबूतर सी आँखें बनाने का मतलब एडिट।

    गलीड आई तो ख़ैर हुआ ही करती है। वो तो यूं है कि दूर बैठ कर रूटीन टॉक करते करते एक दम गलीड आई के ज़ोर पर जंप लगाया और गोद में बैठे ज़रा सी गुदगुदी और फिर वापिस अपनी सीट पर दूर जा बैठे ये तो जदीद अंदाज़ है ना। अपनी तवज्जा जताई। गुड टाइम की ख़ाहिश को आँखों में सजाया और फिर अज़ पोदर हो कर ऐट अज़ बैठ गए। लेकिन मुसलसल आड़ी तिरछी आँखें बना कर बैठे रहना। नान संस्। गलीड आई तो गुड टाइम की दावत होती है ना। उर आँखें बना कर बैठे रहना तो गोया इस बात की रट लगाए रखना हुआ कि देख मैं तेरे बिना करना दुखी हूँ। वो मुसबत बात और ख़ास नेगेटिव।

    हाँ तो एमजी वैसे तो बड़ा आदमी कहाँ आदमी नुमा लड़का। उठना बैठना फिरना बोलना सब कलचरड थे बस इक ज़रा आँखें बनाए लगी होती थी। सच्ची बात तो ये है कि नमी पहले रोज़ ही एमजी को देखकर भौंचक्की सी रह गई। उसे यूं लगा जैसे उस का आईडीयल कपड़े पहन कर सामने आकर खड़ा हो गया। अब इस अचंभे का इज़हार ख़ुद कैसे करती जो धरती से चाहत रखती तो मुहब्बत की राह पर गामज़न हो जाती। इस का इंतिज़ार करती। आहें गिनती। ओलड मेंशन, ग़ैर मुहज़्ज़ब दक़यानूसी बातें।

    एक प्यारी स्मार्ट सी ख़ूबसूरत मॉडलज़ की माडर्न हो कर दक़यानूसी क्यों बने। इस लिए नमी सब कुछ पी गई उर यूं तन कर बैठ गई, कि कुछ हुआ ही ना हो। बहर-तौर एमजी अपना चक्कर चला गया था। अगर

    इस में आँखें बनाने की बूत होती तो यक़ीनन अफ़ीर चल जाता। अफ़ीर तो ख़ैर अब भी चल पड़ा था। लेकिन वो ख़ालिसता तफ़रीही ना थी। अगर ख़ालिस तफ़रीही ना हो तो अफ़ीर कैसा। इस के बाद एमजी ने

    एक और क़ियामत ढाई। फ़रस्ट फ़्लोर पर नमी की खिड़की के ऐन सामने कमबख़्त अपनी कुर्सी दरवाज़े में बिछा कर नमी की खिड़की पर निगाहों की चांद मारी शुरू कर दी। इस पर नमी और भी चिड़ गई। लू भुला निगाहों की चांद मारी की ज़रूरत ही किया है। और किया। भई जो नाक को हाथ लगाना हो तो सीधा हाथ लगाओ। हाथ को सिरके पीछे से घुमा कर लाने की क्या ज़रूरत है।

    दो एक मर्तबा उसने खिड़की से झाँका और उन जाने में झेंप गई तो उसे ग़ुस्सा आया। भला झेपने की क्या ज़रूरत। इस को इतना नहीं पिता कि यूं देखने से बात बनती नहीं बिगड़ती है। वो इतमीनान से टेक लगा कर किताब पढ़ने लगी। लेकिन चंद लम्हों के बाद किताब के सफ़े से दो आँखें उभरें। फिर-फिर... करने लगता और वो फिर से झेंप जाती।

    फिर एक रोज़ एमजी उसे फ़िल्म पर ले गया। शायद वो इनकार कर देती लेकिन नमी का छोटा भाई इमरान ज़िद करने लगा। मम्मी उनकी तरफ़-दार हो गई। आख़िर क्या हर्ज है। फ़िल्म देखने में वाक़ई कोई हर्ज ना था। सारा फ़साद तो निगाहों का था ना। सिनेमा हाल के अंधेरे में निगाहें तो चलती हैं नहीं। रहा क़ुरब का सवाल तो क़ुरब पर तो उसे कोई एतराज़ ना था। जब एमजी ने अंधेरे में इस का हाथ पकड़ा तो नमी ज़रा ना झीनपी। ये तो यू यववाल बात थी। बार-बार वो अपने ब्वॉय फ्रैंड के साथ फ़िल्म देखने गई थी। वो इस ख़ुशबूदार अंधेरे से वाक़िफ़ थी। और अंधेरा अगर ख़ुशबूदार हो तो हाथ पकड़ना तो होता ही है। एमजी ने पकड़ा तो नमी ने हसब-ए-दसतूर बाज़ू ढीला कर दिया।

    जल्दी उसने महसूस किया कि एमजी का दबाओ यू यववाल नहीं है यू यवाल दबाओ तो मौक़ा की मुनासबत पर अमल में आता है ना। फ़िल्म में इज़हार-ए-मोहब्बत हो तो गुड टाइम का इशारा हो तो। लेकिन ये दबाओ तो मुसलसल था। दबाओ ख़त्म होता तो एमजी की हथेली नमी के हाथ पर चलने लगती जैसे हाथ बंद बंद का जायज़ा ले रही हो। जैसे हाथ पर कोई अमरीका दरयाफ़त करने में लगा हो। नमी की हथेली पर पसीना गया... हाथ के इस लम्स ने पता नहीं किया कर दिया। इक अन्न यू यवाल राबिता क़ायम हो गया। दिल से राबिता। दिल फिर। करने लगा। ये क्या मुसीबत है उसने हाथ छुड़ा लिया। जब भी दिल फिर-फिर करने लगता वो छुड़ा लेती लेकिन कुछ देर के बाद अनजाने में इस का बाज़ू फिर उधर हो जाता। हाथ कुर्सी के बाएं हत्थे पर टिक जाता। और फिर वही दबाओ।

    बे-चारी अजीब मुश्किल में थी। दबाओ होता तो भी चाहता कि यू यवाल हो जाये। ना होता तो जी चाहता कि हो।

    घर में वो रोज़ ही मिलते थे। वो रोज़ जाता था। ना आता तो इमरान पकड़ने आता। मम्मी आवाज़ देकर बुला लेती। मम्मी के लिए तो वो घर का फ़र्द बन चुका था। मम्मी पहले रोज़ ही समझ गई थी कि वो नमी में अनटरसटड था। निरा गुड टाईम्स नहीं। वो तो ख़ुश थी पढ़ा लिखा लड़का और छूटते ही अफ़्सर, कैरीयर बहुत बिलकुल जदीद तर्ज़ की। और फिर अंडर यपीनडनट। चचा के घर में सिर्फ अलाटमैंट के इंतिज़ार में बैठा है पता नहीं किस रोज़ मिल जाये। आख़िर नमी की शादी तो होनी ही थी। एम-ए कर चुकी थी। रिश्ते तो आए थे लेकिन वो सभी सोशल किस्म के थे ये तो जोड़ का था।

    डैडी भी ख़ुश थे। उन्होंने पहले रोज़ ही भाँप लिया था कि लड़का सीरियस है बीमारी लगा बैठा है उनकी सारी हमदर्दीयां एमजी के साथ थीं। कैसे ना होतीं। वो ख़ुद सीरियस की बीमारी में मुबतला था। बहर-तौर वो बेनयाज़ किस्म का आदमी था बात बन गई तो ओके नहीं तो के। जी उवैस तो है ही, बड़ा अफ़्सर है पीछे मुरब्बे हैं। सिर्फ यही ना कि उधेड़ उम्र का है, बाल झड़ चुके हैं लेकिन नमी को अपनाने के लिए कितना बे-ताब है। हुकूमत करेगी ऐश करेगी। ब्याहा लिए तो किया जाता है।

    इस के बाद एमजी और नमी की बहुत सी मुलाक़ातें हुईं। होटलों में पार्कों में सिनेमाघरों में , उन्होंने शॉपिंग की, ड्राइविंग पर गए। पिकनिक असपाट देखे इन मुलाक़ातों में एमजी ने तरह तरह के हरबे आज़माऐ कि नमी इस से इज़हार-ए-मोहब्बत करे। नमी इस ज़िद पर अड़ी रही कि एमजी के सर से इशक़ का भूत उतर जाये। और वो सीधा ब्वॉय फ्रैंड बन जाये।

    जब भी वो शॉपिंग पर जाते एमजी कोई ना कोई तोहफ़ा नमी के लिए ख़रीद लेता। एक दिन उस की मम्मी ने कहा नमी तू ने उसे कोई तोहफ़ा नहीं दिया ये क्या बात हुई भल्ला। नमी ने सोचा कोई ऐसा तोहफ़ा दूं कि जल कर राख हो जाये। मतलब जलाना नहीं था। बल्कि इशारतन समझाना था कि मर्द बनू आहें भरना छोड़ दो। आँखें बनाना बेकार है। भिकारी ना बनू। छीन कर लेना सीखो। उसने सोच सोच कर एक चार्म ख़रीदा, एक रो पीला बर्स्ट जो कलाई पर चौड़ी की तरह पहना जाता है। एमजी इस चार्म को देखकर बहुत ख़ुश हुआ समझा शायद नमी के दिल में इस के लिए जज़बा पैदा हो गया है। उसे क़तअन ख़्याल ना आया कि कैप सेक के पर्दे में नमी उसे चौड़ी पहना रही थी। बहर-ए-हाल उसने बड़ी ख़ुशी से वो चौड़ी पहन ली।

    सी शाम वो दोनों ड्राइविंग के लिए जा रहे थे दफ़्फ़ातन एक वीरान जगह पर एमजी ने गाड़ी रोक ली। नमी का दिल-ख़ुशी से उछला। इस से पहले ड्राइविंग के दौरान कई बार उसे ख़्याल आता था कि एमजी गारी रोक लेगा। वीरान जगह गाड़ी रोकने की बात तो फ़ैशन थी। क्रीज़ था। यू यवाल था। इस यू वाल से वो अच्छी तरह वाक़िफ़ थी। लेकिन एमजी ने कभी गाड़ी ना रोकी थी। इस की सारी तवज्जा नमी के चेहरे पर मर्कूज़ रहती या वो नमी के हाथ को थामे रखता यूं जैसे बिलौर का बना हो।

    इस रोज़ गाड़ी रुकी तो नमी ख़ुशी से उछल पड़ी फिर आँखें बंद कर के ख़ाब देखने लगी। गहरे भूरे बाल उस की तरफ़ लपके उस के मुँह से टकराए फिर सारे चेहरे को ढाँप लिया। बरसलीट वाला बाज़ू उस की कमर में हमायल हो गया। उसने इतमीनान का सांस लिया आज सब नॉर्मल हो जाएगा। कबूतर सी आँखें बनाए और ख़ाली खोली हाथ थामने की बीमारी ख़त्म हो जाएगी। और फिर वही यू यवाल गोल्डन यू यववाल।

    देर तक आँखें बंद कर के पड़ी रही। लेकिन कुछ भी ना हुआ उसने आँखें खोल दीं साथ वाली सीट पर एमजी बैठा दीवाना-वार उस का हाथ चूम रहा था। इडियट वो मिलाई की बर्फ़ की कुल्फी की तरह जम कर रह गई। आख़िर एमजी सीधा हो कर बोला। नमी आज मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करना है। अच्छा तो ये बात करने के लिए गाड़ी रोकी है। उसे ग़ुस्सा गया। इन हालात में भला मुँह ज़बानी बात की क्या ज़रूरत है ख़्वाह-मख़ाह बातों की जलेबियां तुलना सिल्ली फ़ूल।

    नमी एमजी बोला क्या तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई मुहब्बत नहीं। मुहब्बत। मुहब्बत। मुहब्बत वो चिड़ कर बोली। डोंट टॉक लाएक़ इन अंकल एमजी। भई हम रीशनल दौर में रहते हैं बी रीज़न अबुल। ज़रा सोचो। लू किया है एक मिथ। वैसे आई लाएक़ यू ऑल राइट। ठीक है उसने जवाब दिया। लेकिन में अपने सवाल का डायरेक्ट जवाब मांगता हूँ। डू यू लू मी। व्हाट अज़ लू। वो बोली एक ख़ुद-फ़रेबी एक ख़ुद पैदा की हुई फ़रनज़ी, है ना। क्या तुम लू के झूटे सुनहरे चाल से आज़ाद नहीं हो सकते। नहीं मुझे तुमसे मुहब्बत है। आई लू यू मेड। ओह इट अज़ पट्टी, नमी के मुँह से निकल गया। देर तक वो ख़ामोश रहे फिर एमजी बोला। नमी में एक ऐसा जीवन साथी तलाश करना चाहता हूँ जो मुझसे मुहब्बत करता हो। वो हंसी। फिर तुम ओलड सिटी का रुख करो। यहां कलचरड माहौल मैं तुम्हें कोई सोहनी ना मिलेगी। ये उनकी आख़िरी गुफ़्तगु थी।

    अगले रोज़ नमी को पता चला कि एमजी शिफ़्ट कर गया है घर मिल गया है ये जान कर नमी का दिल डूब गया। लेकिन ख़ुद को सँभाला। अच्छा चला गया है। सो वाट अज़ ऑल राईट।

    दिल को समझाने के बावजूद कई एक महीने बार-बार सोते जागते इन जाने में गहरे भूरे बाल उड़ते उस के चेहरे पर ढेर हो जाते। फिर बरीसलट वाला हाथ बढ़कर उसे थाम लेता। बार-बार वो ख़ुद को झिंझोड़ती। चला गया है तो गया। सो व्हाट इट अज़ ऑल राइट।

    एक साल बाद नमी की के जी उवैस से शादी हो गई। और उसे सब कुछ मिल गया। सजा सजाया घर नौकर-चाकर। साज़-ओ-सामान। कारें। सब कुछ। इस का ख़ावंद उवैस बड़ा कलचरड आदमी था। और चूँकि उधेड़ उम्र का था उस की ज़िंदगी का तमाम-तर मक़सद नौजवान बीवी को ख़ुश रखना था। बल्कि असपाएल करना था। उवैस में बड़ी खूबियां थीं सिर्फ उम्र ढली हुई थी। बाल गिर चुके थे। टांट निकल आई थी। बहर-ए-हाल नमी ख़ुश थी बहुत ख़ुश।

    शादी के दो साल बाद एक रोज़ उवैस बर सबील तज़किरा कहने लगा। डार्लिंग वो तेरी एक डाक्टर सहेली थी क्या नाम था उस का?

    सफ़ो की बात कर रहे हो?

    कहाँ होती है वो आजकल?

    पहले तो पिंडी में इस का क्लीनिक था अब पता नहीं दो साल से नहीं मिली वो।

    पिंडी मैं किस जगह क्लीनिक था?

    शायद लाल कृति के चौक में। क्यों कोई काम है सफ़ो से?

    नहीं तो उवैस बोला। वैसे ही पूछ रहा था।

    दस पंद्रह रोज़ के बाद अचानक सफ़ो गई।

    अरे तू सफ़ो। नमी ख़ुशी से चलाई।

    कैसी है तो। सफ़ो ने पूछा।

    फ़रस्ट रेट

    आर यू यप्पी।

    हैप्पी अज़ नौ वर्ड फ़ार अट नून नमी आँखें चमका कर बोली। अच्छा सफ़ो सोच में पड़ गई। बात किया है?नमी ने पूछा क्या उवैस मिला था तुझे?

    हाँ मिला था। सफ़ो ने थोड़ी सी हिचकिचाहट के बाद कहा।

    मज़ाक़ ना करो सफ़ो।

    आई ऐम डैड सीरियस। उवैस कहता है तुम्हें हेलो सी नेशन होते हैं। मुझे।

    हाँ

    मसलन।

    कहता था जब अकेले में मेरे साथ होती है तो कहती है डार्लिंग तुम बाल क्यों नहीं सँभालते मेरे मुँह पर पड़ते हैं। और सफ़ो रुक गई।

    नमी चुप हो गई।

    और जानो तुम ब्रेसलेट तो उतारो दिया करो।

    नानसनस नमी चीख़ी। ऐसी बेमानी बातें में करती हूँ क्या-किया...?

    कि बाल सँभाल लिया करो मेरे मुँह पर पड़ते हैं। और...

    और...। अपना ब्रेसलेट तो उतार दिया करो...

    मज़ाक़ ना कर। नमी चलाई...

    तुम्हें पता नहीं किया... सफ़ो संजीदगी से बोली... मेरी शादी हो चुकी है एमजी से।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए