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ज़िंदगी चाँद सी औरत के सिवा कुछ भी नहीं

महेनद्र नाथ

ज़िंदगी चाँद सी औरत के सिवा कुछ भी नहीं

महेनद्र नाथ

MORE BYमहेनद्र नाथ

    स्टोरीलाइन

    दो दोस्तों की कहानी, जिन्हें सड़क पर घूमते हुए दो पारसी लड़कियाँ मिल जाती है। दोनों उन्हें कार में बैठाकर यहाँ वहाँ घूमाते हैं। उनके साथ खाना खाते हैं, फ़िल्में देखते हैं। जब वे उनके साथ प्यार करने की शुरुआत करते हैं तभी वे उन्हें झिड़क देती हैं। लेकिन जाते वक़्त वे उनसे पैसे ज़रूर माँगती हैं। शुरू में दोनों दोस्त समझते हैं कि वे शरीफ़ घरों की लड़कियाँ हैं, बाद में उन्हें पता चलता है कि वे वेश्या हैं।

    उसने नया सूट पहना और क़द्द-ए-आदम आईने के सामने खड़े होकर अपना जायज़ा लिया। सर के बाल कुछ बिखरे हुए थे उसने बरश से बालों को अपनी जगह जमाया... और सर को झटक कर फिर आईने के सामने खड़ा हो गया... उसे अपनी नाक कुछ लंबी सी दिखाई दी। काश उसकी नाक इतनी लंबी होती तो उसकी ज़िंदगी ख़ुशग्वार हो जाती। सर पर फ़ेल्ट रख कर उसने एक शे’र गुनगुनाना शुरू किया। बैग में कुछ काग़ज़ात रखे और नौकर को चंद हिदायात देने के बाद सीढ़ियाँ उतरने लगा।

    आज वो ख़ुश था। उसके नौकर ने निहायत ही लज़ीज़ खाना पकाया था और उसने पेट भर कर खाया था... वो जल्दी सीढ़ियाँ उतर गया और अपनी पुरानी कार के सामने खड़ा हो गया गो कार पुरानी थी, लेकिन आज-कल कार सस्ते दामों में कहाँ मिलती है। बड़ी कोशिशों के बाद उसे ये कार मिली थी। कार ख़रीदने के बाद लोगों में उसकी इज़्ज़त और तौक़ीर बढ़ गई थी। कहाँ तो दोस्त यार उसे इंश्योरेंस एजेंट कह कर ज़लील करते थे, कहाँ अब वही दोस्त उससे मिलना अपनी इज़्ज़त समझते हैं।

    और उसने कार का दरवाज़ा खोला और हैंडिल को रूमाल से साफ़ करने लगा। उसने सोचा कि वो किधर जाए, यूँही उसे ख़्याल आया कि पहले कार में बैठ जाए फिर सोचेगा कि उसे किधर जाना है। कार में बैठे हुए उसे चंद सेकेंड ही गुज़रे थे कि उसे पसीना आने लगा, उसने हैंडिल घुमाया और कार को स्टार्ट कर दिया। और एक छिछलती हुई निगाह साथ वाले मकान पर डाली। यहाँ उसका दोस्त सुरेंद्र रहता था, क्यों उसे बुला लें और सैर करने चलें, कमबख़्त सो रहा होगा या कोई किताब पढ़ रहा होगा या कोई बेहूदा सी कहानी लिख रहा होगा। कहता है कि मैं अफ़साना-निगार हूँ, ऐसे अफ़साना-निगार बहुत देखे हैं। उसकी ज़िंदगी उस फ़्लैट में गुज़र जाएगी। किसी से मिलता तो भी नहीं तरक़्क़ी कैसे करेगा, लानत भेजो उसपर, मरने दो कमबख़्त को, उसे अपनी इक़्तिसादी हालत को दूसरों से बेहतर देख कर ख़ुशी महसूस हुई, हैंडिल को घुमाते हुए वो कार को आगे ले गया। अब कार आहिस्ता-आहिस्ता जा रही थी और वो सिगरेट का धुआँ कार में बिखेर रहा था।

    आज वो ख़ुश था, बे-हद ख़ुश था, ज़िंदगी गुज़र रही थी, अच्छी गुज़र रही थी, जब इंसान का पेट भरा हुआ हो और बटुए में चाँदी के सिक्के हों और कार भी हो और वो देख रहा हो कि उसके भाई पैदल चल रहे हैं और उसकी ख़रामाँ-ख़रामाँ आगे बढ़ रही है तो उसकी ख़ुशी की क्या इंतिहा हो सकती है। उसने सोचा कि वो उनसे कई दर्जा बेहतर है, एहसास-ए-बरतरी से उसने गर्दन को अकड़ा लिया और सिगरेट के धुएँ को ज़ोर से छोड़ते हुए कार की रफ़्तार को तेज़ कर दिया, हवा ख़ुशी से गाती हुई उसके क़रीब से गुज़र गई, अब वो और क़रीब रहा था और क़रीब रहा था, अब ख़ुदा-दाद सर्किल गया था, एक लम्हे के लिए उसने बाईं तरफ़ देखा दो ख़ूबसूरत आँखें उसे देख कर मुस्कुरा रही थीं। मुझे उसने सोचा जैसे उसे इन आँखों पर यक़ीन आया हो, और वो कार को घुमाकर आगे बढ़ गया, वो सोच रहा था और कार आगे बढ़ रही थी वो क्या करे।

    क्या वापस मुड़ कर लड़की के क़रीब से गुज़रे, शायद वो मुस्कुराए, लेकिन उसे ख़्याल आया कि उसकी नाक लंबी है, कोई लड़की उसे देख कर मुस्कुरा नहीं सकती, कई बार वो उस कार में बैठ कर उस सर्किल के क़रीब से गुज़रा है लेकिन किसी लड़की ने उसकी तरफ़ मुस्कुरा कर नहीं देखा था, लेकिन उस वक़्त उसका दिल बार-बार कह रहा था कि मियाँ चलो एक बार फिर उसी लड़की के क़रीब से गुज़रो, उसने हैंडिल को घुमाया और कार फिर वापस चली, अब के लड़की फिर मुस्कुराई, उसने कार रोक ली और पिछली सेट का दरवाज़ा खोल दिया, उसकी परेशानी की हद रही, जब मालूम हुआ कि एक के बजाए दो लड़कियाँ पिछली सीट पर गई थीं, उसका दिल धक-धक कर रहा था, उसने निहायत फुर्ती से कार का दरवाज़ा बंद किया, और लड़कियों पर उचटती हुई निगाह डालते हुए कार स्टार्ट कर दी।

    लड़कियाँ पिछली सीट पर बैठी हुई थीं, और वो अगली सीट पर बैठा हुआ कार को आहिस्ता-आहिस्ता चला रहा था एक मर्द और औरतें ये एक ख़तरनाक मुसल्लस थी, वो तो सिर्फ़ एक लड़की चाहता था, वो किस तरह और क्यों गईं, वो उन से क्या कहे, बड़े सोच-विचार के बाद उसने हैलो कहा। और उसकी पेशानी पर पसीना गया। उसने मुड़ कर देखा दोनों लड़कियाँ फिर मुस्कुरा रही थीं वो कुछ घबरा सा गया, हैंडिल एक तरफ़ को मुड़ गया और साथ ही एक चीख़ सुनाई दी, उसने फ़ौरन ब्रेक लगा दी। एक एंग्लो इंडियन लड़की कार के नीचे आते-आते बच गई थी, एंग्लो इंडियन लड़की ने क़हर-आलूद निगाहों से उसकी तरफ़ देखा और कहा,

    यूफ़ूल...

    आई. ऐम. सॉरी. उसने कहा... और कार को पूरी रफ़्तार से छोड़ दिया, दोनों लड़कियाँ आपस में बातें कर रही थीं लेकिन उनकी बातें उसकी समझ से बाहर थीं। उसने कंखियों से लड़कियों की तरफ़ देखा, अब के उसके हाथों ने बड़ी मज़बूती से हैंडिल पकड़ रखा था, लड़कियाँ इसकी तरफ़ देख रही थीं, मुस्कुरा रही थीं। एक लड़की ने आँखों को मटकाते हुए कहा, हेलो ये सुनते ही वो ख़ुश हो गया, और उसे महसूस हुआ कि आज इसकी नाक बिल्कुल ग़ायब हो जाएगी, लेकिन इस ख़तरनाक मुसल्लस का क्या इलाज होगा एक मर्द और दो औरतें वो उनसे अकेला क्या बात करे, दोनों लड़कियाँ पारसनें थीं, दोनों ख़ुश-शक्ल थीं, ख़ूबसूरत थीं, दोनों मुस्कुरा रही थीं, दोनों की टाँगें नंगी थीं, सपेद थीं, आँखों में शोख़ी थी, शरारत थी, लबों पर लिपस्टिक थी, सियाह बालों में जवानी की चमक थी, आज तक किसी ख़ूबसूरत औरत ने उससे बात तक की थी, यूँ तो फ़ारस रोड पर वो कई बार चक्कर लगा चुका था, लेकिन वो पढ़ी लिखी लड़कियों ख़ुश-पोष पार्सनों और ख़ूबसूरत लड़कियों की मोहब्बत से बिलकुल बे-गाना था, अगर एक लड़की होती तो वो उसे अपने पास बिठा लेता... ये सोचते-सोचते वो अपने घर के क़रीब गया और कार को रोक लिया।

    तुम्हारा नाम...?

    कटी। लड़की ने जवाब दिया।

    और तुम्हारा...?

    मल्टी...

    कटी और मल्टी। मल्टी और कटी... वो बड़बड़ाया... कटी मल्टी से ज़ियादा ख़ूबसूरत थी। ज़ियादा चालाक थी, उसकी आँखों से शरारत छलकती थी, उसने ज़बान को लबों पर फेरते हुए कहा, आओ चलें...

    कहाँ...?

    बस यूँही सैर करने।

    लेकिन में अकेला हूँ। उसने अपनी बे-बसी का इज़हार किया।

    तुम्हारा और कोई दोस्त नहीं...? कटी ने चमक कर कहा।

    और उसकी जान में जान आई। उसने सुरेंद्र को आवाज़ दी, सुरेंद्र आवाज़ सुन कर पहचान गया।

    साला एजेंट होगा। और उसको एजेंट से नफ़रत थी लेकिन वो एजेंट की कार से मोहब्बत करता था।

    वो अंडर-वियर पहन कर फ़र्श पर लेटा था, जल्दी से उठ कर उसने बालकोनी से नीचे देखा, गोपाल उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुरा रहा था, उसने वहीं खड़े होकर करख़्त लहजे में पूछा, क्या बात है?

    एक लड़की ने सर निकाला और उसकी तरफ़ देखा।

    गोपाल ने आँख मारी और रोबदार लहजे में कहा, कपड़े पहनकर फ़ौरन आओ।

    सुरेंद्र ने एक नई हीट निकाली, बालों में तेल लगाया, माँग निकाली और सीढ़ियों से नीचे उतर गया...

    गोपाल ने कटी और मल्टी से तआरुफ़ कराया, सुरेंद्र ने लड़कियों को देखा है और उसे महसूस हुआ कि उन लड़कियों को ज़रूर कहीं देखा है, शायद वारिद सर्किल के क़रीब ये एक बार मुस्कुराती थीं। उसने एक बार इन लड़कियों का तआक़ुब किया था, लेकिन वो लड़कियों से बात कर सका था दोनों लड़कियाँ उसे पसंद थीं, लेकिन कटी उसे ज़ियादा पसंद थी।

    कटी उठ कर फ़्रंट सीट पर बैठ गई और वो मल्टी के साथ बैठ गया, सुरेंद्र ख़ुश-शक्ल था शायद इसीलिए लड़कियाँ उसकी तरफ़ जल्दी मुख़ातिब हुईं, लड़कियाँ बातें कम करती थीं, मुस्कुराती ज़ियादा थीं उसने अपनी फ़ेल्ट मल्टी के सर पर रख दी। मल्टी ने कहा, थैंक यू... और उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराने लगी और ज़बान लबों पर फेरने लगी। कटी ने गोपाल को हल्की सी चपत लगाई और कार को स्टार्ट करने के लिए कहा, गोपाल ने सुरेंद्र को देखा... जैसे वो पूछ रहा हो, किधर चलें।

    आप कुछ खाएंगी?

    दोनों ने सर हिलाया। और सुरेंद्र ने गोपाल को किसी नज़दीक के ईरानी होटल में चलने के लिए कहा गोपाल ने कार स्टार्ट कर दी और चंद मिंटों में वो एक ईरानी के होटल में दाख़िल होकर एक फ़ैमिली रूम में बेरे को बुला कर चाय और आमलेट के लिए ऑर्डर दिया। अब के सुरेंद्र मल्टी के क़रीब बैठ गया और गोपाल कटी के क़रीब, चारों एक दूसरे के क़रीब बैठे हुए थे अब चारों ख़ामोश थे, चुप-चाप थे और एक दूसरे को देख रहे थे। ये ख़ामोशी अजीब सी ख़ामोशी थी, सुरेंद्र ने इस ख़ामोशी को तोड़ते हुए मल्टी से कहा। आपके हाथ बहुत ही ख़ूबसूरत हैं।

    आप मुझसे ऐसी बातें कहिए। मल्टी ने जल कर कहा।

    गोपाल कटी के बालों से खेल रहा था, एकाएक उसका हाथ कटी के गालों से छू गया। Learn-manners कटी ने घूरते हुए गोपाल से कहा।

    गोपाल कुछ खिसियाना सा हो गया इतने में बेरे ने चाय और आमलेट मेज़ पर रख दिए और वो सब खाने लगे।

    सुरेंद्र का हाथ यकायक मल्टी की सफ़ेद टाँगों से जा लगा और मल्टी ने सुरेंद्र का हाथ ज़ोर से झटक दिया और फिर आमलेट खाने लगी। गोपाल ने अपनी कुर्सी और कटी ने अपनी कुर्सी और दूर कर ली, और फिर मुस्कुराने लगी, गोपाल ने कुर्सी क़रीब करके कटी के कमर में हाथ डालने की कोशिश की, कटी ने उसका हाथ ज़ोर से झटक दिया। इस झटके से आमलेट की प्लेट नीचे गिर गई। दोनों की आँखों से शोले बरसने लगे।

    कटी ने क़हर-आलूद निगाहों से गोपाल और सुरेंद्र की तरफ़ देखा और कहने लगी। मैं समझती थी कि आप शरीफ़ लोग होंगे लेकिन आप तो बहुत ही बद-तमीज़ हैं।

    गोपाल और सुरेंद्र ख़ामोश रहे।

    अगर आप हमें उसी तरह तंग करेंगे तो हम अभी चले जाएंगे।

    और वो दोनों उठ खड़ी हुईं, सुरेंद्र ने दोनों की मिन्नत-समाजत की कि अब दोबारा किसी क़िस्म की हिमाक़त होगी, ख़ुदारा तुम दोनों बैठ जाओ। उस मिन्नत-समाजत का असर ज़रूर हुआ और वो दोनों फिर चाय पीने लगीं। चाय पीने के बाद वो रेस्टोरेंट से बाहर निकले।

    दोनों अपने किए पर नादिम थे लेकिन जब चारों सड़क पर गए तो लोग उन्हें घूर-घूर कर देखने लगे। गोपाल और सुरेंद्र को ऐसा महसूस हुआ कि सभी लोग उन्हें ख़ुश-क़िस्मत समझते हैं कि उनके साथ दो पारसी लड़कियाँ हैं और वो भी कितनी ख़ूबसूरत, इस एहसास से उनके दिल में ख़ुशी की लहर दौड़ गई और वो गुज़री हुई बातों को भूल कर कार में बैठ गए।

    इस बार मल्टी गोपाल के साथ बैठी और कटी सुरेंद्र के साथ, दर-अस्ल सुरेंद्र ख़ुद कटी के साथ बैठना चाहता था कटी को वो पसंद कर ता था, वो मल्टी से ज़ियादा बातें करती थी, मल्टी से ज़ियादा चालाक थी, उसकी मुस्कुराहट में जाज़बियत थी और जिस अंदाज़ से वो टूटे हुए दाँतों के बीच से ज़बान निकालती थी वे उसे बे-हद पसंद था, दोनों की शक्लें एक दूसरे से बहुत मिलती-जुलती थीं, दोनों के अंदाज़ से ये ज़ाहिर होता था कि वो अभी नौ-उम्र हैं, उनकी शरारतें, हँसी दबी-दबी मुस्कुराहट और कंखियों से देखना अक्सर उनकी हरकतों को ज़ियादा जाज़िब-ए-नज़र बनाता था, गोपाल ने कार को पूरी रफ़्तार से छोड़ दिया... और सुरेंद्र कटी के क़रीब सरक गया, उसकी टाँगें कटी की बरहना टाँगों से छू रही थीं, वो एक हसीन ख़ूब बरहना सूरत लड़की की मौजूदगी के एहसास से लुत्फ़-अंदोज़ हो रहा था, और वो लड़की भी उसकी जमालियाती हुस्न पर पूरी उतरती थी, हवा फर्राटे भरती हुई गुज़र रही थी और कटी के सियाह बाल हवा में लहरा रहे थे, गोपाल मल्टी से हँस-हँस कर बातें कर रहा था और वो हँस-हँस कर बातें क्यों करता।

    उसकी ज़िंदगी में ये पहला मौक़ा था, जब उसे एक ख़ूबसूरत लड़की का क़ुर्ब हासिल हुआ था और ये लड़कियाँ भी कितनी फ़राख़-दिल थीं, उनके साथ रेस्टोरैंट में गई थीं, उन्होंने ख़ुद सैर पर जाने के लिए कहा था, गो वो ख़ुद शहर के शोर-ओ-ग़ुल से दूर जाना चाहते थे। अब वो शहर से दूर जा रहे थे, मकानात पीछे छूट गए थे और अब एक सुरमई सड़क नज़र रही थी, जिसके साथ समुंद्र का गहरा नीला पानी टकरा रहा था, सड़क बिल्कुल वीरान दिखाई देती थी, गोपाल ने कार की रफ़्तार को कम कर दिया, अब एक छोटा सा मैदान गया जहाँ पर नारियल के दरख़्त इस्तादा थे, गोपाल ने कार को नारियल के दरख़्त के क़रीब पार्क कर दिया।

    क़रीब ही झोंपड़ी से दो औरतें निकलीं और उनकी तरफ़ हसरत भरी निगाहों से देखने लगीं, जैसे कह रही हों, तुम कितने ख़ुश-क़िस्मत हो, तुम्हारे पास एक कार भी है तुम्हारे चेहरे से साफ़ अयाँ है कि तुमने पेट भर के खाना खाया है और इधर हम हैं कि सिर्फ़ नारियल का पानी पीते हैं और अन-गिनत समुंद्र की लहरों को देखते हैं और ज़िंदगी बे-जान और बे-कैफ़ होती जा रही है, और तुम लोग हमारी बिल्कुल परवाह नहीं करते।

    गोपाल और सुरेंद्र ने औरतों को नज़र-अंदाज़ कर दिया, क्योंकि उनके पहलू में इतनी जाज़िब-नज़र चीज़ें थीं कि वो दूसरी तरफ़ देखना गुनाह समझते थे, सुरेंद्र ने कटी का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहने लगा, तुम्हारी क़िस्मत बताऊँ?

    हाँ बताओ...

    तुम ज़िंदगी में कभी शादी करोगी।

    कटी ने एक क़हक़हा लगाया और कहने लगी, बस और कुछ भी नहीं।

    और हाँ तुम्हारे दिल की लकीर ये साफ़ बताती है कि तुम निहायत ही अच्छी लड़की हो लेकिन...

    लेकिन क्या...?

    हालात कुछ ऐसे हैं कि तुम्हें इस क़िस्म की शरारतें करनी पड़ती हैं।

    अच्छा बताओ। कि मेरे कितने बच्चे होंगे? कटी ने दाँतों के दरमियान ज़बान हिलाते हुए कहा।

    एक भी नहीं।

    हूँ...

    जी।

    और फिर तुम एक शख़्स से मोहब्बत करोगी, जो तुमसे इंतिहाई मोहब्बत करेगा।

    कटी ने एक हल्की सी चपत इसके मुँह पर लगाई... और अपना हाथ खींच लिया।

    अब सुरेंद्र ने मल्टी का हाथ देखना शुरू किया, देखो तुम्हारे हाथ से साफ़ ज़ाहिर है कि तुम बातें कम करती हो और मुस्कुराती ज़ियादा हो, और जो कुछ तुम्हारा दिल कहता है वो तुम नहीं करतें, बल्कि जो कुछ कटी कहती है वो करती हो, तुम ज़िंदगी में तीन शादियाँ करोगी, और तुम्हारे ग्यारह बच्चे होंगे।

    ये सुन कर मल्टी हँस पड़ी। और कहने लगी, शट-अप।

    गोपाल ने मल्टी को सताना शुरू किया, लेकिन मल्टी ने उससे साफ़ कह दिया कि वो इस क़िस्म की हरकतें करे, चंद लम्हों तक नारियल के दरख़्तों के क़रीब टहलते रहे सूरज डूब रहा था और उनकी ख़ूनी किरणें संमुद्र को सुर्ख़ कर रही थीं, नारियल के दरख़्त आकाश की तरफ़ देख रहे थे और हवा ख़ुशी से झूमती हुई आगे बढ़ रही थी और सुरेंद्र कटी के क़रीब से अपने आपको महफ़ूज़ कर रहा था, ज़िंदगी कितनी दिलकश है, उसने सोचा अगर एक हसीन औरत पहलू में हो तो जी चाहता है कि ज़िंदगी उसके पहलू में बैठ कर गुज़ार दी जाए, कुछ अर्से के बाद कटी उसके क़रीब से उठ कर गोपाल के पास चली गई, सुरेंद्र सोचने लगा कि ज़िंदगी इतनी यास-अंगेज़ नहीं, ज़िंदगी इतनी मस्नूई नहीं।

    इतनी बे-कैफ़ नहीं और वो मल्टी की तरफ़ हैरत-ज़दा निगाहों से देखने लगा, मल्टी की आँखों में मासूमियत की झलक थी, उसके लबों के कानों पर एक दिल-फ़रेब मुस्कुराहट नाच रही थी, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह सूरज की अलविदाई किरणें समुंद्र की सतह पर नाच रही थीं। इतने में गोपाल ने सुरेंद्र से पूछा, तुम्हारे पास कुछ रूपये हैं?

    कौन माँगता है?

    कटी।

    कितने रूपये।

    सिर्फ़ दस रूपये, वो कहती है कल वापस कर दूँगी।

    सुरेंद्र ने दस रूपये दे दिए, उसके पास कल पन्द्रह रूपये थे ख़ैर कोई बात नहीं उसने सोचा अभी तक उसकी जेब में पाँच रूपये हैं, उसकी निगाहों में लम्हा भर के लिए मायूसी छा गई उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे मौसम-ए-बहार में ख़िज़ाँ का झोंका आया हो, लेकिन दूसरे लम्हे में कटी उसके क़रीब खड़ी हो गई और उसकी आँखों में आँखें डाल कर देखने लगी। कम-बख़्त लड़की कितनी हसीन है उसने सोचा।

    देखो जी, अब देर हो रही है, डैडी मेरा इंतज़ार कर रहा होगा।

    आज माँ ज़रूर पीटेगी। दोनों एक दूसरे की तरफ़ देख कर मुस्कुराने लगीं और चुपके से कार में बैठ गईं। कटी ने सुरेंद्र की फ़ेल्ट ले ली और अपने सर पर रख ली और कहने लगी, मैं कैसी दिखाई देती हूँ।

    बहुत ही ख़ूबसूरत। सुरेंद्र ने मुस्कुरा कर कहा। और वो ख़ुशी से झूमने लगी और गोपाल ने कार की रफ़्तार तेज़ कर दी। सुरेंद्र ने अपना हाथ कटी के ज़ानू पर रखा, एक लम्हा हाथ वहाँ रहा दूसरे लम्हे में कटी ने उसका हाथ झटक दिया और क़हर-आलूद निगाहों से देखने लगी वो घबरा कर एक तरफ़ सरक गया।

    अब अंधेरा आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ रहा था सड़क पर बिजली के क़ुमक़ुमे रौशन हो चुके थे, हवा में नमी और ठंडक ज़ियादा होती जा रही थी और फ़ैक्ट्रियों का धुआँ गिर्द-ओ-पेश छाया हुआ था, वो हैरान था कि क्या करे, क्या कहे, वो आगे जा सकता था पीछे हट सकता था ये अजीब सी लड़की है, उसने सोचा, हँसती है, मुस्कुराती है, दूसरों के साथ अकेली सैर करने जाती है, होटल में खाना खाती है लेकिन जिस्म को हाथ नहीं लगाने देती उसकी निगाहों में शरारत है। आँखों में ख़ुमार है चाल में नज़ाकत है, बालों में शबाब की ख़ुशबू है, कितनी प्यारी है ये लड़की कितना दिल-फ़रेब है, उसका हुस्न, कितनी ताज़गी और लज़्ज़त है उसकी आवाज़ में कितनी बे-बाकाना है, उसकी बातें, और वो ये सोच रहा था कि कार एक जगह पर आकर रुक गई। दोनों लड़कियाँ कार से उतरीं।

    अब कब मिलोगी?

    जब कहो। कटी ने फ़ौरन जवाब दिया।

    कल तीन बजे कोई फ़िल्म देखेंगे, उसी जगह पर आना।

    दोनों ने सर हिलाया और नज़रों से ओझल हो गईं।

    उस रात सुरेंद्र बिल्कुल सो सका, वो सोने की कोशिश करता लेकिन कटी की दिलकश तस्वीर उसकी आँखों के सामने नाचने लगती, कटी की हँसी उसकी मुस्कुराहट, उसकी बातें बार-बार उसके कानों से टकरातीं, कटी के मुलायम जिस्म का लम्स बार-बार उसके ज़ेहन में थिरकता, वो अकेला सो रहा था, चारों तरफ़ अंधेरा था, लेकिन इस अँधेरे में ज़िंदगी थी, शबाब था, एक अजीब क़िस्म की ख़ुशी का एहसास था, एक लड़की के क़ुर्ब ने उसकी सोई हुई ज़िंदगी में हरकत पैदा कर दी थी। लड़की हसीन होती तो शायद सुरेंद्र चुपके से सो जाता, लेकिन लड़की की जिस्मानी दिलकशी और इसका शोख़ हसन उसे रह-रह कर याद करता।

    कटी की शरारतें, उसकी मुस्कुराहट, उसकी बातें, उसका मज़ाक़, उसकी हर हरकत उसकी आँखों के साने बार-बार रही थी और वो बिस्तर पर अकेला था, चारों तरफ़ अंधेरा था और वो सोच रहा था, अगर वो लड़की उसके पास होती तो आज वो कितना ख़ुश होता, इससे ज़ियादा ख़ुश होता, वो ख़ुशी, वो लज़्ज़त, वो इंबिसात, वो राहत जिससे वो आज तक महरूम था, उसे ज़रूर मिलती वो उस लड़की को कभी भी नहीं भूल सकता, ये लड़की अब उसकी होकर रहेगी, ये लड़की अब किसी और की नहीं हो सकती।

    और उसके ज़ेहन में बार-बार ये अलफ़ाज़ गूँजने लगे, ये लड़की मेरी है। अगर दिन भर की वारदात में उसे किसी बात का अफ़सोस था तो सिर्फ़ दस रूपयों का अगर वो अमीर होता तो दस रुपये क्या, सौ रूपये तक दे देता, लेकिन सुरेंद्र की आमदनी बहुत क़लील थी वो जितने रूपये कमाता उससे सिर्फ़ उसके खाने पीने या मकान के किराए का इंतिज़ाम हो सकता था, अक्सर महीने के आख़िर में उसे क़र्ज़ लेना पड़ता था। ये रूपये जो उसके पास थे उसे होटल वाले को देने थे और हाँ कटी तो उससे दस रूपये माँग कर ले गई है, वो ज़रूर दस रूपये वापस कर देगी, ख़ैर वो वापस भी करे, तब भी कोई बात नहीं। दस रूपयों की हक़ीक़त क्या है, वो आज से जी लगा कर मेहनत करेगा, ख़ूब रूपये कमाएगा और अगर कटी ने उससे रूपये माँगते तो ज़रूर उसे और रूपये देगा, वो कटी को किसी हालत में भी नहीं छोड़ सकता, नहीं छोड़ सकता, ये सोचते-सोचते उसे नींद गई।

    जब सुबह हुई तो उसने नए ब्लेड से हजामत की, एक नया सूट निकाला और पहन कर गोपाल के घर गया, गोपाल उसका इंतिज़ार कर रहा था।

    क्यों रात कैसी कटी? गोपाल ने पूछा।

    बिल्कुल नींद नहीं आई।

    और तुम?

    सोने की बहुत कोशिश की मगर सो सका, लड़कियाँ शरीफ़ घराने की दिखाई देती हैं।

    मेरा भी यही ख़्याल है।

    अब ज़िंदगी अच्छी कट जाएगी।

    मियाँ लुत्फ़ जाएगा, लेकिन ये तो बताओ कल कितना ख़र्च हुआ?

    कल बीस रूपये ख़र्च हुए।

    वो कैसे?

    दस रूपये कटी को दिए, दस रूपये होटल वाले को... और दस रूपये का ख़र्च हुआ, लेकिन सुरेंद्र माल ख़ूब है, ख़ुदा की क़सम उससे बेहतर लड़की सारी बम्बई में नहीं मिल सकती।

    देख लो जब ख़ुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है, कटी तुम्हारी है और मल्टी मेरी, ठीक है?

    सोलह आने दुरुस्त...

    और आज का क्या प्रोग्राम है?

    फ़िल्म देखेंगे।

    सुरेंद्र ने सर हिलाया।

    और हाँ रूपयों का इंतिज़ाम कर लेना...

    कितने रूपयों का इंतिज़ाम करूँ?

    फ़िल्म देखेंगे होटल में खाना खाएंगे, ख़ुद ही हिसाब लगा लो।

    देखो जी, इसमें शर्म की कोई बात नहीं, आधे पैसे तुम्हारे आधे मेरे।

    अब तो ऐसा ही करना पड़ेगा।

    अच्छा मैं नहा लूँ।

    और इस तरह दोपहर हो गई, गोपाल और सुरेंद्र ने होटल में खाना खाया और ख़ुदा-दाद सर्किल पहुँच गए।

    दोनों लड़कियाँ वक़्त-ए-मुक़र्ररा पर पहुँच गई थीं, आज कटी ने आसमानी रंग का फ़राक़ पहना हुआ था, और कम-बख़्त मल्टी ने सियाह रंग का फ़राक़, सियाह रंग का फ़राक़ उसके सफ़ेद रंग जिस्म पर ख़ूब जचता था, कटी ने सुरेंद्र को देखा, सुरेंद्र ने कार में बैठने का इशारा किया, दोनों चुपके से कार में बैठ गईं।

    कहाँ चलें?

    जहाँ तुम्हारी मर्ज़ी। कटी ने कहा।

    पिक्चर देखोगी?

    कटी ने मुस्कुराकर सर हिलाया दिया। और वो सब एक पिक्चर हाउस में पहुँच गए चार टिकट ख़रीद लिए गए पिक्चर शुरू होने से पहले वो कुर्सियों पर बैठ गए।

    कोई देख ले... कटी ने कहा।

    क्या देख लेगा...? सुरेंद्र ने करख़्त लहजे में कहा।

    अरे ये पारसी।

    तो फिर क्या होगा?

    अगर उन्होंने हमें तुम्हारे साथ बातें करते या हँसते-हँसाते देख लिया तो हमारा सोशल बाईकॉट करेंगे। हमें इज़ाज़त नहीं है कि किसी ग़ैर पारसी के साथ गुलछर्रे उड़ाएँ।

    ये सुनते ही सुरेंद्र कुछ ख़ामोश सा हो गया, जैसे छाती पर एक सिल रख दी गई हो, ये हिन्दू-मुस्लिम की तफ़रीक़, पारसी ग़ैर-पारसी की तफ़रीक़, ये हिन्दू-क्रिस्चन की तफ़रीक़, ये काले और गोरे की तफ़रीक़, ये यहूदी ग़ैर-यहूदी की तफ़रीक़, किस तरह इंसानियत का ख़ात्मा कर रही है, हर नस्ल में एक ज़हर भर रही है और इंसानों की ज़िंदगियों को तल्ख़ से तल्ख़ तर बना रही है, वो ये सोच ही रहा था कि पिक्चर शुरू हो गई, दर-अस्ल वो पिक्चर देखने आया था वो सिर्फ़ कटी से बातें करना चाहता था, वो चाहता था कि कटी को अपनी बाँहों में भींच ले, उसके जिस्म को सर से लेकर पाँव तक चूमे उसकी सपेद-सपेद रानों को हाथ फेरे, वक़्त गुज़र रहा था और वो सोच रहा था। वो हिचकिचा रहा था कि क्या करे, किस तरह कहे, कि वो उसे छूने के लिए बे-क़रार हो रहा है उसने अपना हाथ चुपके से उसकी नंगी रान पर रख दिया।

    कटी ने उसका हाथ झटक दिया... वो डर गया... कहीं कटी उससे नाराज़ हो जाए फिर वो उससे बातें भी कर सकेगा। वो ख़ामोश हो गया, सिर्फ़ एक लम्हे के लिए हाथ फिर बढ़ाया, कटी ने अब हाथ फिर ज़ोर से झटक दिया। वो फिर ख़ामोश हो गया।

    वक़्त गुज़र रहा था कि पिक्चर जल्द ही ख़त्म हो जाएगी, ये अंधेरा कब तक रहे... ये मीठा गुदाज़, अंधेरा, वो क्या करे, वो किस तरह अपनी सिसकती हुई रूह को तस्कीन दे, वो किस तरह इस अंधी ख़्वाहिश की तकमील करे, वो किस तरह इस जुनूनी कैफ़ियत को ठंडा करे, वो सोच रहा था लेकिन उसके ज़ेहन में कुछ आता था।

    यकायक उसे शरारत सूझी।

    कटी?

    कटी ने उसकी तरफ़ देखा।

    ज़रा इधर झुको।

    वो ज़रा झुकी।

    ज़रा और... मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।

    कटी ने अपना सर उसके क़रीब और झुकाया, अब कटी का चेहरा उसके बिल्कुल क़रीब था, उसने चुपके से अपने काँपते हुए होंट उसके गालों पर रख दिए।

    कटी फ़ौरन सरक गई, और ज़ोर की चपत उसके मुँह पर मारी।

    सुरेंद्र शर्म से पानी-पानी हो गया, उसे अपनी बेहूदा हरकत पर बहुत ग़ुस्सा आया, कटी कोई तवाइफ़ थी। उसने इस क़िस्म की हरकत क्यों की, वो एक शरीफ़ घराने की लड़की थी, वो उसे सिर्फ़ एक दोस्त समझ कर उसके साथ आई थी, वाक़ई उसे बात करने की तमीज़ थी, ये कहाँ की शराफ़त थी, ये कहाँ की तहज़ीब है कि एक लड़की के साथ आप सिनेमा देखने के लिए आईं और उसकी मर्ज़ी के बग़ैर आप उसका मुँह चूम लें, ये वाक़ई बेहूदा हरकत है, उसे इस क़िस्म की हरकत नहीं करनी चाहिये थी, वो रंजीदा सा हो गया, और एक तरफ़ को सरक गया।

    कटी ने उसकी तरफ़ कंखियों से देखा।

    नाराज़ हो गए?

    वो फिर ख़ामोश हो गया।

    अच्छा अपना चेहरा इधर दिखाओ।

    ज़रा और...

    अब कटी के गाल इसके बिल्कुल क़रीब थे, कटी का गर्म साँस उसके लबों को चूम रहा था, उसने ज़ोर से एक फूँक मारी और मुस्कुरा पड़ी और कहने लगी।

    आई लव यू।

    क्या तुम मुझसे मोहब्बत करते हो?

    और सुरेंद्र ने सर हिला दिया।

    तब तुम मुझे चूम सकते हो।

    और सुरेंद्र ने अपने तपते हुए होंट कटी के नर्म और गर्म गालों पर रख दीए, इस बोसे ने उसके जिस्म में इर्तिआश पैदा कर दिया, उसके जिस्म में ख़ुशी की एक लहर दौड़ गई, यकायक इसने महसूस किया कि कटी अच्छी लड़की है और वो उससे मोहब्बत करती है, वो वाक़ई उससे मोहब्बत करती है, सुरेंद्र हर शख़्स को ये बताना चाहता था कि ये लड़की उससे मोहब्बत करती है, कटी वाक़ई अच्छी लड़की है, वो उससे प्यार करती है।

    अब वो दोनों इकट्ठे रहेंगे, अगर इकट्ठे रहेंगे तो कम-अज़कम हर रोज़ मिला करेंगे, कटी सिर्फ़ अच्छी ही नहीं, अच्छी तो बहुत सी लड़कियाँ होती हैं वो ख़ूबसूरत भी है हसीन भी है, वो बातें कर सकती है और जब वो दो टूटे हुए दाँतों के बीच से ज़बान की नोक निकालती है, तो उस वक़्त कितनी शोख़ और बे-बाक दिखाई देती है, आज वो ख़ुश था, अगर उसके बस की बात होती तो वो कटी को मल्लिका बना देता, लेकिन वो ख़ुद क़ल्लाश था, वो सिर्फ़ मेहनत करके अपना पेट पाल सकता था, यही सोचते-सोचते दो घंटे गुज़र गए, लेकिन इस दौरान में सुरेंद्र पिक्चर देख सका, उसकी निगाहें कटी की तरफ़ थीं, उसके हाथ कटी की तरफ़ बार-बार जाते वो कटी के हाथों को अपने हाथों में ले लेता, और दबाने लगता, कभी कटी के बालों को छेड़ने लगता, कभी वो कटी के कानों को प्यार से खींचता, और उसी नोक-झोंक में फ़िल्म ख़त्म हो गई।

    वो कार में बैठ कर एक होटल में चले गए, गोपाल कुछ रंजीदा-ख़ातिर नज़र आता था, ऐसा दिखाई देता था कि मल्टी का रवैया उसके साथ अच्छा नहीं रहा, कार में बैठ कर गोपाल ने सुरेंद्र को बताया कि मल्टी ने उसे हाथ तक नहीं लगाने दिया, एक बार गोपाल ने मल्टी को चूमने की कोशिश की लेकिन मल्टी ने गोपाल की इस हरकत पर बहुत बुरा-भला कहा, समझ में कुछ नहीं आता, ये लड़कियाँ किस क़िस्म की हैं, और क्या चाहती हैं, कम-बख़्त हाथ तक तो लगाने नहीं देतीं, और सुरेंद्र ने धीरे से कहा, मियाँ सब्र करो।

    और फिर चारों ने होटल में चाय पी और टोस्ट खाए, कटी ने निहायत प्यार से सुरेंद्र को टोस्ट खिलाए वो उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराती रही, कभी-कभी अपनी छोटी सी पतली ज़बान लबों से निकाल कर सुरेंद्र को चिड़ाती कभी चाय का प्याला छीन कर उसे चाय पिलाने लगती। और कभी-कभी यूँ ही हँसने लगती, मल्टी अक्सर ख़ामोश रहती, वो कम बातें करतीं, दर-अस्ल मल्टी पर कटी की शख़्सियत का बहुत असर था मल्टी को मालूम था कि वो कटी से ज़ियादा हसीन नहीं है, ज़ियादा चालाक नहीं है, अगर लोग मल्टी को गवारा करते थे तो वो महज़ कटी की वजह से लेकिन गोपाल मल्टी को पाकर भी ख़ुश था, मल्टी उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराती, हँसती, लेकिन इस हँसी-ख़ुशी में एक तंज़ था।

    जैसे वो गोपाल को पसंद नहीं करती, जैसे वो गोपाल को बद-सूरत समझती और ये बात गोपाल के लिए नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त थी। ज़िंदगी में बहुत सी ऐसी बातें बर्दाश्त करनी पड़ती हैं जो इंसान बर्दाश्त करना नहीं चाहता लेकिन वक़्त की ज़रूरत इन बातों को सहने पर मजबूर कर देती है। चाय पीने के बाद वो सब कार में बैठ गए, आज होटल का बिल ज़रूरत से ज़ियादा था, सुरेंद्र की रही-सही पूँजी होटल की नज़र हो गई, और उसकी जेब बिलकुल ख़ाली हो गई, इस ख़्याल के आते ही वो कुछ उदास सा हो गया। कटी ने उसके मुँह पर हल्की सी चपत लगाई, और कहने लगी, तुम कुछ उदास नज़र आते हो।

    नहीं तो...

    अब किधर का इरादा है?

    तुम कहाँ जाना चाहती हो?

    हम तो घर जाना चाहते हैं, डैडी और मामा इंतिज़ार कर रहे होंगे।

    डैडी और मामा। सुरेंद्र ने ये दो अलफ़ाज़ फिर दोहराए, डैडी और मामा, ये दोनों के अजीब डैडी और मामा हैं उनकी लड़कियाँ सर-ए-बाज़ार ग़ैरों के साथ फिरती हैं, गुलछर्रे उड़ाती हैं, सैर करती हैं, लेकिन उनकी माँ उनसे कुछ नहीं कहती, ये अजीब क़िस्म के लोग हैं, ख़ैर उसे इन बातों से क्या ताल्लुक़? इतने में गोपाल उसके क़रीब आया और कहने लगा, कटी रूपये माँगती है।

    रूपये कैसे?

    वो माँग रही है।

    लेकिन किस बात के?

    मुझे क्या मालूम...

    मेरे पास तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं, जितने रूपये थे होटल वाले को दे दिए...

    और जो मेरे पास थे सिनेमा में ख़र्च हो गए, कम-बख़्त अजीब लड़की है, मुझे तो मल्टी ने हाथ तक लगाने नहीं दिया, और इस चक्कर में तक़रीबन सत्तर, अस्सी रूपये ख़र्च हो गए, मुझे तो कुछ ऐसी-वैसी लड़कियाँ दिखाई देती हैं।

    कटी फिर क़रीब आई, और मुस्कुरा कर गोपाल से रूपये माँगने लगी।

    रूपये नहीं हैं... सुरेंद्र ने जवाब दिया।

    कियों नहीं हैं। कटी ने ग़ुस्से में आकर कहा।

    इस वक़्त रूपये नहीं हैं, नहीं हैं, कल ज़रूर देंगे।

    मुझे आज ही ज़रूरत है, इस वक़्त अगर ख़ाली हाथ वापस जाऊँगी तो डैडी क्या कहेगा मामा क्या कहेगी।

    अगर जेब में रूपये हों तो कहाँ से लाकर दूँ।

    तो फिर तुम हमें यहाँ लाए क्यों थे?

    तुम अपनी मर्ज़ी से आई थीं, हम ज़बरदस्ती पकड़ कर नहीं लाए थे।

    ज़बरदस्ती... कटी ने शरर-बार निगाहों से सुरेंद्र की तरफ़ देखा उसके चेहरे के नुक़ूश ख़ल्त-मल्त हो गए थे, उसके ख़ूबसूरत होंट बिल्कुल सिकुड़ गए, चेहरे की मुलायमियत जाती रही, आँखों की शोख़ी, शरारत बिल्कुल फ़ारस रोड की रंडी दिखाई देती थी।

    अगर रूपये नहीं दोगे तो में शोर मचाऊँगी, मैं इन लोगों को बताओंगी, कि इन लोगों ने हमारे साथ बुरा काम किया, और अब ये लोग हमें रूपये नहीं देते।

    रूपये नहीं हैं... सुरेंद्र ने डरते-डरते कहा।

    किस बात के रूपये? आख़िर कोई वजह भी हो।

    तुमने आज का दिन ज़ाए किया, हमें क्या मालूम था कि तुम ग़ुंडे हो। कटी ने चमक कर कहा।

    ग़ुंडे का लफ़्ज़ सुनते ही सुरेंद्र का होंट दाँतों के नीचे आकर कट गया, यकायक सुरेंद्र के दिमाग़ में ख़्याल आया, अगर इस लड़की ने एक लफ़्ज़ और निकाला तो वो इसको जान से मार देगा, हर्राफ़ा कहीं की... इस लड़की में कितना ज़हर है, नागिन की तरह डंक मारती है। सुरेंद्र की आँखों में ख़ून उतर आया, कटी मौक़े की नज़ाकत को भाँप गई और गालियाँ बकती हुई आगे निकल गई।

    कटी के चले जाने के बाद सुरेंद्र को एहसास हुआ कि हरे-भरे खेत में आग लग गई। नया-नया महल आन-ए-वाहिद में गिर पड़ा लेकिन सुरेंद्र का ख़ून खौल रहा था, वो कुछ सोचना चाहता था लेकिन उसकी समझ में कुछ आता था वो कटी के रूपये का जवाज़ चाहता था, कटी ने इस तरह क्यों BEHAVE... किया वो कटी की शख़्सियत से बिल्कुल बे-ख़बर था वो कभी ख़्याल भी कर सकता था कि लड़की इतनी बे-ग़ैरत हो सकती है, गुलाब की कली में इतना ज़हर हो सकता है, वो अब तक सिर्फ़ उस कटी को जानता था, जो हँसती थी मुस्कुराती थी, ख़ूबसूरत थी, जिसके रेशमी बाल थे, जिसका जिस्म मुतनासिब था जिसकी आँखों में शरारत थी जिसकी चाल में शबाब था, जिसकी आवाज़ में शहद जैसी मिठास थी, लेकिन आज की कटी बिल्कुल मुख़्तलिफ़ थी।

    ऐसा मालूम होता था कि वो एक फ़ारस रोड की रंडी है, उसकी बातों में ज़हर था, बिच्छू का डंक था, आँखों से वहशत टपकती थी, उसके लब अकड़ गए थे, चेहरे पर करख़्तगी के आसार थे उस शहद में कितनी कड़वाहट थी, उस हुस्न में कितनी गंदगी थी उस आवाज़ में कितनी तल्ख़ी थी, उस जिस्म में कितनी बू थी, ये सब कुछ क्यों हुआ, वो क्यों आन-ए-वाहिद में बदल गई और इससे पहले जो कुछ कटी ने कहा था, एक सलीक़ा था, एक तरतीब थी, एक तसलसुल था। इतने में कार घर के क़रीब रुकी।

    बहुत ही चालाक थीं ये लड़कियाँ। गोपाल ने शिकस्त-ख़ूर्दा आवाज़ में कहा।

    मुझे तो इस क़िस्म के सुलूक की हर्गिज़ तवक़्क़ो थी। सुरेंद्र ने सर नीचा करके कहा।

    भाई सच बात तो ये है कि मैं तो इनसे मिलने से रहा, एक तो रूपये ज़ाए करूँ और फिर गालियाँ खाऊँ, आज से मैं इनके साथ घूमने नहीं जाऊँगा, अच्छा ख़ुदा हाफ़िज़। सुरेंद्र ने हैट उठाया और चल दिया।

    सुरेंद्र रात भर सो सका, उसे रह-रह कर अपने आप पर ग़ुस्सा रहा था। वो चाहता था कि दोबारा उन से कभी मिले, वाक़ई उन लड़कियों से कभी नहीं मिलना चाहिये, उन लड़कियों ने इसकी बे-इज़्ज़ती की है। इसके मुँह पर थूका है, इसे उल्लू बनाने की कोशिश की है, बल्कि उल्लू बनाया है, इसे उन लड़कियों से कभी नहीं मिलना चाहिये, लेकिन दिल के दूसरे कोने से एक और ही आवाज़ रही थी एक और वही तस्वीर उभर रही थी, उसके नुक़ूश सुरेंद्र के दिल की सतह पर बहुत गहरे पड़ गए थे, वो नक़्श थे कटी के, उस ख़ूबसूरत लड़की के जो इसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराती थी, जिसने इस के गालों को हल्की सी चपत लगाई थी, जिसने सिनेमा हॉल में बैठ कर कहा था।

    आई लव यू... जो अक्सर छोटी सी पतली सी ज़बान दाँतों के दरमियान से निकाल कर उसे चिड़ाती थी, ये तस्वीर रह-रह कर उसे याद दिलाती थी सुरेंद्र जज़्बाती था, गोपाल से ज़ियादा ज़हीन और हस्सास था, शायद उसे औरत के क़ुर्ब की ज़ियादा ज़रूरत थी, शायद उसे कटी से इश्क़ हो गया था, इश्क़... वो हँसने लगा, जी हाँ, कितना फ़र्सूदा लफ़्ज़ है, अब तो बिल्कुल बे-जान हो कर रह गया है इस मशीनी दौर में इश्क़ करना मज़ाक़ उड़ाना है।

    नहीं भाई इश्क़ नहीं था, बल्कि वो लड़की का जिस्म चाहता था, अजीब सी बात है, निहायत साफ़ सी बात है, जी हाँ सुरेंद्र को कटी से इश्क़ हो गया था, वो चाहता था कि वो कटी के क़रीब रहे, उससे बातें करे, उससे मज़ाक़ करती रहे और कहती रहे आई लव यू... आई लव यू... आई लव यू... नहीं वो कटी को नहीं जाने देगा वो उसे ओझल नहीं होने देगा। कटी उसकी रूह है... उसकी ख़ुशी है वो कटी को पकड़ सकता है, उसे अपने पास रख सकता है, लेकिन किस तरह... उसने सोचना चाहा... और बार-बार यही जवाब मिला, कि, वो क़ल्लाश है, ग़रीब है, वो हर रोज़ बीस या तीस रूपये कटी पर ख़र्च नहीं कर सकता, लेकिन वो कटी को चाहता है, वो रूपये ज़रूर हासिल करेगा, वो लोगों से माँगेगा, दोस्तों के आगे हाथ फैलाएगा, वो रात-दिन काम करेगा, वो हर मालदार आदमी के आगे नाक रगड़ेगा। और अगर कहीं से रूपये कमा सका तो वो चोरी करेगा, डाका डालेगा... लेकिन कटी को हाथ से नहीं जाने देगा, नहीं जाने देगा।

    जब सुबह उठा तो दिल का ग़ुबार कुछ हल्का पड़ गया था, इश्क़ की जगह कुछ ख़ुद्दारी ने ले ली थी। और उसके दिल में ये ख़्याल रहा था कि उसे दोबारा कटी से नहीं मिलना चाहिये, और वो मिल भी नहीं सकता उसके पास रूपये नहीं हैं वो चोरी नहीं करेगा लेकिन वो दोस्तों से रूपये ज़रूर माँगेगा, वो ज़ियादा काम कर सकता है, और इस तरह वो काफ़ी रूपये कमा सकेगा, लेकिन अब कटी उससे बात नहीं करेगी, भला वो क्यों उससे मिलेगी, वो उससे बिल्कुल नाराज़ हो गई है, ये सोचते-सोचते वो ख़ुदा-दाद सर्किल की तरफ़ रवाना हो गया।

    उस दिन वो ख़ुदादाद सर्किल में आईं, वो हर रोज़ उस सर्किल के क़रीब जाता, लेकिन मायूस वापस लौटता। कमरे में बैठ कर अपने आप को कोसने लगता, और ख़ास कर उस माहौल को जिसमें वो रहता था। काश उसके पास रूपये होते... या कोई ऐसा काम कर सकता जिससे उसके जेब में सौ-सौ के नोट होते, वो नोट लेकर कटी के पास जाता और उसके मुँह पर मारता और कहता, ये लो नोट अगर तुम्हें उनसे मोहब्बत है तो ये लो... एक नहीं दस नोट, दस नहीं सौ-सौ नोट, इनको ले जाओ और अपने डैडी और मम्मी को दो। और इसके बाद कभी मुझसे मिलना। ये सोचते-सोचते उसे अपने आप पर ग़ुस्सा जाता, इस सिस्टम पर ग़ुस्सा जाता, उस ज़िंदगी पर ग़ुस्सा जाता, उन ना-मुराद लड़कियों पर ग़ुस्सा जाता, और इस तरह वो अपनी ज़िंदगी में ज़हर भरता रहा, आख़िर और कर भी क्या सकता था, कभी-कभी अपने आपको गाली भी देने लगता।

    अरे कम-बख़्त तू कटी को दस रूपये दे सका, शायद उसके डैडी मामा को ज़रूरत हो, अगर वो किसी दोस्त से माँग कर उसे रूपये दे देता तो कटी उससे कभी नाराज़ होती, ख़ैर कोई बात नहीं वो सिर्फ़ उसे मनाएगा और उसे रूपये देगा, और बहुत से रूपये देगा।

    एक दिन कटी उसे ख़ुदा-दाद सर्किल में मिल गई।

    कटी ने उसकी तरफ़ देखा।

    सुरेंद्र ने कटी को देखा।

    कटी मुस्कुरा पड़ी, और उसने अपनी ज़बान दो टूटे हुए दाँतों के दरमियान से निकाली और फिर खिलखिला कर हँस पड़ी।

    हैलो...

    हेलो...

    कटी, मल्टी और वो एक होटल में चले गए, इस दौरान में वो गुज़री हुई बातें भूल गए, अब ज़िंदगी फिर ख़ुशगवार हो रही थी, अब फिर इस ज़िंदगी में आग थी, लबों पर मुस्कुराहट थी, वो तीनों फिर गर्म चाय पी रहे थे, और ज़ंगी ख़ुशगवार हो रही थी, मल्टी ने गोपाल के मुताल्लिक़ पूछा, और सुरेंद्र ने ये कह कर टाल दिया कि वो कई दिनों से गोपाल से नहीं मिला। सुरेंद्र ने होटल का बिल अदा किया... और मल्टी ने उससे पिक्चर दिखाने के लिए कहा, और वो मान गया।

    पिक्चर शुरू हो गई। कटी उसके पास बैठी हुई थी, वो कटी जिसकी तलाश में नींद हराम हो चुकी थी, जिसकी याद में वो अक्सर रो चुका था, जिस को पाने के लिए वो चोरी तक करने को तैयार था, जिसको हासिल करने के लिए वो दोस्तों के सामने हाथ फैलाने को तैयार था, जिसके लिए वो मालदार आदमियों के सामने अपना दामन तक बेचने के लिए तैयार था। वो आज उसके साथ बैठी हुई थी, कटी ने फ़राक़ पहना हुआ था, कटी उसी तरह हँस रही थी, खेल रही थी मुस्कुरा रही थी, उसके हाथ को दबा रही थी, उसका गर्म साँस उसके गालों, लम्स हो रहा था, वो ख़ुश था, एक अर्से के बाद कटी उसे मिल गई थी, वो कटी को पा लेगा, वो कटी से शादी कर लेगा, वो कटी को कभी नहीं छोड़ सकता, कटी सिर्फ़ उसकी है, सिर्फ़ उसकी है, वो कटी से शादी कर लेगा, वो कटी को बहुत रूपये देगा वो दिन-रात मेहनत करेगा, कटी ख़ूबसूरत है बहुत ही ख़ूबसूरत है, कटी जवान है, बहुत ही जवान है, वो कटी को राह रास्त पर ले आएगा।

    अगर कटी में कुछ ख़ामियाँ हैं तो वो उन्हें दूर करने में कटी की मदद करेगा, कटी को आज तक कोई अच्छा इंसान नहीं मिला, उसे शरीफ़ों की महफ़िल में बैठने का मौक़ा नहीं मिला, इसलिए उसकी शख़्सियत दो हिस्सों में बट गई है, इसीलिए उसकी तस्वीर के दो रुख़ हैं। अगर एक रुख़ अच्छा है तो दूसरा बहुत ही बुरा है अगर एक से प्यार है तो दूसरे से नफ़रत, वो अच्छे रुख़ को उभारेगा, वो कटी की ज़िंदगी को बेहतर बनाएगा, वो कटी को बताएगा कि तुम्हारी एक अच्छी शख़्सियत भी है, इस शख़्सियत से कटी बेगाना है, उसे शख़्सियत का कुछ इल्म नहीं, ख़ैर उसे इस वक़्त कुछ नहीं सोचना चाहिये, आहिस्ता-आहिस्ता कटी का हाथ उसके सीने की तरफ़ बढ़ रहा था।

    वो क्या चाहती है।

    कटी का हाथ सुरेंद्र के कोट की अंदुरूनी जेब में चला गया।

    कटी ने उसका बटवा निकाल लिया।

    वो ख़ामोश रहा।

    कटी ने बटवा में से रूपये निकाल लिए।

    और वो ख़ामोश हो गया।

    कटी ने सब नोट अपनी जेब में रख लिए।

    वो बिल्कुल ख़ामोश हो गया।

    कटी ने चेंज भी अपनी जेब में रख लिया, वो ख़ामोश बैठा रहा।

    कटी ने ख़ाली बटवा उसकी जेब में रख दिया।

    और वो ख़ामोश बैठा रहा, उसने कुछ नहीं कहा, पिक्चर ख़त्म हो गई और वो उठ खड़े हुए।

    कटी ने इजाज़त माँगी और उसने सर हिला दिया, और वो दोनों उसकी निगाहों से ओझल हो गईं।

    उसके बटुवे में तीन रूपये और कुछ आने थे, वो सब कटी ने निकाल लिए, उसके पास बस के लिए कराया भी था और वो सड़क पर पैदल चलता रहा, उसके क़रीब से लोग गुज़र रहे थे। लेकिन उसे किसी की मौजूदगी का एहसास था, वो सिर्फ़ आज के हादसे पर ग़ौर कर रहा था, वो सोच रहा था कि ऐसा क्यों होता है, वो सोच रहा था कि अच्छी भली लड़कियाँ आन-ए-वाहिद में किस तरह तवाइफ़ का रूप धारण कर लेती हैं, वो सोच रहा था कि और लोग चले जा रहे थे, आगे बढ़ रहे थे पीछे हट रहे थे, वो सोच रहा था लेकिन ज़िंदगी अफ़्सुर्दा और बे-कैफ़ होती जा रही थी, वो सोच रहा था और कटी दूर जा चुकी थी, और सोच रहा था, और यकायक उसे महसूस हुआ कि वो कटी उससे उसे मोहब्बत थी मर चुकी है, सिर्फ़ एक तवाइफ़ उसके सामने हाथ फैलाए अपने जिस्म की क़ीमत माँग रही है। उसकी आँखों में आँसू गए, और वो आगे बढ़ता गया।

    स्रोत:

    Mahender Nath Ke Behtareen Afsane (Pg. 93)

    • लेखक: महेनद्र नाथ
      • प्रकाशक: उपेन्द्र नाथ
      • प्रकाशन वर्ष: 2004

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