अयादत होती जाती है इबादत होती जाती है
मिरे मरने की देखो सब को आदत होती जाती है
मैं सर-ब-सज्दा सकूँ में नहीं सफ़र में हूँ
जबीं पे दाग़ नहीं आबला बना हुआ है
ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
अयादत होती जाती है इबादत होती जाती है
मिरे मरने की देखो सब को आदत होती जाती है
मैं सर-ब-सज्दा सकूँ में नहीं सफ़र में हूँ
जबीं पे दाग़ नहीं आबला बना हुआ है
ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे