शाहिद ज़की

ग़ज़ल 18

अशआर 11

मैं आप अपनी मौत की तय्यारियों में हूँ

मेरे ख़िलाफ़ आप की साज़िश फ़ुज़ूल है

मैं बदलते हुए हालात में ढल जाता हूँ

देखने वाले अदाकार समझते हैं मुझे

रौशनी बाँटता हूँ सरहदों के पार भी मैं

हम-वतन इस लिए ग़द्दार समझते हैं मुझे

यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे

मैं समझता था मिरे यार समझते हैं मुझे

बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है

सूरज से रौशनी की गुज़ारिश फ़ुज़ूल है

चित्र शायरी 3

 

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