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जादुई यथार्थवाद पर कहानियाँ

लाल च्यूँटियाँ

यह धर्म, आध्यात्मिकता और हताश मानव स्थिति की कहानी है। यह एक ऐसे दूर स्थित गाँव की कहानी है जहाँ के अधिकतर लोग ग़रीब हैं। उस गाँव में खपरैल की एक मस्जिद है। कहानी मस्जिद के दो पेश इमामों के आसपास घूमती है। पहला इमाम नौकरी छोड़कर चला जाता है तो धूल के ग़ुबार से एक दूसरा इमाम प्रकट होता है। शुरू में तो सब कुछ ठीक-ठाक रहता है, फिर गाँव में विचित्र घटनाएँ होने लगती हैं। नया इमाम जो भी भविष्यवाणी करता है वो सच होती है और उसकी बद-दुआओं से सारा गाँव परेशान हो जाता है। दूसरी तरफ़ ख़ुद पेश-इमाम आर्थिक बद-हाली का शिकार है। उसकी बीवी के मुर्दा बच्चा पैदा होता है और निरंतर भूख से परेशान हो कर बीवी पेश इमाम को छोड़ कर भाग जाती है। एक दिन लोग देखते हैं कि पेश इमाम ने मस्जिद के छप्पर को आग लगा दी है।

सिद्दीक आलम

ढाक बन

यह आधुनिक समाज के साथ आदिवासी संघर्ष के जादूई यथार्थ की कहानी है। वो लोग काना पहाड़ के बाशिंदे थे। उसे काना पहाड़ इसलिए कहते थे कि जब सूरज उसकी चोटी को छू कर डूबता तो कानी आँख की शक्ल इख़्तियार कर लेता। काना पहाड़ के बारे में बहुत सारी बातें मशहूर थीं। इस पर बसे हुए छोटे-छोटे आदिवासी गाँव अब अपनी पुरानी परम्पराओं से हटते जा रहे हैं। उनमें से कुछ पर ईसाई मिशनरी हावी हो गए हैं और कुछ ने हिंदू देवी देवताओं को अपना लिया है। मगर जो अफ़वाह सबसे ज़्यादा गर्म थी और जिसने लोगों को बेचैन कर रखा था वो ये थी कि अब काना पहाड़ से आत्माएं स्थानांतरित हो रही हैं। वो यहाँ के लोगों से नाख़ुश हैं और एक दिन आएगा जब पहाड़ के गर्भ से आग निकलेगी और पेड़ पौधे, घर और प्राणी इस तरह जलेंगे जिस तरह जंगल में आग फैलने से कीड़े मकोड़े जलते हैं।

सिद्दीक आलम

जानवर

यह नारी विमर्श और मानव विरचना की कहानी है। वह शहर के पुराने इलाक़े में एक पुरानी इमारत के तीन कमरों वाले एक फ़्लैट में अपने शौहर और बच्चे के साथ रहती थी। बच्चा जवान था और अब बीस बरस का हो चुका था। डाक्टरों के अनुसार उसकी शारीरिक उम्र बीस बरस सही, मानसिक रूप से वह अभी सिर्फ़ दो साल का बच्चा है। एक दिन बाज़ार में सड़क पर टैक्सी का इंतज़ार करते हुए जानवरों से भरी एक वैन उसके सामने आकर रुकी। उस वैन के मालिक ने एक अजीब-ओ-ग़रीब जानवर उसे दिया जो बहुत सारे जानवरों का मिश्रण था। उसने वह जानवर इस शर्त पर अपने बच्चे के लिए ले लिया कि अगर पसंद न आया तो वह उसे वापस लौटा देगी। जानवर को घर लाते ही अचानक उसके घर के लोगों में अजीब सा बदलाव दिखाई देने लगा, यहाँ तक कि उस औरत के लिए यह फ़ैसला करना मुश्किल हो गया कि आख़िर जानवर कौन है, वो अजीब सा जानवर या ख़ुद वो लोग।

सिद्दीक आलम

मरे हुए आदमी की लालटेन

इस कहानी में ज़िंदगी को एक ऐसे थियेटर के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो नाजायज़ है। वो एक साल बाद गाँव लौट रहा था जहाँ उसकी शादी होने वाली थी। उसके घर वालों ने उसके लिए दूर के एक गाँव में एक लड़की देख रखी थी। लड़की वाले बहुत ग़रीब थे मगर लड़की बला की ख़ूबसूरत थी। समय बर्बाद किए बिना उनकी शादी कर दी गई। जब उसके सारे पैसे ख़त्म हो गए तो उसे शहर लौटना पड़ा। मगर अब शहर में उसका दिल नहीं लगता था। वो सुबह शाम और कभी-कभी दिन में भी अपनी बीवी से मोबाइल पर बात कर लिया करता था। यह मोबाइल चोरी की थी जिसे उसने बहुत सस्ती क़ीमत पर ख़रीद कर अपनी बीवी को दी थी। उसकी बीवी ने कभी उससे घर आने की फ़र्माइश नहीं की। सिर्फ़ एक-बार उसने दबे शब्दों में कुछ कहना चाहा मगर कुछ सोच कर चुप हो रही। उसने बार-बार कुरेदने की कोशिश की मगर वो टाल गई। फिर एक दिन उसे अपनी बीवी की मोबाइल बंद मिली।

सिद्दीक आलम

चोर दमिस्को

एक बेतुकी दुनिया में रहने के ढोंग के रूप में अपराध करने की कहानी है। दमस्कू एक सत्रह बरस का नौजवान था जिसे आसान काम की तलाश थी हालांकि उसके झक्की बाप ने उसे बताया था कि इस दुनिया में आसान काम से ज़्यादा मुश्किल काम कुछ नहीं होता। उसके दोस्त फुलिंदर ने उसकी परेशानी दूर कर दी। फुलिंदर ने ट्राम डिपो के पिछवाड़े मुर्दा घर के रास्ते पर एक सुनसान गली का पता लगाया था जहाँ एक बहुत ही बूढ़ा बंगाली जोड़ा रहता था जो आँखों से अंधे थे। वो इस घर का सारा सामान साफ़ करना चाहता था। मगर वो यह काम अकेला नहीं कर सकता था। उसे एक ऐसे आदमी की ज़रूरत थी जो दमस्कू की तरह तेज़ और बहादुर हो। मैं किसी मुसीबत में तो नहीं पड़ूंगा? दमस्कू ने अपनी शंका ज़ाहिर की तो उसके दोस्त ने कहा कि जितनी जल्द हो सके मुसीबत में पड़ना सीख लो, तुम्हारी दुनिया बदल जाएगी। ज़िंदगी में कामयाब होने के लिए इससे बेहतर नुस्ख़ा और कुछ नहीं हो सकता। इस तरह दमस्कू को उसका आसान काम मिल गया।

सिद्दीक आलम

फ़ोर सेप्स

यह आधुनिक तकनीक में लिखी एक आधुनिक कहानी है। इस कहानी का मुख्य पात्र संदीपन कोले, जिसकी पैदाइश चिमटी की मदद से हुई थी, कहानी के लेखक सिद्दीक़ आलम से रुष्ट है जो अपनी कहानी अपने ढंग से बयान करना चाहता है। ये बात उसे पसंद नहीं। वो अपनी ज़िंदगी को अपने ढंग से जीना चाहता है। वो बार-बार लेखक से क़लम छीन लेता है, मगर लाख कोशिश के बावजूद उसकी ज़िंदगी उसी लीक पर चल पड़ती है जिस पर उसका लेखक उसे चलाना चाहता है। आख़िरकार वो लेखक से टक्कर लेने का फ़ैसला करता है और एक ऐसे सीधे रास्ते पर चल पड़ता है जो उसके पतन की भूमिका सिद्ध होती है। कहानी के अंत से पूर्व लेखक उससे कहता है, तुमने सोचा था कि तुम पन्नों से बाहर भी सांस ले सकते हो, देखो, तुमने अपना सत्यानास कर लिया ना?

सिद्दीक आलम

ख़ुदा का भेजा हुआ परिंदा

यह तथ्यों और कल्पनाओं पर आधारित मानव जाति के वास्तविक संसार से परिचय कराती कहानी है। अंग्रेज़ देश छोड़कर जा चुके थे। मुसलमानों की एक बड़ी आबादी पूर्वी पाकिस्तान का रुख़ कर चुकी थी। बस्ती में कुछ ही मुसलमान रह गए थे जो अब तक रावी के दादा की दो मंज़िला इमारत से आस लगाए बैठे थे और जब भी शहर के अंदर फ़साद का बाज़ार गर्म होता पनाह लेने के लिए उनके यहाँ आ जाते। उसके दादा को इस बात का दुख था कि आए दिन उन्हें पाकिस्तानी जासूस होने के आरोप का सामना करने के लिए थाना जाना पड़ता है। फिर एक दिन वो दंगाइयों के द्वारा स्टेशन के प्लेटफार्म पर मार डाले गए। उसके दादा के घर में कई किराएदार रहते थे जिनमें एक किराएदार बुध राम था जो दादा के साथ लम्बे समय तक रेलवे में नौकरी कर चुका था। उसकी सारी ज़िंदगी की पूंजी एक ट्रंक में बंद थी जिस पर बैठे-बैठे वो खिड़की से बाहर आसमान पर नज़रें टिकाए रहने का आदी था। उन ही तन्हाई के दिनों में एक दिन उसने एक तोते की कहानी सुनाई जिसके जिस्म पर अल्लाह का नाम लिखा हुआ था। ये तोता एक अधेड़ उम्र की औरत उसके पास बेचने आई थी, जिसे देखते ही बुध राम ने महसूस किया, अब यहाँ बुरा वक़्त आने वाला है।

सिद्दीक आलम

बैन

यह बारह बरस के एक ऐसे लड़के की कहानी है जो अपनी चचा-ज़ाद बहन अंगूरा जो उम्र में उससे कई साल बड़ी थी, को पसंद करता था और जिसके लिए उसके अंदर की कामेक्षा कुलबुलाने लगी थी। चचा रेलवे में इंजन चलाया करते थे। उन दिनों उसकी पोस्टिंग एक दूर-दराज़ स्टेशन पर थी जो पहाड़ों से घिरा हुआ था। एक दिन अंगूरा ने उसे उस लड़के के बारे में बताया जिससे वह रेलवे के एक ख़ाली क्वार्टर में मिला करती थी और अब कुछ ही दिनों में वह उस लड़के के साथ भाग जाने वाली है। उसका चचेरा भाई उससे कहता है कि वो अपने बाप को उस लड़के के बारे में बता दे, शायद वो दोनों की शादी के लिए राज़ी हो जाएं। अंगूरा ने कहा कि उसका बाप इसके लिए कभी राज़ी न होगा क्योंकि उस लड़के पर कई ख़ून के इल्ज़ाम हैं और पुलिस हमेशा उसकी तलाश में रहती है। चचेरा भाई उस लड़के से मिलने से मना करता है तो अंगूरा ने जवाब दिया कि वह एक ऐसे बाप की बेटी है जिसके बाज़ू पर उसकी रखैल का नाम गुदा हुआ है।

सिद्दीक आलम

अच्छा ख़ासा चीरवा

यह एक फंतासी है। जाड़े की एक सुबह एक आदिवासी अपने सुअर के साथ पहाड़ से उतर कर उसे बेचने के लिए क़स्बे की तरफ़ जा रहा था। हालाँकि यह इतना आसान काम न था। उस कस्बे में दूसरे चौपायों की तरह सुअरों की कोई साप्ताहिक मंडी नहीं लगती थी और सुअर को किसी चौराहे पर खड़े हो कर बेचने के लिए आवाज़ लगाना कुछ विचित्र सी प्रक्रिया थी। इसलिए वह निराश हो कर वापस आ रहा था कि पहाड़ी ढलान पर एक तीन झोंपड़ों वाले गाँव पर रात हो गई। ये तीनों झोंपड़ियाँ दर-अस्ल तीन चुड़ैलों की थीं जो सूरज डूबते ही पेड़ों पर जा बसती थीं। चुड़ैलों ने आदिवासी से सुअर छीनने की भरपूर कोशिश की, इसलिए उसे एक स्थानीय किसान के घर में पनाह लेनी पड़ी। आदिवासी के लिए वो रात दुष्ट आत्माओं वाली रात साबित हुई। सुबह होते ही आदिवासी ने फ़ैसला किया कि वह सुअर के साथ इन रास्तों से गुज़र कर कभी अपने घर नहीं पहुँच सकता। इसलिए उसने किसान को वह सुअर उपहार के रूप में दे दिया जिसे उसकी बेटी ने फ़ौरन एक नाम दे डाला और सरसों के खेत में सैर कराने चल दी।

सिद्दीक आलम

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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