मुझे दुनिया के ता'नों पर कभी ग़ुस्सा नहीं आता
नदी की तह में जा के सारे पत्थर बैठ जाते हैं
नज़र आती नहीं हैं कम-नज़र को
सराबों के जिगर में नद्दियाँ हैं
मैं डूबा जा रहा हूँ उन सदाओं के भँवर में
मुझे अब चारों जानिब से पुकारा जा रहा है
वो पानी में जब अपनी छब देखता है तो मैं भी
नदी चाँदनी में नहाते हुए देखता हूँ