कटी है उम्र बस ये सोचने में
मिरे बारे में वो क्या सोचता है
ये न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
किसी के होने न होने के बारे में अक्सर
अकेले-पन में बड़े ध्यान जाया करते हैं
जब से इस दश्त में आया हूँ इसी सोच में हूँ
कि बयाबान में क्या सोच कर आता है कोई
ये सोच के दानिस्ता रहा उस से बहुत दूर
मग़रूर है दरिया मुझे प्यासा न समझ ले
हर फ़िक्र सिर्फ़ जागने वाले का है नसीब
जो सो रहा है बस वही बंदा मज़े में है