उफ़ुक़ पे यादों के ज़र्द आँचल में लिपटा सूरज
और उस पे शामों के साथ ढलती 'अजीब सी चुप
आप के शहर में सूरज तो निकलने से रहा
एक मशअ'ल ही मिरे हात में रहने दीजे
ये चाँद सा चेहरा है कि सूरज की किरन है
ज़ुल्फ़ें हैं तिरी रात सुहानी है कि क्या है
ये ताक़चों में रखे सब चराग़ सूरज हैं
अगर वो चाँद सा चेहरा हमारा हो जाए