मैं परदेसी मुसाफ़िर हूँ तुम अपना यार मत समझो
मैं परदेसी मुसाफ़िर हूँ तुम अपना यार मत समझो
मौलाना जलालुद्दीन रूमी
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मैं परदेसी मुसाफ़िर हूँ तुम अपना यार मत समझो
मज़ारे' हूँ तुम्हारा सरवर-ओ-सालार मत समझो
तुम्हारे साया-ए-एहसाँ का हूँ मैं सिर्फ़ हम-साया
न समझो हम-सफ़र तुम मुशफ़िक़-ओ-ग़म-ख़्वार मत समझो
सदा गर्दिश में रहता है तुम्हारा शर्बत-ए-रहमत
मुझे तुम तिश्ना-ओ-तब-ख़ूरदा-ओ-बीमार मत समझो
जब इस ख़ुर्शीद से हर संग की खुल जाएगी क़िस्मत
मुझे फिर मुंतज़िर और कुश्ता-ए-दीदार मत समझो
गुनहगारों के 'इस्याँ फूँक डाले वो करम हो तुम
मुझे भी ताइब-ओ-मुस्तग़्फ़िर-ए-ग़फ़्फ़ार मत समझो
तुम्हारे बाल-ओ-पर से सब परिंदे उड़ने लगते हैं
मुझे चिड़िया समझ लो जाफ़र-ए-तय्यार मत समझो
तमाशा-ए-निहाँ बख़्शा है तुम ने सोने वालों को
मुझे सोता समझ लो हाज़िर-ओ-बेदार मत समझो
ये तस्वीरें हैं जिस्म-ए-'इश्क़ कब है 'इश्क़ बे-सूरत
इसे बे-ख़ाल-ओ-ख़त जूँ क़ुल्ज़ुम-ए-ज़ख़्ख़ार मत समझो
मैं ख़ुश हूँ इस गली में घर मिरा वीरान समझो तुम
तुम्हारी बू से ख़ुश हूँ नाफ़ा-ए-तातार मत समझो
बने हैं कुफ़्र-ओ-ईमाँ आज जब कि 'इश्क़ अज़ल से है
करें जब 'इश्क़ काफ़िर तुम उन्हें कुफ़्फ़ार मत समझो
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