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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मनीश शुक्ला

1971 | लखनऊ, भारत

मनीश शुक्ला

ग़ज़ल 107

अशआर 29

बात करने का हसीं तौर-तरीक़ा सीखा

हम ने उर्दू के बहाने से सलीक़ा सीखा

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मिरी आवारगी ही मेरे होने की अलामत है

मुझे फिर इस सफ़र के ब'अद भी कोई सफ़र देना

किसी के इश्क़ में बर्बाद होना

हमें आया नहीं फ़रहाद होना

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मैं था जब कारवाँ के साथ तो गुलज़ार थी दुनिया

मगर तन्हा हुआ तो हर तरफ़ सहरा ही सहरा था

तुझे जब देखता हूँ तो ख़ुद अपनी याद आती है

मिरा अंदाज़ हँसने का कभी तेरे ही जैसा था

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चित्र शायरी 1

 
 

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