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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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Zuhoor Nazar's Photo'

अहम तरक़्क़ी पसंद शाइरों में शुमार, ख़ास तौर पर अपनी नज़्मों के लिए जाने जाते हैं

अहम तरक़्क़ी पसंद शाइरों में शुमार, ख़ास तौर पर अपनी नज़्मों के लिए जाने जाते हैं

ज़ुहूर नज़र के शेर

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सुनते हैं चमकता है वो चाँद अब भी सर-ए-बाम

हसरत है कि बस एक नज़र देख लें हम भी

वो भी शायद रो पड़े वीरान काग़ज़ देख कर

मैं ने उस को आख़िरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं

पास हमारे आकर तुम बेगाना से क्यूँ हो

चाहो तो हम फिर कुछ दूरी पर छोड़ आएँ तुम्हें

सो सका हूँ शब जाग कर गुज़ारी है

अजीब दिन हैं सुकूँ है बे-क़रारी है

वो जिसे सारे ज़माने ने कहा मेरा रक़ीब

मैं ने उस को हम-सफ़र जाना कि तू उस की भी थी

बाद-ए-तर्क-ए-उल्फ़त भी यूँ तो हम जिए लेकिन

वक़्त बे-तरह बीता उम्र बे-सबब गुज़री

लुट गया है सफ़र में जो कुछ था

पास अपने मकान तक भी नहीं

अपनी सूरत बिगड़ गई लेकिन

हम उन्हें आईना दिखा के रहे

बरसों से खड़ा हूँ हाथ उठाए

तासीर-ए-दुआ का मुंतज़िर हूँ

ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी

मैं जो मिल जाता तो उस में आबरू उस की भी थी

घर से उस का भी निकलना हो गया आख़िर मुहाल

मेरी रुस्वाई से शोहरत कू-ब-कू उस की भी थी

तन्हाई पूछ अपनी कि साथ अहल-ए-जुनूँ के

चलते हैं फ़क़त चंद क़दम राह के ख़म भी

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