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ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-दिल जुर्म नहीं तोड़ भी दे मोहर-ए-सुकूत
जो तुझे जानते हैं उन से छुपाता क्या है
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
दफ़्तर-ए-हुस्न पे मोहर-ए-यद-ए-क़ुदरत समझो
फूल का ख़ाक के तोदे से नुमायाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
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ग़ज़ल
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा
बे-तकल्लुफ़ दाग़-ए-मह मोहर-ए-दहाँ हो जाएगा