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Hajra Masroor's Photo'

हाजरा मसरूर

1930 - 2012 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान की लोकप्रिय नारीवादी लेखिका, आजीवन पुरूष प्रधान समाज को घेरने वाली कहानियां लिखती रहीं.

पाकिस्तान की लोकप्रिय नारीवादी लेखिका, आजीवन पुरूष प्रधान समाज को घेरने वाली कहानियां लिखती रहीं.

हाजरा मसरूर की कहानियाँ

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फ़ासले

"औरत की वफ़ादारी और बे-लौस मुहब्बत की कहानी है। ज़ोहरा रियाज़ नामी शख़्स से मुहब्बत करती है लेकिन उसकी शादी नईम से हो जाती है। शादी के दिन रियाज़ ज़ोहरा से वादा कराता है कि वह नईम से मुहब्बत करेगी और इसके बाद वो दक्षिण अफ़्रीक़ा चला जाता है। उधर शादी के दिन ज़ोहरा अपने शौहर को देखकर बेहोश हो जाती है जिसके नतीजे में दोनों में अलैहदगी हो जाती है। काफ़ी अर्से बाद जब रियाज़ ज़ोहरा से मुलाक़ात की ख़्वाहिश ज़ाहिर करता है तो ज़ोहरा पुरानी यादों में गुम हो जाती है और उसकी आमद पर किसी तरह की तैयारी नहीं करती है, जब रियाज़ उससे मुलाक़ात के लिए आता है तो वो सिर्फ अपने बीवी-बच्चों और दुनियावी समस्याओं की ही बातें करता रहता है। अपने लिए किसी प्रकार की लालसा और जिज्ञासा न पा कर ज़ोहरा बुझ सी जाती है। इज़हार-ए-मोहब्बत के नाम पर वो जिस तरह के प्रदर्शन करता है उससे ज़ुहरा को निराशा होती है और वो कहती है कि वो तो कोई मसख़रा था, रियाज़ तो आया ही नहीं।"

चाँद की दूसरी तरफ़

लड़के-लड़कियों के शादी के दौरान होने वाले फ़रेब पर आधारित कहानी। वह नया-नया पत्रकार बना था और अपने एक थानेदार दोस्त जब्बार के पास हर रोज़ नई ख़बर लेने जाया करता था। उस दिन भी वह जब्बार के पास था कि अचानक एक शख़्स मना करने के बावजूद थाने में जब्बार के पास चला आया। उस व्यक्ति ने अपने जुर्म को स्वीकार करते हुए थानेदार को बताया कि उसने अपनी बेहद ख़ूबसूरत बेटी के लिए एक सुयोग्य वर ढूँढा था। जब निकाह हुआ तो पता चला कि वर वह लड़का नहीं था, जिसे उसने पसंद किया था। बल्कि वह तो कोई अधेड़ उम्र का शख़्स था। इससे निराश हो कर पहले तो उसने दामाद को ख़त्म कर देने के बारे में सोचा। मगर अपने उद्देश्य में नाकाम रहने के बाद उसने अपनी बेटी को ही मौत के घाट उतार दिया था।

औरत

औरत के मान सम्मान और बदले को बुनियाद बना कर लिखी गई कहानी है। तसद्दुक़ और क़ुदसिया आपस में मुहब्बत करते हैं लेकिन किसी कारणवश दोनों की शादी नहीं हो पाती और काज़िम क़ुदसिया का शौहर बन जाता है। शादी के बाद क़ुदसिया तसद्दुक़ को बिल्कुल भुला देती है। तसद्दुक़ पर इस घटना की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया ये होती है कि वो ग़लत-रवी का शिकार हो जाता है। काज़िम प्रायः तसद्दुक़ को बहाना बना कर क़ुदसिया पर तंज़ करता रहता है जिसे क़ुदसिया नज़र-अंदाज कर देती थी। एक दिन जब तसद्दुक़ क़ुदसिया से मिलने आता है तो काज़िम क़ुदसिया को ज़हरीली नागिन के नाम से मुख़ातिब करते हुए पूछता है कि बताओ उससे क्या बातें हुईं। क़ुदसिया कहती है कि जब आप अपनी रातें आवारा औरतों के साथ गुज़ारते हैं, तो मैं तो नहीं पूछती कि क्या बातें हुईं। इस पर काज़िम बिफर जाता है। क़ुदसिया पुलिस स्टेशन फ़ोन कर देती है कि काज़िम मुझे क़त्ल करना चाहता है और फिर पिस्तौल से ख़ुद को गोली मार लेती है। क़त्ल के जुर्म में पुलिस काज़िम को गिरफ़्तार कर लेती है।

हाये अल्लाह

"बचपन से ही लड़कियों पर बेजा बंदिशों से पैदा होने वाले नतीजों को बयान करती हुई कहानी है। दादी अपनी पोती नन्ही को अपने चचाज़ाद भाई के साथ भी खेलने से मना कर देती हैं और समय समय पर अनेक प्रकार की चेतावनियाँ और धमकियाँ देती रहती हैं। परिणामस्वरूप नन्ही का आकर्षण अपने चचाज़ाद भाई की तरफ़ बढ़ता रहता है और जब वो शबाब की दहलीज़ पर क़दम रखती है तो एक अनजाने जज़्बे के तहत अपने चचाज़ाद भाई के कमरे में पहुंच जाती है। सल्लू भैया सो रहे होते हैं। बिखरे हुए बाल और भीगी हुई मसें देखकर और दादी की ज़्यादतियाँ याद करके उसका दिल भावनाओं से परास्त हो जाता है और वो अपना सर सल्लू भैया के सीने पर रख देती है। उसी वक़्त दादी नन्ही को तलाश करती हुई आ जाती हैं और उनके पोपले मुँह से हाये अल्लाह के सिवा कुछ नहीं निकल पाता।"

मुहब्बत और...

औरत की मजबूरियों, अभावों और मर्द की बे-वफ़ाई को बयान करती हुई कहानी है। बेटी अपने घर के सामने रहने वाले एक लड़के से मुहब्बत करती है। लड़का उसे ख़त लिखता है कि आज आई पी एस का रिज़ल्ट आ गया है और मैं कामयाब हूँ। आज शाम को तुम्हारी माँ से बात करने आऊँगा। वो ख़त माँ के हाथ लग जाता है और वो लड़की के सामने पति और ससुराल के अत्याचारों और आर्थिक कठिनाइयों का वर्णन ऐसे ढंग से करती है कि लड़की अपना फ़ैसला बदलने पर मजबूर हो जाती है और शाम को जब लड़का उससे मिलने घर आता है तो वो उसे मना कर देती है। लड़की को ऐसा लगता है कि लड़का उससे बिछड़ कर मर जाएगा लेकिन जब वो अगले दिन बालकनी में उसे कुल्ली करते हुए देखती है तो उसकी हालत अजीब सी हो जाती है। डाक्टर बताते हैं कि उसे हिस्टीरिया का दौरा पड़ा है लेकिन वो कठोरता से खंडन करती है।

एक बच्ची

छः शिक्षित बहनों और एक माँ पर आधारित कुंबे की कहानी है जिसकी सरपरस्ती उनके चचा करते हैं। बड़ी बहन एक स्कूल में शिक्षिका है और बाक़ी पाँचों बहनें अभी शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। बहनों में आपस में कभी सहमति नहीं हो पाती और यदा-कदा एक दूसरे पर चोटें करती रहती हैं। बड़ी बेटी की उम्र काफ़ी हो चुकी है। एक रात वो हेड मिस्ट्रेस बनने के ख़्वाब देखते हुए अपने उज्जवल भविष्य के ताने-बाने बुन रही होती है कि चचा एक बच्ची को गोद लेने के सिलसिले में दरयाफ़्त करते हैं जिसकी माँ का देहांत हो गया था। उसकी ममता जोश में आ जाती है और वो बच्ची को गोद लेने की इच्छा प्रकट करती है। वो उस बच्ची की कल्पना में गुम हो कर उसके भविष्य के बारे में सोच रही होती है कि उसकी माँ ये कह कर उसके सारे अरमानों पर पानी फेर देती है कि ''पर्वा कैसे नहीं करोगी, जब दुनिया कहेगी कि तुम्हारी हरामी बच्ची है, पढ़ी लिखी लड़कियों का नाम वैसे भी बदनाम है।"

कमीनी

वर्ग संघर्ष को बयान करती हुई कहानी। छुटकी जो एक फ़क़ीर की बेटी थी लेकिन उसे ये पेशा कभी पसंद न आया। इसीलिए जब उसके बावा का देहांत हो गया तो उसने एक घर में झाड़ू पोंछा करने का काम शुरू कर दिया, जहाँ मेराजू मियाँ से उसकी आश्नाई हो जाती है और उस आश्नाई का नतीजा निकाह होता है, जिसका सारा ठीकरा छुटकी के सर ही फोड़ा जाता है और मेराजू मियाँ को मासूम समझ कर बरी कर दिया जाता है। सारा ख़ानदान जब मेराजू मियाँ का बहिष्कार कर देता है तो वो छुटकी के साथ अलग रहने लगते हैं। उधर ख़ानदान वालों का ख़ून जोश मारता है और एक आयोजन में मेराजू को छुटकी समेत बुलाया जाता है लेकिन वहाँ छुटकी को एक दस्तरख़्वान पर बिठा कर खाना नहीं खिलाया जाता है जिससे छुटकी उदास हो जाती है। मेराजू मियाँ जो एक मुद्दत के बाद अपने ख़ानदान वालों के सद्व्यवहार के नशे में होते हैं, एक मामूली सी बात पर छुटकी को हरामज़ादी, कमीनी कह कर घर से बे-दख़ल कर देते हैं।

मासूम मोहब्बत

बच्चों के मनोविज्ञान पर आधारित एक प्रभावशाली कहानी। प्रायः घर के बड़े लोग अपनी व्यस्तताओं और मुआमलों में उलझ कर बच्चों की मनोवैज्ञानिक दशा की उपेक्षा कर देते हैं, जिसके परिणाम अक्सर संगीन हो जाते हैं। सलाह-उद्दीन नौकरी के सिलसिले में अपनी ख़ाला के यहाँ रह रहा है, तनवीर सलाह-उद्दीन की हम-उम्र जबकि मुनीर एक छोटी बच्ची है। सलाह-उद्दीन और तनवीर एक दूसरे में कशिश महसूस करते हैं लेकिन सामाजिक मजबूरियों की वजह से एक दूसरे से बचते नज़र आते हैं। मुनीर जब एक दिन सलाह-उद्दीन की उदासी का सबब मालूम करती है और उसे मालूम होता है कि सल्लू भैया की उदासी का सबब तनवीर है तो अपनी मासूमाना कोशिशों से दोनों को मिल बैठने के अवसर उपलब्ध कराती है। जब तनवीर और सलाह-उद्दीन की शादी हो जाती है तो सलाह-उद्दीन मुनीर को बिल्कुल नज़र-अंदाज कर देते हैं जिसकी वजह से मुनीर बहुत उदास रहने लगती है और जब सलाह-उद्दीन अपनी बीवी के साथ दिल्ली जाने लगते हैं तब भी वो उससे प्यार से पेश नहीं आते हैं। सलाह-उद्दीन के जाने के बाद मुनीर ख़ूब रोती है, उसे बुख़ार आ जाता है और आख़िर उसका देहांत हो जाता है।

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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