निवेश साहू के शेर
रोने लगे तो कौन हमें चुप कराएगा
सो इस की एहतियात है हम रो नहीं रहे
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तुम को अफ़सोस तुम्हें ठीक बनाया न गया
और इक हम कि अभी चाक पे रक्खे न गए
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अगर होता तो ख़ुद को फिर बनाता
मगर अफ़्सोस कूज़ा-गर नहीं हूँ
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ये गिला है कि हारता भी नहीं
बीच में खेल छोड़ देता हूँ
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इस जंगल के पेड़ों से मैं वाक़िफ़ हूँ
गिर जाते थे जिस पर साया करते थे
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अपने आँगन में परिंदे देख कर
जिस्म की टहनी से उड़ जाते हैं हम
होश में आते ही हो जाते हैं चुप
और बे-होशी में चिल्लाते हैं हम
इक सदा आसमाँ से आती है
और मैं ध्यान तक नहीं देता
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सोचता हूँ कि तुझ को मुझ से कोई
हादिसा ही बचा के ले जाए
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