aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1915 - 1990 | लाहौर, पाकिस्तान
बज़्म-ए-वफ़ा सजी तो अजब सिलसिले हुए
शिकवे हुए न उन से न हम से गिले हुए
इज्ज़ के साथ चले आए हैं हम 'यज़्दानी'
कोई और उन को मना लेने का ढब याद नहीं
शम्अ होगी सुब्ह तक बाक़ी न परवाने की ख़ाक
अहल-ए-महफ़िल की ज़बाँ पर दास्ताँ रह जाएगी
मिला है तपता सहरा देखने को
चले थे घर से दरिया देखने को
ज़िंदगी कोह-ए-बे-सुतूँ गोया
हर नफ़स एक तेशा-ए-फ़र्हाद
Awara
Chaukheer Wali
देहाती समाज
1942
Gora
Shama Ulfat
1960
Nairang-e-Maghrib
Neerang e Maghrib
Qaidi
Wadi-e-Purkhar
क़ैदी के ख़ुतूत और दीगर अफ़साने
1945
Shama-e-Ulfat
मिला है तपता सहरा देखने को चले थे घर से दरिया देखने को
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