अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल 24
नज़्म 1
अशआर 8
इक क़यामत है आप का वा'दा
चलिए ये भी अज़ाब हो जाए
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ख़ून जब अश्क में ढलता है ग़ज़ल होती है
जब भी दिल रंग बदलता है ग़ज़ल होती है
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दर्द का सिलसिला है जहाँ तक
दिल की जागीर होगी वहाँ तक
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नाम-लेवा तुम्हारा है 'तरज़ी'
आदमी की तरह मिलो प्यारे
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लुत्फ़-ए-सोहबत मता-ए-उल्फ़त है
कुछ कहो और कुछ सुनो प्यारे
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