- पुस्तक सूची 185989
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1981
जीवन शैली22 औषधि923 आंदोलन299 नॉवेल / उपन्यास4795 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी13
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1460
- दोहा48
- महा-काव्य108
- व्याख्या200
- गीत60
- ग़ज़ल1185
- हाइकु12
- हम्द46
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1597
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात691
- माहिया19
- काव्य संग्रह5045
- मर्सिया384
- मसनवी838
- मुसद्दस58
- नात561
- नज़्म1246
- अन्य76
- पहेली16
- क़सीदा189
- क़व्वाली18
- क़ित'अ63
- रुबाई296
- मुख़म्मस17
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम33
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त26
अहमद हमेश की कहानियाँ
अगला जनम
एक सतही सूरज चार अरब आदमियों और उनके जानवरों, परिंदों, कीड़ों और नबादात पर चमकता आ रहा है। ढेरों सतही सूरज मेकानिकी तनासुबों पर टिमटिमा रहे हैं, यहां तक कि दिन ख़त्म होताहै। ख़त्म नहीं होता मअनी बदल जाते हैं। रात कोई तबदीली नहीं। रात के मअनी अनगिनत अहमक़ों
फ़रियाद की लय
ये क़िस्सा मुहम्मद मुख़लिस नाम के इस मुसलमान का है जो कभी मदीना नहीं गया क्योंकि मुसाफ़िरी के नाम के सिक्के उसकी जेब में कभी पाए नहीं गए। फिर भी एक राह उसके ख़याल में और ईमान के दरमियान से होती हुई उसके पांव को मदीना की तरफ़ ले जाती थी। अलबत्ता ये सब कुछ
पागल कुत्ते की खोज
कुछ साल हुए हमारे शहरों में से एक शहर में बज़ाहिर एक दिन निकला था या महज़ उसे बावर कराने के लिए एक सवेरा भी हुआ था मगर किसी ने ये फ़र्ज़ करके कि वो कोई दिन नहीं था, वो किसी दिन का सवेरा नहीं था... शहर के मर्कज़ी एरिया में ठीक चौराहे पर एक ब्लैक बोर्ड रख
रिवायत
वो भी क्या ज़माना था जब पूरबी इलाक़े में लोगों के दिल चुड़ेलों और परियों दोनों से ब यक वक़्त आबाद हुआ करते थे।शेक्सपियर अलैहिस्सलाम का ज़िक्र सिर्फ़ अंग्रेज़ी की दर्सी रीडर में हुआ करता था। अफ़सोस कज रवी के बारे में इर्शादात-ए-आलिया नहीं पाए जाते। सिवाए इसके
ड्रेंच में गिरा हुआ क़लम
एक दस्तावेज़ी सियाह-रात की तारीख़ ख़त्म होते ही जब हम सुबह को उठने का इरादा करते हैं तो पेट की रिवायती ख़राबी हमें बिस्तर से एक इंच भी हरकत ना करने पर बेबस कर देती है। इस के बावजूद हमें एक क़लम दियाजाता है कि हम इस से आने वाली रात का वैसा ही मिन-ओ-एन प्रोग्राम
सलमा और हवा
अभी इस कुर्राह में रात का सफ़र जारी है। ये वाज़िह है मिट्टी और पानी की तमाम कोताहियों से हट कर ज़मीन पर एक ऐसा मकान बाक़ी है जिसके ऊपर से हवा सोच समझ कर गुज़रती है ये वाज़िह नहीं। क्योंकि हवा को ये मालूम है कि इस मकान में एक इंतिहाई अहम वजूद रहता है जो किसी
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य1981
-