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अकबर हैदरी कश्मीरी

1929 | श्रीनगर, भारत

अकबर हैदरी कश्मीरी

अशआर 10

सब्र करती ही रही बे-चारगी

ज़ुल्म होता ही रहा मज़लूम पर

अजल कुछ ज़िंदगी का हक़ भी है

ज़िंदगी तेरी अमानत ही सही

हर नफ़स मिन्नत-कश-ए-आलाम है

ज़िंदगी शायद इसी का नाम है

जब्र सहता हूँ मगर कब तक सहूँ इंसान हूँ

सब्र करता हूँ मगर दिल सब्र के क़ाबिल नहीं

दीदनी है अब शिकस्त-ए-ज़ब्त की बे-चारगी

मुस्कुराता हूँ मगर दिल दर्द से लबरेज़ है

ग़ज़ल 15

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