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अली इमाम नक़वी की कहानियाँ
पासा
कहानी धार्मिक आतिवाद के ऐसे समूह के बारे में बात करती है, जो एक लेखक को इतिहास को दोबारा लिखने का मश्वरा देता है। उस मश्वरे पर समूह के लोगों और लेखकों के बीच काफ़ी वाद-विवाद भी होता है। मगर इसके बावजूद लेखक इतिहास के उस पुनर्लेखन में हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब को बरकार रखने में कामयाब रहता है।
दाँतों में घिरी ज़बान
यह कहानी विभाजन के बाद हिंदुस्तान में रह गए मुसलमानों की हालात का जायज़ा लेती है। विभाजन में वह परिवार एक तरह से बिखर गया था। बड़े भाई पाकिस्तान चलले गये थे जबकि छोटे भाई ने हिंदुस्तान में ही रहने का फै़सला किया था। सालों बाद बड़ा भाई छोटे भाई से मिलने आता है और उन्हें हिंदुस्तान में ग़ैर महफ़ूज़ होने का एहसास दिलाते हुए अपने साथ चलने के लिए कहता है। मगर छोटा भाई उसके प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहता है वह हिंदुस्तान में उसी तरह महफ़ूज़ है जैसे बत्तीस दाँतों के दरमियान ज़बान।
कही अन-कही
एक नफ़्सियाती कहानी, जो ईश्वर और इंसान के दरमियान के रिश्तों से जुड़े कई सवालों पर बात करती है। एक शख़्स शहर के चौक में खड़ा होकर पूछता है कि क्या किसी को पता है कि वह दिन कौन सा था जब ईश्वर इंसान से ख़ुश हुआ था? मज्मे में बहुत से लोग खड़ें हैं मगर कोई भी सवाल का जवाब नहीं देता। बस सभी उसके धर्म और सवाल की वजह पर ज़ोर देते रहते हैं।
आप रुके कयों नहीं?
यह कहानी हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक शानदार मिसाल पेश करती है। भारत में एक सिख परिवार अपने मुस्लिम पड़ोसी परिवार के पाकिस्तान जाने के बाद भी मोहल्ले की मस्जिद को पहले की तरह ही आबाद रखता है। सालों बाद पाकिस्तान गए ख़ानदान का सरबराह जब अपने सिख दोस्त से मिलने आता है तो साफ़-सुथरी मस्जिद को देखकर हैरान होता है। इस पर उसका दोस्त कहता है कि हमने तो आपको जाने के लिए नहीं कहा था, आप ख़ुद ही गए थे।
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