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अशअर नजमी

1960 | मुंबई, भारत

शायर और अदीब, प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘इस्बात’ के सम्पादक

शायर और अदीब, प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘इस्बात’ के सम्पादक

अशअर नजमी

ग़ज़ल 11

अशआर 15

अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है

किसी दिन ख़ामुशी में ख़ुद को तन्हा छोड़ जाना है

कैनवस पर है ये किस का पैकर-ए-हर्फ़-ओ-सदा

इक नुमूद-ए-आरज़ू जो बे-निशाँ है और बस

तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू

फिर भला दोनों में आख़िर ख़ुद-कशीदा कौन था

ना-तमामी के शरर में रोज़ शब जलते रहे

सच तो ये है बे-ज़बाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं

शायद मिरी निगाह में कोई शिगाफ़ था

वर्ना उदास रात का चेहरा तो साफ़ था

पुस्तकें 7

 

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