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बयान मेरठी

1840 - 1900 | मेरठ, भारत

दाग़ के समकालीन, उर्दू और फ़ारसी में शायरी की, आधुनिक शायरी के आंदोलन से प्रभावित होकर नये अंदाज़ की नज़्में भी लिखीं

दाग़ के समकालीन, उर्दू और फ़ारसी में शायरी की, आधुनिक शायरी के आंदोलन से प्रभावित होकर नये अंदाज़ की नज़्में भी लिखीं

बयान मेरठी

अशआर 17

नैरंगियाँ फ़लक की जभी हैं कि हों बहम

काली घटा सफ़ेद प्याले शराब-ए-सुर्ख़

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पार दरिया-ए-शहादत से उतर जाते हैं सर

कश्ती-ए-उश्शाक़ की मल्लाह बन जाती है तेग़

लहू टपका किसी की आरज़ू से

हमारी आरज़ू टपकी लहू से

वो पोशीदा रखते हैं अपना तअ'ल्लुक़

इधर देख कर फिर उधर देख लेना

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हवा-ए-वहशत दिल ले उड़ी कहाँ से कहाँ

पड़ी है दूर ज़मीं गर्द-ए-कारवाँ की तरह

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ग़ज़ल 15

रुबाई 10

पुस्तकें 3

 

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