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jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़रहान हनीफ़ वारसी

1966 | मुंबई, भारत

फ़रहान हनीफ़ वारसी

अशआर 24

वो एक मोड़ जहाँ वो कभी मिला था मुझे

उस एक मोड़ पर उस को जुदा भी होना था

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और क्या देंगे हम तुझे जानाँ

ज़िंदगी तेरे नाम करते हैं

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तुम्ही ने राह में इक घर बसा लिया वर्ना

मोहब्बतों का सफ़र तो तवील था जानाँ

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रोज़ मुझ को वो याद आता है

रोज़ मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ

परिंदे सो गए जा के घरों में

शजर जंगल में फिर क्यूँ जागता है

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