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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़ातिमा ताज

अशआर 6

इस शहर-ए-तमन्ना में क्या छाँव मिले मुझ को

है धूप के दामन में तपता हुआ घर मेरा

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माना कि विरासत में मिली ख़ाना-बदोशी

लेकिन ये ज़मीं छोड़ के हम जा नहीं सकते

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अहल-ए-ख़िरद को अब भी नहीं है कोई ख़बर

अहल-ए-जुनूँ भी करते हैं फ़िक्र-ओ-नज़र की बात

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माना कि आशियानों की ता'मीर हो गई

अपना तो आशियाँ हमें जलता हुआ मिला

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ये शहर हमारा है सभी लोग हैं अपने

हम लोग पराए कभी कहला नहीं सकते

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ग़ज़ल 6

नज़्म 1

 

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