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हाजरा मसरूर के उद्धरण
इरादे की नाकामी इन्सान को बुज़्दिल बना देती है और बुज़्दिल ही दुनिया से ख़ौफ़ खाता है।
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ज़ाती मिल्कियत का जुनून इन्सानियत को तबाही के ग़ार में धकेल कर रहेगा।
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औरत एक कठ-पुतली है जिसकी डोर समाज के कोढ़ी हाथों में है और उन कोढ़ी हाथों में जब चुल होने लगती है तो डोर के झटकों से ये कठ-पुत्ली नचाई जाती है।
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