- पुस्तक सूची 181674
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1651
औषधि563 आंदोलन257 नॉवेल / उपन्यास3432 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी9
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर62
- दीवान1332
- दोहा61
- महा-काव्य92
- व्याख्या149
- गीत85
- ग़ज़ल750
- हाइकु11
- हम्द32
- हास्य-व्यंग38
- संकलन1386
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात634
- माहिया16
- काव्य संग्रह4001
- मर्सिया331
- मसनवी680
- मुसद्दस44
- नात424
- नज़्म1009
- अन्य45
- पहेली14
- क़सीदा143
- क़व्वाली9
- क़ित'अ51
- रुबाई256
- मुख़म्मस18
- रेख़्ती17
- शेष-रचनाएं27
- सलाम28
- सेहरा8
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई19
- अनुवाद80
- वासोख़्त24
मंशा याद की कहानियाँ
तमाशा
अंधेरे का तवील सफ़र तय करने के बाद वो सूरज तूलूअ’ होने तक दरिया के किनारे पहुंच जाते हैं। किनारे पर जगह-जगह अध खाई और मरी हुई मछलियाँ बिखरी पड़ी हैं। छोटा कहता है,”ये लधरों की कारस्तानी लगती है अब्बा।” “हाँ पुत्तर।” बड़ा कहता है, “ये ऐसा ही करते
आसेब
कहानी एक ऐसे घर और उसमें बसे परिवार के गिर्द घूमती है, जहाँ एकाएक चीजें, पैसे ग़ायब होने शुरू हो जाते हैं। साथ ही कुछ अजीब-ओ-ग़रीब वाक़िआत भी पेश आने लगते हैं। इनको लेकर पहले घर वाले एक-दूसरे पर ही शक करते रहे, मगर जब ये हरकतें लगातार बढ़ती गईं तो उनका शक यक़ीन में बदल गया कि घर में कोई जिन्नात वगै़रह रहते हैं। उन्होंने इसके लिए पीर-फ़क़ीर हर किसी की मदद ली, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। आख़िर में उन सब चीज़ों के पीछे जिसका हाथ था वह घर की नौकरानी की बेटी निकली।
दीवार-ए-गिरिया
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है जो अपनी ख़ाला से बहुत मोहब्बत करता है। उसकी ख़ाला भी उसे चाहती और मानती है। मगर जब वह पढ़ाई के लिए शहर आया और फिर नौकरी के बाद वहीं बस गया तो उसे गाँव से ख़ाला के बारे में तरह-तरह की बातें सुनने को मिलने लगीं। उसे पता चला कि ख़ाला अकबर माछी से शादी करना चाहती है जबकि पूरा गाँव नई रीत पड़ने के डर से उसके खिलाफ़ है। गाँव के कुछ लोग शहर उससे मिलने जाते हैं और उसे गाँव आकर ख़ाला को समझाने के लिए कहते हैं। मगर जब ख़ाला उसे हक़ीक़त से रू-ब-रू कराती है तो वह ख़ुद कटघरे में खड़ा हो जाता है।
मास और मिट्टी
सबसे पहले हम्द उस रब की जिसकी क़ुदरतों का कुछ शुमार नहीं। उसने लाखों करोड़ों दुनियाएँ, कहकशाएँ और चाँद सूरज पैदा किए। उसने दस लाख मील क़तर का सूरज बनाया और उसे काइनात में एक नुक़्ते की हैसियत बख़्शी। उसने अरबों-खरबों ऐसे सितारे बनाए जिनमें से बा'ज़
चाह दर चाह
यह यादों पर आधारित कहानी है। वह अपने दोस्त के साथ इस्लामाबाद से बीजिंग जा रहा है। फ़्लाइट में सब सो रहे हैं, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही है। हालांकि ट्रेन, बस, टैक्सी सब जगह नींद आ जाती है, लेकिन फ़्लाइट में नहीं आती है। जागता हुआ वह बाहर के दृश्यों को देखता है और बीते हुए कल के सपने भी। फ़्लाइट एक जगह रुकती है तो वहाँ वह जमीला को देखता है। जमीला किसी ज़माने में उससे मोहब्बत करती थी, लेकिन वह उसकी मोहब्बत को अपना नहीं पाया था।
पानी में घिरा हुआ पानी
चिकनी मिट्टी से घोड़े, बैल और बंदर बनाते-बनाते उसने एक रोज़ आदमी बनाया और उसे सूखने के लिए धूप में रख दिया। सिख़र दोपहर थी, चिलचिलाती-धूप के शो’ले वीरान और कल्लर-ज़दा ज़मीन पर जगह-जगह रक़्स कर रहे थे। चारों तरफ़ हू का आ’लम था। चरिंद-परिंद पनाह-गाहों में
आदम बू
यह एक सामाजिक कहानी है। गाँव की मस्जिद में इमाम मौलवी अल्लाह रख्खा शुरू में बहुत परहेज़गार और दीनदार होते हैं। लेकिन वक़्त बीतने के साथ वह भी पहले के इमामों की तरह लोगों से नज़राने और शुक्राने लेने लगते हैं और बहुत अमीर हो जाते हैं। उसके साथ ही उनका रुसूख़ भी बढ़ने लगता है। फिर एक दिन पड़ोसी की मस्जिद में एक नौजवान इमाम आता है और अल्लाह रख्खा उस इमाम को चुनौती देने लगता है।
जिहाद
कहानी जिहाद रोक देने के एक आदेश के गिर्द घूमती है, जो वायरलेस द्वारा प्राप्त होता है। जनरल अपने कमांडर से कहता है कि जो लोग जिहाद के लिए गए हुए हैं उन्हें वापस बुला लो। कमांडर कहता है कि लोग तो नीचे जा चुके हैं और अपने लक्ष्य के क़रीब हैं। जनरल कहता है कि फिर भी उन्हें वापस बुला लो, क्योंकि ऊपर से आदेश है। वह पूछता है कि ‘क्या वही के ज़रिए आदेश मिला है’, जनरल कहता है ‘नहीं, वायरलेस के ज़रिए।’
पक्की सड़क
यह कहानी हमारे समाज में व्याप्त वर्ग विभाजन को दिखाती है। उसे जिस तांगे से गाँव के बस अड्डे तक जाना था शाम को ख़बर मिली थी कि उसे गाँव के चौधरी ने अपने लिए बुक कर लिया है। इस पर वह बहुत गु़स्सा होती है और तांगे वाले को एक लंबा सा लेक्चरर देती है। इससे तांगे वाला चौधरी को तांगे के लिए बहाने से मना कर देता है। अगले दिन तांगे में जाते हुए वह देखती है कि चौधरी अपने घोड़े पर सवार है और एक नौकर उसके पीछे-पीछे दौड़ रहा है। वह उस नौकर को अपने तांगे में जगह दे देती है।
बंद मुट्ठी में जुग्नू
यह कहानी एक ऐसी लड़की की दास्तान बयान करता है जो अपनी ज़िंदगी से ऊब गई है। एकाएक उसे पड़ोस में औरतों की लड़ने की आवाज़ सुनाई देती है और वह उसे देखने छत पर चली जाती है। उस झगड़े को देखकर जब वह छत से उतरती है तो उसे ज़िंदगी मुट्ठी में बंद जुगनू की तरह नज़र आने लगती है।
हारी हुई जीत
कहानी एक ऐसे शख़्स के गिर्द घूमती है जो अपनी बेटी से बहुत मोहब्बत करता है। उसकी शादी की तारीख़ के लिए वह उसके ससुराल जाता है। उसके ससुराल वाले उसके सामने अपनी माँग रखते हैं और वह उनकी माँगें मान कर वापस चल देता है। वापसी में जिस ट्रेन से वह आ रहा होता है रास्ते में उस ट्रेन में आग लग जाती है। जब उसे होश आता है तो वह खु़द को एक अस्पातल में पाता है। सरकार की तरफ़ से मरने वालों और घायलों के लिए मुआवज़े का ऐलान किया गया है। ऐलान भी उतने ही रक़म का किया गया है जितना उसकी बेटी के ससुराल वालों ने जहेज़ में माँग की थी।
दाम-ए-शुनीदनः डंगर बोली
यह आत्मकथात्मक शैली में लिखी एक नॉन-वेजिटेरियन शख़्स के वेजिटेरियन बन जाने की कहानी है। उस पर लोग शक करते हैं कि उसने अपनी आस्था बदल ली है। लेकिन क्या मांसाहार तर्क देने से ही आस्था बदल जाती है? बात यह नहीं है। बात है वह प्यार, खुलूस और मोहब्बत जो किसी जानवर से भी हो जाता है और कभी कभी इंसान अपना फ़ैसला बदलने पर मजबूर होता है।
ओवर टाइम
यह माध्यम वर्गीय समुदाय की कहानी है जो अपनी ज़रुरियात पूरी करने के लिए ऑफ़िस में ओवर टाइम करने के लिए मजबूर होता है। यह ऑफ़िस के एक ऐसे बाबू की कहानी है जिसने अपने प्रमोशन के लिए जी एम साहब को दरख़्वास्त दिया हुआ है। एक दिन दफ़्तर में उसे ख़बर मिलती है कि जी एम साहब की माँ मर गई हैं। वह सोचता है कि पुर्सा करने के बहाने शायद जी एम साहब से सामना हो जाए और हो सकता है उसका काम बन जाए। यह सोचता हुआ वह जी एम साहब के घर जाता है लेकिन वहाँ और उसके बाद क़ब्रिस्तान में जो कुछ उसके साथ होता है वह उसकी स्थिति को पूरी तरह उजागर कर देता है।
बिछड़े हुए हाथ
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है जो जिसके हाथ, गर्दन और धड़ सब कुछ अलग-अलग हो गए हैं। बिना गर्दन के उसका धड़ क़ब्र में पड़ा है और वह अपने हाथों को तलाश करता फिर रहा है, जिन्हें उसे बेहद मोहब्बत है। उन्हीं हाथों से उसकी ढ़ेरों यादें जुड़ी हुई हैं। इसीलिए वह उन्हें तलाश करने के लिए हर जगह भटकता फिरता है।
इल्हाम
दोपहर के खाने में जब इतना कम वक़्त रह गया कि गांव से कोई संदेसा शहर न पहुंच सके तो चौधरी रमज़ान ने अपने घर के कुशादा सेहन में खड़े हो कर मुनादी करने के से अंदाज़ में इत्तिला दी। "फ़ौजी आ रहे हैं।" "कब?" "आज।" "आज?" "हाँ दोपहर को... खाने
बाघ बघीली रात
यह एक प्रेम कहानी है, जो आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है। एक ऐसी प्रेम कहानी जिसमें प्रेम तो है, लेकिन इज़हार नहीं। वह पूरब और पश्चिम के ज़मींदारों से बचने के लिए एक रात उसके घर छुपने आती है। उसका मामूं-ज़ाद उससे शादी करना चाहता है लेकिन वह उसे पसंद नहीं करता है। वहाँ रहते हुए वह हर रोज़ अपने अनाम प्रेमी के नाम ख़त लिखवाती है और फिर चालीस रोज़ बाद जाते हुए उन अनाम ख़तों की पोटली उसी के हाथों में थमा जाती है।
बड़ा सवाल
यह दुनिया के हालात से तंग आ चुके एक ऐसे शख़्स की कहानी है जिसके दिमाग़ में हर वक़्त तरह-तरह के ख़्याल घूमते रहते हैं। वह अपने ख़्यालों का इज़हार करना चाहता है, लेकिन कोई भी उसे सुनना नहीं चाहता है। आख़िर वह अपने ख़्यालों का गला घोंट लेता है और उसके बाद उसकी यह हालात होती है कि शहर में दर-दर मारा फिरता है जो कुछ दे देता है तो खा लेता है।
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
GET YOUR PASS
-
बाल-साहित्य1651
-