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मोहम्मद अल्वी के शेर
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं
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टैग : आँसू
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आज फिर मुझ से कहा दरिया ने
क्या इरादा है बहा ले जाऊँ
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टैग : दरिया
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अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे
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टैग : ख़त
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अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे
सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
उस की तस्वीर हटा दी जाए
कभी आँखें किताब में गुम हैं
कभी गुम है किताब आँखों में
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टैग : किताब
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अपना घर आने से पहले
इतनी गलियाँ क्यूँ आती हैं
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टैग : घर
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माना कि तू ज़हीन भी है ख़ूब-रू भी है
तुझ सा न मैं हुआ तो भला क्या बुरा हुआ
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अच्छे दिन कब आएँगे
क्या यूँ ही मर जाएँगे
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आग अपने ही लगा सकते हैं
ग़ैर तो सिर्फ़ हवा देते हैं
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उस से मिले ज़माना हुआ लेकिन आज भी
दिल से दुआ निकलती है ख़ुश हो जहाँ भी हो
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टैग : विदाई
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मैं ख़ुद को मरते हुए देख कर बहुत ख़ुश हूँ
ये डर भी है कि मिरी आँख खुल न जाए कहीं
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उस से बिछड़ते वक़्त मैं रोया था ख़ूब-सा
ये बात याद आई तो पहरों हँसा किया
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हाए वो लोग जो देखे भी नहीं
याद आएँ तो रुला देते हैं
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नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें
साहिल पे इक शख़्स अकेला खड़ा हुआ
देखा न होगा तू ने मगर इंतिज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख
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टैग : इंतिज़ार
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मौत भी दूर बहुत दूर कहीं फिरती है
कौन अब आ के असीरों को रिहाई देगा
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टैग : मौत
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देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था
ख़ुश थे तमाम नेकियाँ दरिया में डाल कर
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टैग : गुनाह
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मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब
निहायत अक़ीदत से पढ़ता रहा
अब न 'ग़ालिब' से शिकायत है न शिकवा 'मीर' का
बन गया मैं भी निशाना रेख़्ता के तीर का
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टैग : रेख़्ता
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कमरे में मज़े की रौशनी हो
अच्छी सी कोई किताब देखूँ
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रखते हो अगर आँख तो बाहर से न देखो
देखो मुझे अंदर से बहुत टूट चुका हूँ
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नया साल दीवार पर टाँग दे
पुराने बरस का कैलेंडर गिरा
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टैग : नया साल
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छोड़ गया मुझ को 'अल्वी'
शायद वो जल्दी में था
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वो जंगलों में दरख़्तों पे कूदते फिरना
बुरा बहुत था मगर आज से तो बेहतर था
उन दिनों घर से अजब रिश्ता था
सारे दरवाज़े गले लगते थे
अभी दो चार ही बूँदें गिरीं हैं
मगर मौसम नशीला हो गया है
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ग़म बहुत दिन मुफ़्त की खाता रहा
अब उसे दिल से निकाला चाहिए
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और बाज़ार से क्या ले जाऊँ
पहली बारिश का मज़ा ले जाऊँ
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टैग : बारिश
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घर में क्या आया कि मुझ को
दीवारों ने घेर लिया है
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टैग : घर
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इक लड़का था इक लड़की थी
आगे अल्लाह की मर्ज़ी थी
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रात पड़े घर जाना है
सुब्ह तलक मर जाना है
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टैग : घर
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थोड़ी सर्दी ज़रा सा नज़ला है
शायरी का मिज़ाज पतला है
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टैग : सर्दी
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अरे ये दिल और इतना ख़ाली
कोई मुसीबत ही पाल रखिए
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चला जाऊँगा जैसे ख़ुद को तन्हा छोड़ कर 'अल्वी'
मैं अपने आप को रातों में उठ कर देख लेता हूँ
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रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला
घर से निकले तो क्या क्या आराम मिला
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ऐसा हंगामा न था जंगल में
शहर में आए तो डर लगता था
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आँखें खोलो ख़्वाब समेटो जागो भी
'अल्वी' प्यारे देखो साला दिन निकला
खिड़कियों से झाँकती है रौशनी
बत्तियाँ जलती हैं घर घर रात में
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गाड़ी आती है लेकिन आती ही नहीं
रेल की पटरी देख के थक जाता हूँ मैं
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हर वक़्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख
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बुला रहा था कोई चीख़ चीख़ कर मुझ को
कुएँ में झाँक के देखा तो मैं ही अंदर था
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मौत न आई तो 'अल्वी'
छुट्टी में घर जाएँगे
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टैग : मौत
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परिंदे दूर फ़ज़ाओं में खो गए 'अल्वी'
उजाड़ उजाड़ दरख़्तों पे आशियाने थे
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टैग : परिंदा
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आसमान पर जा पहुँचूँ
अल्लाह तेरा नाम लिखूँ
तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तू ख़ुश न हो
उस को तिरी बुराइयाँ करते हुए भी देख
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दरवाज़े पर पहरा देने
तन्हाई का भूत खड़ा है
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बिछड़ते वक़्त ऐसा भी हुआ है
किसी की सिसकियाँ अच्छी लगी हैं
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