बारिश शायरी
बारिश का लुत्फ़ या तो आप भीग कर लेते होंगे या बालकनी में बैठ कर गिरती हुई बूँदों और चमकदार आसमान को देखकर, लेकिन क्या आपने ऐसी शायरी पढ़ी है जो सिर्फ बरसात ही नहीं बल्कि बे-मौसम भी बरसात का मज़ा देती हो? यहाँ हम आप के लिए ऐसी ही शायरी पेश कर रहे हैं जो बरसात के ख़ूबसूरत मौसम को मौज़ू बनाती है। इस बरसाती मौसम में अगर आप ये शायरी पढ़ेंगे तो शायद कुछ ऐसा हो, जो यादगार हो जाएगी।
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई
मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी
तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
Till even now in rainy climes, my limbs are aching, sore
The yen to stretch out languidly then comes to the fore
बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी
बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर 'अदम'
बारिश के सब हुरूफ़ को उल्टा के पी गया
क्यूँ माँग रहे हो किसी बारिश की दुआएँ
तुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो
ओस से प्यास कहाँ बुझती है
मूसला-धार बरस मेरी जान
कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है
दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया
showers of wine, I did think, would come with rainy clime
but alas when it did rain my heart broke one more time
गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है
'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा
क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मिरा चेहरा है
संग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे
अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था
अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था
अजब पुर-लुत्फ़ मंज़र देखता रहता हूँ बारिश में
बदन जलता है और मैं भीगता रहता हूँ बारिश में
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़
अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़
फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं
हवा कहती है मुझ से ये तमाशा कैसा लगता है
वो अब क्या ख़ाक आए हाए क़िस्मत में तरसना था
तुझे ऐ अब्र-ए-रहमत आज ही इतना बरसना था
कच्ची दीवारों को पानी की लहर काट गई
पहली बारिश ही ने बरसात की ढाया है मुझे
फ़ुर्क़त-ए-यार में इंसान हूँ मैं या कि सहाब
हर बरस आ के रुला जाती है बरसात मुझे
आने वाली बरखा देखें क्या दिखलाए आँखों को
ये बरखा बरसाते दिन तो बिन प्रीतम बे-कार गए