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अब्दुल हमीद अदम

1909 - 1981 | पाकिस्तान

लोकप्रिय शायर, ज़िंदगी और मोहब्बत से संबंधित रुमानी शायरी के लिए विख्यात।

लोकप्रिय शायर, ज़िंदगी और मोहब्बत से संबंधित रुमानी शायरी के लिए विख्यात।

अब्दुल हमीद अदम

ग़ज़ल 84

नज़्म 1

 

अशआर 108

सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में

मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही

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दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं

दोस्तों की मेहरबानी चाहिए

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बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर 'अदम'

बारिश के सब हुरूफ़ को उल्टा के पी गया

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दिल ख़ुश हुआ है मस्जिद-ए-वीराँ को देख कर

मेरी तरह ख़ुदा का भी ख़ाना ख़राब है

व्याख्या

इस शे’र में शायर ने ख़ुदा से मज़ाक़ किया है जो उर्दू ग़ज़ल की परंपरा रही है। शायर अल्लाह पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि तुम्हारे बंदों ने तुम्हारी इबादत करना छोड़ दी है जिसकी वजह से मस्जिद वीरान हो गई है। चूँकि तुमने मेरी क़िस्मत में ख़ाना-ख़राबी लिखी थी तो अब तुम्हारा उजड़ा हुआ घर देखकर मेरा दिल ख़ुश हुआ है।

शफ़क़ सुपुरी

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कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं

जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के ला

क़ितआ 55

पुस्तकें 36

चित्र शायरी 10

 

वीडियो 17

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

अब्दुल हमीद अदम

अब्दुल हमीद अदम

अब्दुल हमीद अदम

अब्दुल हमीद अदम

अब्दुल हमीद अदम

अब्दुल हमीद अदम

Hans Ke Bola Karo Bulaya Karo

अब्दुल हमीद अदम

एक ना-मक़बूल क़ुर्बानी हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

छेड़ो तो उस हसीन को छेड़ो जो यार हो

अब्दुल हमीद अदम

हँस के बोला करो बुलाया करो

अब्दुल हमीद अदम

हँस के बोला करो बुलाया करो

अब्दुल हमीद अदम

ऑडियो 10

आगही में इक ख़ला मौजूद है

ऐ साक़ी-ए-मह-वश ग़म-ए-दौराँ नहीं उठता

कितनी बे-साख़्ता ख़ता हूँ मैं

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