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मुस्तनसिर हुसैन तारड़ के हास्य-व्यंग्य
गधे शुमारी
“यरक़ान भाई।” “हाँ फ़ुरक़ान भाई।” “भई, बहुत उदास और रंजीदा और मलूल वग़ैरा दिखाई दे रहे हो। क्या हो गया?” “जो होना था हो गया, बुरा हुआ या भला हुआ।” “यरक़ान भाई, तुम्हारी तबीयत कुछ ठीक नहीं लगती जो इतने पुराने फ़िल्मी गाने अलाप रहे हो।” “ये
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बाल-साहित्य1974
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