Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

मेरा क़ीमा बना दीजिए

मुस्तनसिर हुसैन तारड़

मेरा क़ीमा बना दीजिए

मुस्तनसिर हुसैन तारड़

MORE BYमुस्तनसिर हुसैन तारड़

    मैं टॉलिंटन मार्केट की छोटे गोश्त की दुकान पर खड़ा अपनी बारी का इंतिज़ार कर रहा था और कुछ इस क़िस्म के “जज़्बाती” सवाल-जवाब सुन रहा था।

    “नसीम भाई! पहले मेरा क़ीमा बना दीजिए।”एक ख़ातून कह रही थीं।

    “बहन जी, आप फ़िक्र ही करें मैं आपका ऐसा क़ीमा बनाऊंगा कि आप याद करेंगी...!”

    “ज़रा जल्दी करें नसीम भाई!”

    “बस आप खड़ी रहें। आपके खड़े-खड़े मैं आपका क़ीमा बनादूंगा।”

    “क़ीमा रूखा बनाऊं या मोटा...?”

    “रूखा ठीक रहेगा लेकिन मैं ज़रा जल्दी में हूँ।”

    “बहन जी, ये क़ुरैशी साहब का क़ीमा है, ये वाला जो मैं कूट रहा हूँ, इसके बा'द इंशा-अल्लाह आपका क़ीमा बनेगा।”

    “नसीम साहब... मग़्ज़ चाहिए मिल जाएगा?” एक साहब दर्याफ़्त करते हैं।

    “क्यों नहीं जनाब... ये हमारे लीडरान कराम थोड़ी हैं, बकरे हैं, इनमें बहुत मग़्ज़ है, अभी देता हूँ।”

    “और मेरे गुर्दों का क्या हुआ?” एक आवाज़ आती है।

    “ये वाले!” नसीम का भाई जो शक्ल से हीरो लगता है चंद गुर्दे फ़िज़ा में बुलंद करते हुए कहता है, “आपके गुर्दे हैं...अभी निकाले हैं, बनाकर देता हूँ।”

    “और मेरी रान...?”

    “ये रही आप की रान, बिल्कुल नर्म और ताज़ा-ताज़ा।”

    “और मेरी सिरी...?”

    “अभी तोड़ता हूँ...”

    एक साहिब जो आर्डर देकर जा चुके थे वापस आकर पूछते हैं, “यार अभी तक मेरा गोश्त नहीं बनाया...?”

    “ओहो, आप ये बताएं कि आपकी बोटियाँ कैसे काटूँ...! छोटी या बड़ी... मैं पाँच मिनट में आपका गोश्त बनाता हूँ जनाब, हम आपका गोश्त नहीं काटेंगे तो और किसका काटेंगे...?”

    बिल-आख़िर मेरी बारी आती है और मैं एक मुख़्तसर सा आर्डर हूँ।

    “तारड़ साहब,” नसीम मुस्कुराते हुए कहता है, “इतना गोश्त तो पूरे मुहल्ले के लिए काफ़ी होगा, क्या करेंगे इतने गोश्त को, देग़ पकाएंगे?”

    “भाई, आप ब-राह-ए-करम जुगतें करें और गोश्त बना दें... और ये वाली बोटी तो अच्छी नहीं है! ये डालना।”

    “ये वाली...?” वो बोटी को उठाकर उसकी नुमाइश करता है, “ये वाली तो बड़ी जज़्बाती बोटी है तारड़ साहिब...।”

    नसीम अपने गोश्त के बारे में “जज़्बाती” का लफ़्ज़ बे-दरेग़ इस्तेमाल करता है... मस्लन, “जनाब ये गुर्दा मुलहिज़ा कीजिए, बिल्कुल जज़्बाती है... ये चांप जो आप देख रहे हैं, जज़्बाती हो रही है, आहिस्ता-आहिस्ता ये रान तो ख़ैर है ही जज़्बाती... वैसे मेरे पास ग़ैर जज़्बाती गोश्त भी है लेकिन आप को मज़ा नहीं आएगा... वो सामने वाला बकरा जो लटक रहा है, वो शहनशाह-ए-जज़्बात है और बकरी जो है ये मल्लिका-ए-जज़्बात है, इसकी टांग पेश करूं?”

    गोश्त के बारे में कालम लिखना ग़ैर अदबी सा फे़'ल है लेकिन क्या किया जाए, ये महंगा होता जा रहा है और इसके साथ ही लोगों की “मुसलमानी” कम होती जा रही है, गोश्त और मुसलमान लाज़िम-व-मल्ज़ूम हैं... हमारे गाँव में तो ये भी कहा जाता है कि ज़्यादा गोश्त खाने से ईमान मज़बूत हो जाता है लोहे की तरह...

    ज़ाहिर है कि अगर गोश्त महंगा होगा तो कम खाया जाएगा और इसी तनासुब से “मुसलमानी” कम होती जाएगी, मैं भी इसीलिए फ़िक्रमंद हूँ...

    गोश्त की क़ीमतों में यकदम इज़ाफ़ा हो गया है और कहीं से एहतिजाज का एक लफ़्ज़ सुनाई नहीं दिया... सिगरेट महंगे हो जाएं तो छोड़ दो, चाय महंगी हो जाए तो कम पियो। आटा महंगा हो जाए तो केक खा लो लेकिन गोश्त तो कम नहीं खाया जा सकता... मुझे चूँकि गोश्त की क़ीमतों में इज़ाफ़े की ख़बर थी इसलिए मैंने जेब में पड़ी रक़म के मुताबिक़ आर्डर दिया और फिर बा'द में बिल ज़्यादा बनने पर ख़ूब-ख़ूब शर्मिंदा हुआ... तो फिर आज गोश्त का बयाँ चलता रहे, छोटे गोश्त की मार्केट से बाहर जाइए।

    पंजाब पब्लिक लाइब्रेरी के सामने बड़े गोश्त की मार्केट है... यहाँ भी इ'ल्म और गोश्त का चोली दामन का साथ है। इस मार्केट के अंदर भी दुकानदार तक़रीबन एक ही इ'लाक़े और एक ही ख़ानदान से मुतअ'ल्लिक़ हैं... एक मर्तबा मेरे वालिद साहब जो इंतहाई हस्सास तबीयत के मालिक हैं गोश्त ख़रीदने आए तो क़स्साब ने एक बोटी उठाकर कहा, “चौधरी साहब, बिल्कुल बच्चे की बोटी है, भून कर खाइएगा मज़ा आजाएगा...”

    वो दिन और आज का दिन वालिद साहब कभी बड़ा गोश्त ख़रीदने नहीं गए... यहाँ पर गोश्त के अ'जीब-व-ग़रीब शौक़ीन नज़र आते हैं... ऐसे शौक़ीन जो पुलाव के लिए अलग गोश्त मुंतख़ब कर लेते हैं और करेले पकाने के लिए अलग, इनमें वो हज़रात भी शामिल होते हैं जो सिर्फ़ सिरी पायों की तलाश में यहाँ आते हैं...

    गोश्त खाना मुसलमानों की और ख़ासतौर पर पाकिस्तानी मुसलमानों की फ़ितरत-ए-सानिया है, वो ख़ुशी का इज़हार करना चाहे तो भुना हुआ गोश्त खाएंगे या शुक्राने के तौर पर एक दो बकरे हलाल कर देंगे।

    अगर फ़ोतीदगी हो जाए तो भी मेहमानों की तवाज़ो आलू-गोश्त से की जाएगी। मेरे मामूं अल्लाह बख़्शे कहा करते थे कि बिल्कुल गला हुआ नर्म गोश्त किस काम का, गोश्त वो जो नोच-नोच कर खाया जाए...

    एक छोटा सा क़िस्सा है... जिसमें गोश्त के बारे में ही कुछ बयाँ है। मैं उस वक़्त तक़रीबन 15-16 बरस का था और पहली मर्तबा विलायत जा रहा था। जहाज़ में मेरे बराबर की नशिस्त पर एक मौलाना बिराजमान थे, वो ख़ासे मासूम थे। मैंने दर्याफ़्त किया कि क्यों चचा जान, आप किस सिलसिले में इंग्लिस्तान जा रहे हैं, तो कहने लगे! बेटा मैं काफ़िरों को मुसलमान करने जा रहा हूँ।

    मैंने पूछा आपको अंग्रेज़ी आती है? कहने लगे नहीं, जिसने मुसलमान होना होगा उसे ख़ुदबख़ुद मेरी ज़बान की समझ जाएगी... उन दिनों अभी जेट मुसाफ़िर बर्दार तय्यारे उड़ान नहीं करते थे, चुनांचे पंखों वाला जहाज़ बड़े मज़े से हवाओं और बादलों से अटखेलियाँ करता मंज़िल की जानिब जाता था। हम कराची से चले और फिर तेहरान, क़ाहिरा, एथेंज़ वग़ैरा में रुकते रोम पहुंचे। रोम में दो घंटे का स्टॉप था और एयर लाइन की जानिब से ए'लान किया गया कि मुसाफ़िर हज़रात एयर पोर्ट के रेस्तोराँ में जाकर अपनी पसंद का खाना तनावुल फ़रमाएं। बिल कंपनी के ज़िम्मे होगा।

    इस ए'लान पर मुसाफ़िर हज़रात बेहद ख़ुश हुए। मैं भी ख़ुश हुआ और मौलाना तो बेहद ख़ुश हुए क्योंकि हमें शदीद भूक लगी थी।

    रेस्तोराँ में बैठे तो एक ख़ूब-रू इतालवी ख़ातून हाथ में मीनू पकड़े हमारे क़रीब गई... मौलाना खांसे और ना-पसंदीदगी का इज़हार किया, मैं चूँकि अभी बच्चा था इसलिए मुझे खांसी बिल्कुल आई। मैंने अपने लिए एक अ'दद रोस्ट चिकन “मौलाना आप क्या खाएंगे?” मैंने अपने मुसाफ़िर चचा जान से पूछा, “इस गोरी-गोरी लड़की से कहो कि मेरे लिए सिर्फ़ उबली हुई सब्ज़ियाँ ले आए क्योंकि गोश्त तो यहाँ पर हलाल नहीं होगा”, उन्होंने मुँह बनाकर कहा।

    अब मैं तो इस मुआ'मले के बारे में ग़ौर नहीं किया था कि यहाँ गोश्त किस क़िस्म का होता है और मुझे भूक भी बहुत लगी हुई थी, बहरहाल मैंने उनका आर्डर भी दे दिया। आधे घंटे के बाद वेट्रेस ख़ुराक ले आई... एक ट्राली में मेरा रोस्ट मुर्ग़ अभी तक रोस्ट हो रहा था, उसकी ख़ुशबू पूरे रेस्तराँ में फैली थी। मुर्ग़ के गिर्द अंडे और आलू के क़त्ले और सलाद वग़ैरा बहार दिखा रहे थे। ये सब कुछ मेरे आगे रख दिया गया... फिर वेट्रेस वापस गई और एक छोटी सी प्लेट लाकर मौलाना के आगे रख दी। उसमें एक उबली हुई गाजर और एक दो आलू थे।

    सफ़री चचा जान ने गाजरें खाने की कोशिश की लेकिन उनकी नज़रें मेरे रोस्ट मुर्ग़ पर से उठाए उठती थीं। मैं मज़े से खाता जा रहा था और वो मुझे देखते जा रहे थे। बिल-आख़िर उन्होंने गरज कर कहा, “बरखु़र्दार।”

    “जी जनाब!” मैंने घबरा कर जवाब दिया।

    “ये होटल वाली ज़नानी को कहो कि मेरे लिए भी यही मुर्ग़ ले आए ये शक्ल से हलाल लगता है।”

    कहने का मतलब ये है कि गोश्त खाने के शौक़ हम बा'ज़ औक़ात अपनी मुसलमानी को भी ख़तरे में डाल लेते हैं।

    लाहौर के एक बहुत ही मा'रूफ़ डाक्टर साहब अक्सर बाज़ार जाकर एक बकरा ख़रीद लाते, घर जाकर उसे ख़ुद ज़बह करते। गोश्त बनाते, ख़ुद ही भूनते और फिर अपने बेटों के हमराह एक ही नशिस्त में उसे नोश कर जाते... मौसूफ़ फ़रमाया करते थे कि गोश्त होना चाहिए। चाहे गधे का ही क्यों हो।

    मैंने मकान बनाया तो एक मज़दूर तक़रीबन रोज़ाना शाम को मज़दूरी की रक़म वसूल करता, उसका गोश्त ख़रीदता और भूनकर खा जाता।

    मैं ख़ुद अगरचे खाने-पीने का बहुत ज़्यादा शौक़ीन नहीं हूँ लेकिन गोश्त खाए हुए अगर दो चार दिन गुज़र जाएं तो जमाइयाँ आने लगती हैं। दुनिया बे-रंग नज़र आने लगती है और अपने मुसलमान होने पर शुबहा होने लगता है... लेकिन अब तो क़ीमत ज़्यादा होने से ऐसा लग रहा है कि क़ीमा बकरे का नहीं हमारा अपना बन रहा है... हमारे गुर्दे निकाले जा रहे हैं और मग़्ज़ खाया जा रहा है... और वो दिन दूर नहीं जब हम गोश्त की दुकान पर जाकर क़साई के आगे लेट कर कहेंगे, “बराह-ए-करम मेरा क़ीमा बना दीजिए।”

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए