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रशीद जहाँ की कहानियाँ
दिल्ली की सैर
यह फ़रीदाबाद से दिल्ली की सैर को आई एक औरत के साथ घटी घटनाओं का क़िस्सा है। एक औरत अपने शौहर के साथ दिल्ली की सैर के लिए आती है। दिल्ली में उसके साथ जो घटनाएं होती हैं वापस जाकर उन्हें वह अपनी सहेलियों को सुनाती है। उसके साथ घटी सभी घटनाएं इतनी दिलचस्प होती हैं कि उसकी सहेली जब भी उसके घर जमा होती हैं, हर बार उससे दिल्ली की सैर का क़िस्सा सुनाने के लिए कहती हैं।
वोह
यह एक जिस्म बेचने वाली औरत की कहानी है, वक़्त के साथ जिसकी सारी चमक-दमक ख़त्म हो गई है। वह कोढ़ की मरीज़ है जिसकी वजह से लोग अब उससे कतराते और नफ़रत करते हैं। कोई भी उससे बात तक करना पसंद नहीं करता।
सास और बहू
यह एक ऐसी घरेलु औरत की कहानी है, जो अपनी सास की हर वक़्त शिकायतें करते रहने की आदत से परेशान है। वह अपनी तरफ़ से सास को ख़ुश रखने के लिए हर मुमकिन कोशिश करती है। मगर सास उसके हर काम में कोई न कोई कमी निकाल ही देती है। वह कई बार अपने बेटे से दूसरी शादी करने के लिए भी कहती है लेकिन बेटा अपनी माँ की तजवीज़ को हंस कर टाल देता है।
आसिफ़ जहाँ की बहू
यह एक ऐसे परिवार की कहानी है जहाँ लड़की होने की दुआ माँगी जा रही है। आसिफ़ जहां एक अमीर कलेक्टर की बीवी है। उसके यहाँ नौ औलादें हुई थीं, पर उनमें से बस एक ही जी सकी थी। वह चाहती है कि उसके लिए अपनी ननद की बेटी माँग ले। मगर ननद जब भी उम्मीद से होती है तो हर बार लड़का ही होता है। पर उस बार ख़ुदा ने आसिफ़ जहां की सुन ली और उसकी ननद के यहाँ बेटी पैदा हुई।
ग़रीबों का भगवान
कहानी एक ऐसी विधवा औरत की है, जो अपने बड़े बेटे की मौत पर पागल हो जाती है। उसकी बीमारी में वह हर किसी से मदद माँगती है मगर कोई भी उसकी मदद नहीं करता। वह मंदिर जाती है तो उसे वहाँ से निकाल दिया जाता है, क्योंकि वह अमीरों का मंदिर होता है। वहाँ से निकलकर वह ग़रीबों के भगवान की तलाश में भटकने लगती है। मगर कोई भी उसे ग़रीबों के भगवान का पता नहीं देता। आख़िर में एक डॉक्टर उसे बताता है इस दुनिया में कौन ग़रीबों का भगवान है।
इफ़्तार
इस कहानी में रमज़ान के महीने में होने वाले इफ़्तार के ज़रिए मुस्लिम समाज के वर्ग-विभाजन को दिखाया गया है। एक तरफ़ भीख माँगने वाले हैं जो मरने से पहले पेट की आग की वजह से जहन्नुम जैसी ज़िंदगी जी रहे हैं, दूसरी तरफ़ अच्छी ज़िंदगी जीने वाले हैं जिनके पास हर तरह की सुविधाएं हैं और वह दुनिया में जन्नत जैसा सुख भोग रहे हैं।
चोर
एक डॉक्टर की कहानी जो एक ऐसे शख़्स के बच्चे का इलाज करती है जिसने दोपहर ही उसके घर में चोरी की है। कई बार वह सोचती है कि वह पुलिस को बुलाकर उसे गिरफ़्तार करा दे। उसका फ़ौजी भाई भी उसी वक़्त उसके क्लीनिक में चला आया था। मगर उसने यह सोचकर उस चोर के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की कि समाज में हर जगह तो चोर हैं। आप किस-किस के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकते हैं।
शीला
जहाँ मोटी, गोरी, मंझोली शीला में और कमज़ोरियाँ थीं वहाँ उसकी ख़ुश-मिज़ाजी भी शामिल थी। “हाँ” के सिवा दूसरा लफ़्ज़ तो वो जानती ही नहीं थी और “नहीं” का इस्ते’माल उसने शायद कभी किया हो। किसी के हाँ डिनर पर अगर कोई मेहमान आख़िरी वक़्त पर इन्कार कर दे तो जगह
मेरा एक सफ़र
यह कहानी भारतीय समाज में धर्म और जातिगत भेदभाव को उजागर करती है। वह रेल के तीसरे दर्जे में सफ़र कर रही थी जब बातों ही बातों में डिब्बे में बैठी हिंदू और मुसलमान औरतों के बीच धर्म और छूआछूत को लेकर झगड़ा शुरू हो जाता है। काफ़ी देर तक वह यूं ही बैठी हुई झगड़े को देखती रहती है। मगर जब लड़ती हुई औरतें उसे भी लपेटे में लेने की कोशिश करती हैं तो वह उठकर एक ऐसी धमकी देती है कि सभी औरतें आपस में एक-दूसरे से माफ़ी माँगना शुरू कर देती हैं।
मुजरिम कौन
एक ऐसे जज की कहानी, जो किसी और की बीवी से मोहब्बत कर बैठता है और उसे उसके शौहर से अलग कर देता है। जब उसकी अदालत में ऐसा ही एक केस आता है तो वह आशिक़ को तीन साल की सज़ा सुना देता है। इस पर सज़ा भुगत रहे आशिक़ की माशूक़ा आग लगाकर ख़ुदकुशी कर लेती है। एक रोज़ क्लब में बैठे हुए जज के कुछ दोस्त इसी मामले पर बहस कर रहे होते हैं और पूछते हैं कि असली मुजरिम कौन है?
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बाल-साहित्य1947
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