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शौकत हयात की कहानियाँ
कूबड़
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है जिसने परिवार की देखभाल में ही अपनी सारी ज़िंदगी गुज़ार दी। परिवार को अमेरिका में नौकरी करने वाला छोटा बेटा ज़्यादा अज़ीज़ है। वह बीमार है, फिर भी अम्मा के कहने पर छोटे भाई को एयरपोर्ट पर अलविदा कहने के लिए दिल्ली तक का सफ़र करता है। इस सफ़र में उसकी जेब तक कट जाती है। फिर एयरपोर्ट पर जब वह अपने भाई को अलविदा कहता है तो उनके बीच कुछ ऐसी बातचीत होती है कि वह ख़ुद को ठगा हुआ महसूस करता है।
अपना गोश्त
यह कहानी ख़ानदानी रिश्तों में छुपे स्वार्थ को बयान करती है। उसने अपनी पूरी ज़िंदगी छोटे भाई-बहनों को कामयाब बनाने के लिए गुज़ार दी थी। वह तन्हा रहा, शादी नहीं की। दिन-रात मेहनत करके अपने भाई-बहनों को पढ़ाया लिखाया। जब उस पर बुढ़ापा आया तो उन्हीं भाई-बहनों ने न केवल उसे घर से निकाल दिया बल्कि जब वह मरा तो कोई उसके जनाज़े तक में शामिल नहीं हुआ।
भाई
ऐसे शख़्स की कहानी जो दंगा-ग्रस्त शहर में एक सड़क के किनारे खड़ा सवारी गाड़ी का इंतज़ार कर रहा होता है। तभी उसकी बग़ल में ही एक दूसरा शख़्स भी आ खड़ा होता है। वह बार-बार उसकी तरफ़ देखता है और उससे बचाव के लिए अपनी जेब में ईंट का एक टुकड़ा उठाकर रख लेता है। तभी एक सवारी गाड़ी रुकती है और वे दोनों उसमें सवार हो जाते हैं। आगे जाने पर उस गाड़ी को बलवाई घेर लेते हैं। बलवाई जब उसे मारने के लिए हथियार उठाते हैं तो दूसरा शख़्स उसे बचाता हुआ कहता है कि वह उसका भाई है।
चीख़ें
यह कहानी समाज में पनप रहे शिक्षा माफ़ियाओं को बेनक़ाब करती है। प्राइवेट स्कूलों ने किस तरह इंग्लिश मीडियम का लालच देकर अपना जाल बिछाया हुआ है और बेहतर एजुकेशन के नाम पर वे बच्चों और उनके माता-पिता का शोषण कर रहे हैं। इस जाल में फँसे मध्यमवर्गीय अभिभावक अपने बच्चों के अच्छे रिज़ल्ट होने के बावजूद उन स्कूलों में उनका दाख़िला नहीं करा पाते, क्योंकि उनकी जेब उन्हें इसकी इजाज़त नहीं देती।
गुंबद के कबूतर
विभाजन और हिजरत से दोचार एक मुहाजिर की कहानी। वह अपनी जड़ों को पीछे छोड़ आया था और यहाँ इस छोटे से फ़्लैट में आ बसा था। इस कॉलोनी में अधिकतर मुहाजिर परिवार ही बसे हुए थे। हर किसी का एक-दूसरे से मिलना जुलना था। मगर हर कोई अपने अंदर एक ख़ालीपन लिए घूमता रहता था। वह भी अपने इसी ख़ालीपन से जूझ रहा था। इससे बचने के लिए उसने फ़्लैट की बालकोनी में कुछ पौधे लगवा लिए थे। वह कुर्सी पर बैठा आसमान को घूरता रहता, जिस पर बेशुमार कबूतर घूम रहे होते, जो कभी-कभी सुस्ताने के लिए पास के गुंबद पर जा बैठते। वह उन कबूतरों को देखता और जब उसे अपने हालात का एहसास होता तो वह फ़्लैट से निकलता और अपने किसी पड़ोसी के पास मिलने के लिए निकल पड़ता।
मिस्टर ग्लैड
यह गु़रबत, आर्थिक तंगी और नौकरी की वजह से परेशान एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो बेरोज़गारी के सबब अपना ज़ेहनी तवाज़ुन खो बैठता है। घर में आर्थिक तंगी होने की वजह से उसकी बीवी बच्चों को साथ लेकर उसे छोड़कर चली जाती है और वह तन्हाई का शिकार होकर पागल हो जाता है। इस पागलपन में वह तरह-तरह की हरकतें करता है। वह अपना नाम, हुलिया और साथ ही ज़बान भी बदल देता है।
बिल्ली का बच्चा
यह संयुक्त परिवार की मुखिया एक रूढ़ीवादी मुस्लिम ख़ातून की कहानी है। जिसके छोटे पोते-पोतियाँ ज़िद करके बिल्ली का बच्चा पाल लेते हैं। बिल्ली का बच्चा सारा दिन चुप-चाप लेटा रहता है। जैसे ही दादी अम्मा का नमाज़ पढ़ने का वक़्त आता है वह उनके गिर्द घूमना और उनके कंधों पर चढ़ना शुरू कर देता है। बिल्ली के बच्चे से तंग आकर दादी उसे गालियाँ देती हैं। दादी की गालियाँ महज़ बिल्ली के बच्चे के लिए ही नहीं होती, वे अपने मरहूम शौहर के लिए भी होती हैं।
शिकंजा
घर से दूर अपने बाप के साथ रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करने वाले एक बच्चे की कहानी है, जो अपनी माँ की याद में हमेशा उदास रहता है। एक दिन एक मुसाफ़िर का सामान उठाते हुए पता चलता है कि वह उन्हीं के गाँव जा रहे हैं। बच्चा उनकी बातें सुनकर मायूस हो जाता है। वह अपने बाप से उनके साथ जाने की ज़िद करता है, मगर बाप इंकार कर देता है। बच्चा रोने लगता है और जब गाड़ी चलती है तो वह उसके नीचे गिर जाता है, लेकिन किसी तरह बचा लिया जाता है।
साँपों से न डरने वाला बच्चा
यह कहानी एक ऐसे शख़्स की है, जो घर वालों से दूर एक मामूली सी तनख़्वाह की नौकरी करता है। अपने परिवार की ज़रूरियात को पूरा करने के लिए वह एक दोस्त की सलाह पर क़र्ज़ ले लेता है और घर जाने से पहले ख़ूब सारी ख़रीदारी करता है। शाम को वह दोस्त के साथ एक पार्क में जाता है, जहाँ कभी वह अपने बीवी-बच्चों के साथ आया करता था। अगले दिन गाड़ी में बैठकर वह उस शहर की ओर चल देता है जहाँ कई अनहोनियाँ उसका इंतिज़ार कर रही होती हैं।
घोंसला
तक़सीम के बाद हिंदुस्तान में अपने शहर वापस आए एक शख़्स की कहानी। स्टेशन पर उतर कर वह देखता है तो उसे शहर पहले जैसा ही जाना-पहचाना लगता है। वह एक रिक्शे में बैठता है और उसे बिना पता बताए चलने के लिए कहता है। वह रिक्शे वाले को जिस तरफ़ चलने के लिए कहता है, रिक्शे वाला उसी तरफ़ चल देता है। हर रास्ता घूम फिर कर एक साफ़-चटियल मैदान में जा मिलता है। आख़िर में जब वह रिक्शे वाले से अपनी बस्ती के बारे में पूछता है तो वह उसे बताता है कि उसी बस्ती को तोड़कर यह मैदान बनाया गया है।
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