- पुस्तक सूची 188190
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
गतिविधियाँ57
बाल-साहित्य2070
नाटक / ड्रामा1026 एजुकेशन / शिक्षण377 लेख एवं परिचय1523 कि़स्सा / दास्तान1726 स्वास्थ्य107 इतिहास3571हास्य-व्यंग747 पत्रकारिता215 भाषा एवं साहित्य1974 पत्र816
जीवन शैली25 औषधि1031 आंदोलन300 नॉवेल / उपन्यास5020 राजनीतिक371 धर्म-शास्त्र4887 शोध एवं समीक्षा7328अफ़साना3047 स्केच / ख़ाका294 सामाजिक मुद्दे118 सूफ़ीवाद / रहस्यवाद2279पाठ्य पुस्तक567 अनुवाद4573महिलाओं की रचनाएँ6353-
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी14
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर69
- दीवान1496
- दोहा53
- महा-काव्य106
- व्याख्या209
- गीत65
- ग़ज़ल1327
- हाइकु12
- हम्द53
- हास्य-व्यंग37
- संकलन1656
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात716
- माहिया21
- काव्य संग्रह5344
- मर्सिया400
- मसनवी884
- मुसद्दस60
- नात600
- नज़्म1317
- अन्य78
- पहेली16
- क़सीदा201
- क़व्वाली18
- क़ित'अ72
- रुबाई306
- मुख़म्मस16
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम35
- सेहरा10
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा20
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त28
सर सय्यद अहमद ख़ान के उद्धरण
बे-इल्मी मुफ़्लिसी की माँ है। जिस क़ौम में इल्म-ओ-हुनर नहीं रहता वहाँ मुफ़्लिसी आती है और जब मुफ़्लिसी आती है तो हज़ारों जुर्मों के सरज़द होने का बाइस होती है।
(तक़रीर-ए- जलसा-ए-अज़ीमाबाद पटना, 26 मई)
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हम लोग आपस में किसी को हिंदू, किसी को मुसलमान कहें मगर ग़ैर-मुल्क में हम सब नेटिव (Native) यानी हिन्दुस्तानी कहलाए जाते हैं। ग़ैर-मुल्क़ वाले ख़ुदा-बख़्श और गंगा राम दोनों को हिन्दुस्तानी कहते हैं।
(तक़रीर-ए-सर सय्यद जो अंजुमन इस्लामिया, अमृतसर के ऐडरेस के जवाब में 26 जनवरी 1884 ई. को की गई)
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
बड़े बड़े हकीम और आलिम, वली-ओ-अब्दाल, नेक-ओ-अक़्ल-मंद, बहादुर-ओ-नाम-वर एक गँवार आदमी की सी सूरत में छुपे हुए होते हैं मगर उनकी ये तमाम खूबियाँ उम्दा तालीम के ज़रिए से ज़ाहिर होती हैं।
(तहज़ीब-उल-अख़्लाक़ बाबत यकुम शव्वाल 1289 हिज्री)
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
लहजा: इसको भी तहज़ीब में बड़ा दख़ल है। अक्खड़ लहजा इस क़िस्म की आवाज़ जिससे शुब्हा हो कि आदमी बोलते हैं या जानवर लड़ते हैं, ना-शाइस्ता होने की निशानी है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
सबसे बड़ा ऐब हम में ख़ुद-ग़रज़ी का है और यही मुक़द्दम सबब क़ौमी ज़िल्लत और ना-मुहज़्ज़ब होने का है। हम में से हर एक को ज़रूर है कि रिफ़ाह-ए-आम का जोश दिल में पैदा करें और यक़ीन जानें कि ख़ुद-ग़रज़ी से तमाम क़ौम की और उसके साथ अपनी भी बर्बादी होगी।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
जो बातें हमारे मुख़ालिफ़ हमारी निसबत मंसूब करते हैं, हम उस से ज़ियादा इल्ज़ाम के लायक़ हैं। फ़र्ज़ करो वो बातें हम में न हों मगर और बातें उस से भी ज़ियादआ बद-तर हम में मौजूद हैं।
(तहज़ीब-उल-अख़्लाक़, यकुम रजब 1290 हिज्री)
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
हमारे कलाम में वो अल्फ़ाज़ जो मोहज़्ज़िबाना गुफ़्तगू में होते हैं, निहायत कम मुस्तामल हैं और इसलिए उसकी इस्लाह की बहुत ज़रूरत है।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
मैं अपनी ज़बान से वो मुराद लेता हूँ जो किसी मुल्क में इस तरह पर मुस्तामल हो कि हर शख़्स उस को समझता हो और वो उस में बातचीत करता हो। ख़्वाह वो उस मुल्क की असली ज़बान हो या न हो और उसी ज़बान पर मैं वरनेकुलर के लफ़्ज़ का इस्तिमाल करता हूँ।
(तक़रीर -ए-बनारस, 20 सितंबर 1867)
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
रायों के बंद रहने से तमाम इन्सानों की हक़-तल्फ़ी होती है और कुल इन्सानों को नुक़्सान पहुँचता है और न सिर्फ़ मौजूद इन्सानों को, बल्कि उनको भी जो आइन्दा पैदा होंगे।
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here
-
गतिविधियाँ57
बाल-साहित्य2070
-
