- पुस्तक सूची 188275
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1971
औषधि919 आंदोलन300 नॉवेल / उपन्यास4697 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी13
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1454
- दोहा65
- महा-काव्य109
- व्याख्या200
- गीत81
- ग़ज़ल1184
- हाइकु12
- हम्द46
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1593
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात689
- माहिया19
- काव्य संग्रह5082
- मर्सिया382
- मसनवी833
- मुसद्दस58
- नात559
- नज़्म1255
- अन्य71
- पहेली16
- क़सीदा189
- क़व्वाली19
- क़ित'अ62
- रुबाई297
- मुख़म्मस17
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम33
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त26
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
लेख 9
उद्धरण 6
हमारे शो'रा जब ग़ज़ल लिखने बैठते हैं तो पहले उस ग़ज़ल के लिए बहुत से क़ाफ़िए जमा' करके एक जगह लिख लेते हैं, फिर एक क़ाफ़िए को पकड़ कर उस पर शे'र तैयार करना चाहते हैं। ये क़ाफ़िया जिस ख़याल के अदा करने पर मजबूर करता है उसी ख़याल को अदा कर देते हैं। फिर दूसरे क़ाफ़िए को लेते हैं, ये दूसरा क़ाफ़िया भी जिस ख़याल के अदा करने का तक़ाज़ा करता है उसी ख़याल को ज़ाहिर करते हैं, चाहे ये ख़याल पहले ख़याल के बर-ख़िलाफ़ हो। अगर हमारी ग़ज़ल के मज़ामीन का तर्जुमा दुनिया की किसी तरक़्क़ी-याफ़्ता ज़बान में किया जाए, जिसमें ग़ैर-मुसलसल नज़्म का पता नहीं है तो उस ज़बान के बोलने वाले नौ दस शे'र की ग़ज़ल में हमारे शाइ'र के इस इख़तिलाफ़-ए-ख़याल को देखकर हैरान रह जाएं। उनको इस बात पर और भी तअ'ज्जुब होगा कि एक शे'र में जो मज़मून अदा किया गया है, उसके ठीक बर-ख़िलाफ़ दूसरे शे'र का मज़मून है। कुछ पता नहीं चलता कि शाइ'र का असली ख़याल क्या है। वो पहले ख़याल को मानता है या दूसरे ख़याल को। उसकी क़ल्बी सदा पहले शे'र में है या दूसरे शे'र में।
अशआर 2
ग़ज़ल 2
नज़्म 7
पुस्तकें 47
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य1971
-