- पुस्तक सूची 187358
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1973
जीवन शैली22 औषधि917 आंदोलन299 नॉवेल / उपन्यास4723 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी13
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1460
- दोहा57
- महा-काव्य109
- व्याख्या199
- गीत73
- ग़ज़ल1184
- हाइकु12
- हम्द46
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1596
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात690
- माहिया19
- काव्य संग्रह5074
- मर्सिया385
- मसनवी837
- मुसद्दस58
- नात559
- नज़्म1252
- अन्य75
- पहेली16
- क़सीदा189
- क़व्वाली18
- क़ित'अ62
- रुबाई297
- मुख़म्मस17
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम33
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त26
तरन्नुम रियाज़ की कहानियाँ
शहर
प्लास्टिक की मेज़ पर चढ़ कर सोनू ने ने’मत-ख़ाने की अलमारी का छोटा सा किवाड़ वा किया तो अंदर क़िस्म-क़िस्म के बिस्कुट, नमक-पारे , शकर-पारे और जाने क्या-क्या ने’मतें रखीं थीं। पल-भर को वो नन्हे से दिल पर कचोके लगाता हुआ ग़म भूल कर मुस्कुरा दिया। और नाइट
यमबरज़ल
इस अंजाम का ख़द्शा सबको था मगर इसकी तवक़्क़ो किसी को नहीं थी। माँ उसपर यक़ीन करने को तैयार नहीं थी। बाप उसे क़बूल नहीं कर पा रहा था। यावर ऐसा सोच भी नहीं सकता था। और अनीक़ा... "निकी बाजी... ये अलजेब्रा मुझे ज़रूर फ़ेल करेगा... "यूसुफ़ ने फिरन के अंदर
कश्ती
यह कहानी कश्मीर में तैनात भारतीय फ़ौज और कश्मीरी अवाम के साथ उनके संबंधों की प्रतिक्रिया को व्यक्त करती है। टेलीफ़ोन बूथ पर लम्बी लाइन है। लाइन में दो व्यक्ति एक ज़ख़्मी बच्चे को लिये टेलीफ़ोन करने के लिए अपनी बारी का इंतिज़ार कर रहे हैं। तभी वहाँ एक बंदूकधारी फ़ौजी आता है और भीड़ को हटाते हुए ज़ख़्मी बच्चा लिये व्यक्ति को पहले फ़ोन करने के लिए कहता है। बच्चे के पैर से ख़ून निकल रहा है। इसी बीच एक औरत वहाँ आ जाती है जो उस बंदूकधारी फ़ौजी के बर्ताव को देखती है। इसके साथ ही उसे वे सभी फ़ौजी याद आ जाते हैं जिन्होंने कश्मीर के लोगों के साथ ज़्यादतियाँ की हैं। उन्हीं यादों में उसे अपनी बीती ज़िंदगी भी याद आती और साथ ही याद आते हैं, बाप और भाई, जो कश्मीर के लिए क़ुर्बान हो गए थे।
मीरा के श्याम
“किस से बात करना है?”, फ़ोन पर जाज़िब सी निस्वानी आवाज़ सुन कर सबीहा ने पूछा। “जी। आप ही से।”, आवाज़ में हल्की से खनक शामिल हो गई। सबीहा इस आवाज़ को बख़ूबी पहचानती थी। ये वो आवाज़ थी जिसकी वज्ह से उसे अ’जीब-अ’जीब तजुर्बे हुए थे। मुख़्तलिफ़ हालात से दो-चार
बालकनी
कहानी एक ऐसे कश्मीरी नौजवान फ़ौजी की है, जो 15 साल बाद अपने बचपन के घर में लौटता है। हालाँकि वह घर अब उसका नहीं है, फिर भी वह घर में बिना आज्ञा दाख़िल हो जाता है। मना करने के बाद भी वह घर की एक-एक चीज़़ को ध्यान से देखता है और अपनी यादों को ताज़ा करता है। घर की औरतें उससे आग्रह करती हैं कि इस समय घर में कोई मर्द नहीं है और न ही उनके यहाँ कोई आतंकवादी है। वह उनकी बातें सुन कर मुस्कुराता है और घर के उस आख़िरी हिस्से में पहुँच जाता है जहाँ कभी एक बालकनी हुआ करती थी, मगर अब उस जगह दीवार है। वह जब उस दीवार को देखता है तो उसे बालकनी की याद आती है और वह मुँह ढाँप कर रोने लगता है।
बुलबुल
इस कहानी का विषय एक ऐसी औरत है, जो अपने घर में बहुत ख़ुश है। उसे उन औरतों के बारे में जान कर हैरानी होती है जो हर वक़्त शिकायत करती रहती हैं कि वे बोर हो रही हैं, उनका समय नहीं कट रहा है। उसे तो अपने समय का पता ही नहीं चलता। एक बार वह अपने पति और बच्चों के साथ हिल स्टेशन पर घूमने जाती है। वहाँ उसे हर जगह, हर चीज़ लुभावनी लगती है। वापसी से पहले ठीक उसकी बेटी बीमार पड़ जाती है और फिर पैकिंग के समय उसे इतने काम करने पड़ते हैं कि वह ख़ुद को पिंजरे में क़ैद एक बुलबल की तरह महसूस करने लगती है।
तजरबा-गाह
एक ऐसे ख़ूबसूरत और अमीर शख़्स की कहानी, जो अपनी ऐश-परस्ती के कारण ख़ुद को तबाह-ओ-बर्बाद कर लेता है। मरने के बाद उसकी ममी बना दी जाती है और फिर सदियों बाद एक जेनेटिक इंजीनियर उसमें फिर से जान डाल देता है। इतने साल मुर्दा रहने के बाद भी उसकी याददाश्त बरक़रार रहती है और वह बीती ज़िंदगी को फिर से प्राप्त करना चाहता है। जब इंजीनियर उसे वास्तविकता से अवगत कराता है तो वह हैरान रह जाता है।
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य1973
-