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आतिफ़ का तोता

आदिल हयात

आतिफ़ का तोता

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MORE BYआदिल हयात

    आतिफ़ ने अपने पड़ोस में तोता क्या देखा, उसे भी तोता पालने का शौक़ पैदा हो गया। वो मुसलसल अपने अब्बू से फ़र्माइश करने लगा। अब्बू उसे समझाते, “बेटा इस शौक़ में तुम्हारा बहुत वक़्त ख़राब होगा। तुम अपनी पढ़ाई ठीक ढंग से नहीं कर पाओगे। जिससे तुम्हारे रिज़ल्ट पर असर पड़ेगा और तुम फ़ेल हो जाओगे।”

    मगर उसने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी। एक दिन तो हद ही हो गई। वो खाना-पीना छोड़ कर तोता लाने की रट लगाने लगा। आख़िर-ए-कार उसकी बात मान ली गई। शाम को अब्बू एक तोता घर ले आए।

    तोते के आते ही वो सब कुछ होने लगा जिसका ख़दशा पहले ही से था। आतिफ़ का सारा-सारा दिन तोते की देख-भाल मैं गुज़रने लगा। उसे खाने का होश रहा और ही सोने का। वो स्कूल भी देर से जाने लगा। इस तरह बहुत से दिन गुज़र गए और इम्तिहान क़रीब गया। जैसे-तैसे कर के उसने इम्तिहान तो दे दिया मगर पास हो सका। इसके बावजूद उसकी आँखें खुलीं। पहले ही की तरह दिन भर तोते के साथ रहता।

    अब्बू ने एक बार फिर समझाने की कोशिश की, मगर नाकाम रहे। आख़िर-ए-कार उन्होंने बहुत सोचा और एक तरकीब उनकी समझ में गई जिसको अमल में लाने के लिए महीनों सख़्त मेहनत करनी पड़ी और एक दिन सच-मुच वो अपने मक़सद में कामयाब हो गए।

    ऐसे वक़्त में जब आतिफ़ घर में नहीं होता या फिर मीठी नींद सोया होता, उस वक़्त अब्बू तोते को बा'ज़ ऐसे जुमले सिखाते रहते जिन्हें वो मौक़ा-ओ-महल के एतबार से मुख़्तलिफ़ औक़ात में दोहरा सके। तोते ने भी सारे जुमले अच्छी तरह से रट लिए और मौक़े का इंतिज़ार करने लगा।

    एक दिन सुबह के वक़्त हल्की-हल्की फुवारें पड़ रही थीं और हवा में ठंडक का एहसास भी बढ़ गया था। सभी बच्चे अपने-अपने बिस्तर को छोड़ कर हाथ में ब्रश लिए घर से बाहर मौसम का मज़ा ले रहे थे, मगर आतिफ़ अपने लिहाफ़ में लिपटा मीठी नींद सो रहा था। अब्बू कई बार कर उसे जगा चुके थे। मगर वो “ऊँ-ऊँ” करने के बा'द फिर से सो जाता था। उसी वक़्त अचानक तोते की आवाज़ कमरे में गूँज उठी,

    “अबे आतिफ़... सोया ही रहेगा... उठ... धूप निकल आई है।”

    तोते ने इस जुमले को बार-बार दुहराया तो आतिफ़ की नींद का सिलसिला टूट गया। वो जमाही लेता हुआ उठ बैठा और आँखें मल-मल कर इधर-उधर देखने लगा। कमरे में तोते के इलावा कोई और नहीं था। उसे लगा कि ख़्वाब में ये सब सुना है और वो फिर से सोने की कोशिश करने लगा। तभी तोते की आवाज़ फिर आई,

    “अबे उठ... जा कर ब्रश कर... मुँह-हाथ धो कर तैयार हो जा।”

    आतिफ़ हड़बड़ा गया और आँखें फाड़-फाड़ कर तोते की तरफ़ देखने लगा। उसे हैरत हुई कि तोते को क्या हो गया है और वो ऐसी ज़बान क्यों बोल रहा है? लेकिन उसकी समझ में कुछ भी आया। इसी दरमियान तोते ने फिर से हाँक लगाई तो उसने बिस्तर छोड़ दिया और सीधे बाथरूम की राह ली। पहले उसने ब्रश किया और नहा-धो कर नाशते की मेज़ पर जा कर बैठ गया। नाशता पहले ही से मेज़ पर लगा हुआ था। अब्बू के साथ उसने नाशता किया और गर्म-गर्म दूध पी कर पिंजरे के पास चला आया। तोता पिंजरे में बैठा ऊँघ रहा था। आतिफ़ को देख कर चौंक गया और अपनी गर्दन हिलानी शुरू कर दी। तभी अब्बू ने नज़रें बचा कर तोते को इशारा किया। तोते ने थोड़ी देर ख़ामोश रहने के बाद कहना शुरू किया,

    “अबे... मेरे पास खड़ा क्या कर रहा है... स्कूल जाना नहीं है क्या?”

    तोते की बातें सुन कर आतिफ़ आँखें फाड़-फाड़ कर उसकी तरफ़ देखने लगा। उसे बे-इंतिहा हैरत हो रही थी। आज से पहले कभी भी उसने तोते को ऐसी बातें करते नहीं सुना था। वो सोचने लगा, मगर उसकी समझ में कुछ आया। पूछा,

    “तोते मियाँ... मैं साथ में खेलना चाहता हूँ और तुम हो कि...”

    तोते ने आतिफ़ की बातें सुन कर अपनी गर्दन घुमा ली और अपने साबिक़ा जुमले दोहराने लगा। आतिफ़ स्कूल जाने के लिए तैयार तो हो गया लेकिन सारा दिन उसके ज़ह्न में तोते मियाँ के जुमले गूँजते रहे। स्कूल से वापसी पर उसने तोते के साथ मिल कर खेलना चाहा, मगर कामयाब हो सका। तोते ने उसकी तरफ़ आँखें उठा कर देखा तक नहीं। वो अकेले ही एक गेंद के साथ खेलता रहा। खेलते-खेलते काफ़ी वक़्त गुज़र गया। अचानक तोते की आवाज़ उसके कानों से टकराई,

    “अबे... बस भी कर... अपना होमवर्क तो कर ले।”

    आतिफ़ को एक दम से झटका लगा। वो हड़बड़ा गया और तोते की तरफ़ फटी-फटी आँखों से देखने लगा। तोता था कि मुसलसल अपने जुमले दोहराए जा रहा था। झल्लाहट में उसने पिंजरे को बाएँ हाथ से झटका दिया और पढ़ने की मेज़ पर कर बैठ गया।

    उस दिन अब्बू की ख़ुशी का ठिकाना रहा। जिस तरह वो चाहते थे, तोते ने ठीक वैसे ही किया। इसके बाद तो रोज़ाना का मा'मूल बन गया। जैसे ही तोते को महसूस होता कि आतिफ़ अपने काम से जी चुरा रहा है। वो अपने रटे हुए जुमलों को दोहराने लगता जिसे सुनकर आतिफ़ अपने काम में लग जाया करता था।

    इस तरह कई महीने गुज़र गए। एक दिन तंग कर आतिफ़ ने पिंजरे का मुँह खोल दिया और तोता फड़-फड़ा कर उड़ गया। उस वक़्त अब्बू बरामदे में बैठे धूप का मज़ा ले रहे थे। तोता उड़ता हुआ सीधे उनके पास गया और एक ख़ाली कुर्सी के हत्थे पर बैठ गया। अब्बू ने अपने हाथों पर उठा कर उसे ख़ूब-ख़ूब प्यार किया और उसका शुक्रिया अदा करते बोले,

    “आपकी अस्ल जगह छोटा सा पिंजरा नहीं... बल्कि ये खुला हुआ आसमान है... जाइए खुली फ़िज़ा में... और हाँ... आतिफ़ मियाँ से भी मिलने जाया कीजिएगा... वो अब भी आपको प्यार करता है।”

    अब्बू की बातें सुन कर तोते ने पंख तौला और उड़ गया। थोड़ी दूर ऊँचाई पर जा कर उसने गहरी-गहरी साँसें लीं और आँखों से ओझल हो गया।

    स्रोत:

    जादुई छड़ी (Pg. 45)

    • लेखक: आदिल हयात
      • प्रकाशक: मक्तबा पयाम-ए-तालीम, नई दिल्ली
      • प्रकाशन वर्ष: 2010

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