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शबनम का ताज

किश्वर नाहीद

शबनम का ताज

किश्वर नाहीद

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    किसी बादशाह की सिर्फ़ एक ही बेटी थी। वो बहुत ज़िद्दी थी। एक दिन सुबह को वो बाग़ में टहलने के लिए गई तो उसने फूल-पत्तियों पर शबनम के क़तरे चमकते हुए देखे। शबनम के ये क़तरे उन हीरों से ज़्यादा चमकदार और ख़ूबसूरत थे जो शहज़ादी के पास थे।

    शहज़ादी सीधी महल में वापिस आई और बादशाह से कहने लगी, “मुझे शबनम का एक ताज बनवा दीजिए। जब तक मुझे ताज नहीं मिलेगा मैं कुछ खाऊँगी पियूँगी।”

    ये कह कर शहज़ादी ने अपना कमरा बंद कर लिया और चादर ओढ़ कर पलंग पर लेट गई।

    बादशाह जानता था कि शबनम के क़तरों से ताज नहीं बनाया जा सकता। फिर भी उसने शहज़ादी की ज़िद पूरी करने के लिए शहर के तमाम सुनारों को बुला भेजा और उनसे कहा कि तीन दिन के अंदर-अंदर शबनम के क़तरों का ताज बना कर पेश करो वर्ना तुम्हें सख़्त सज़ा दी जाएगी। बेचारे सुनार हैरान परेशान कि शबनम का ताज किस तरह बनाएँ।

    उन सुनारों में एक बूढ़ा सुनार बहुत अक़्ल-मंद था। सोचते-सोचते उसके दिमाग़ में एक तरकीब आई। वो दूसरे दिन सुबह को महल के दरवाज़े पर गया और सिपाहियों से कहा कि वो शहज़ादी का ताज बनाने आया है। सिपाहियों से कहा कि वो शहज़ादी का ताज बनाने आया है। सिपाही उसे शहज़ादी के पास ले गए। बूढ़े सुनार ने शहज़ादी को झुक कर सलाम किया और बोला, “हुज़ूर, मैं आपका ताज बनाने के लिए आया हूँ, लेकिन मेरी एक छोटी सी शर्त है।”

    “कहो, क्या कहना चाहते हो?” शहज़ादी ने कहा।

    सुनार बोला, “आप बाग़ में चल कर मुझे शबनम के वो क़तरे दे दीजिए जिनका आप ताज बनवाना चाहती हैं। जो क़तरे आप पसंद कर के मुझे देंगी मैं फ़ौरन उनका ताज बना दूँगा।”

    शहज़ादी सुनार के साथ बाग़ में गई। फूलों और पत्तों पर शबनम के क़तरे जगमगा रहे थे। लेकिन शहज़ादी ने जिस क़तरे को भी छुआ वो उसकी उंगलियों पर पानी की तरह बह गया।

    तब शहज़ादी ने खिसियानी हो कर बूढ़े सुनार से माफ़ी माँगी और अह्द किया कि वो अब कभी ऐसी ज़िद नहीं करेगी।

    (चीनी कहानी)

    स्रोत:

    जादू की हंडिया (Pg. 10)

    • लेखक: किश्वर नाहीद
      • प्रकाशक: मक्तबा पयाम-ए-तालीम, नई दिल्ली
      • प्रकाशन वर्ष: 2012

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