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च्यूँटी की कहानी

इशरत मोईन सीमा

च्यूँटी की कहानी

इशरत मोईन सीमा

MORE BYइशरत मोईन सीमा

    सारा के घर के क़रीब एक छोटा सा बाग़ था जहाँ कुछ हरे-भरे पेड़ पौदे और घास मौजूद थी। लेकिन जब सख़्त गर्मी पड़ती तो वहाँ घास और पेड़ पौदों की हरियाली माँद पड़ती जाती। परिंदे और दूसरे जानवर भी अपने-अपने बिलों, घोंसलों और घरों में दुबके बैठे रहते। लेकिन इस सख़्त गर्मी में दरख़्त की जड़ों से च्यूँटियों की एक लंबी क़तार जाने कहाँ से निकल आती और अपने सर पे कोई दाना उठाए बाग़ में जगह-जगह से गुज़रती दिखाई देतीं।

    सारा अपनी अम्मी के साथ रोज़ाना शाम को बाग़ में जब खेलने जाती तो दिन-भर की बची-खुची बासी रोटियों के टुकड़े, बाजरा और चावल वग़ैरा परिंदों और जानवरों के लिए साथ ले जाती और जहाँ परिंदे नज़र आते वहाँ उछाल-उछाल कर बिखेरती और परिंदे उन दानों को खाने के लिए लपक कर ज़मीन पर जाते और एक दूसरे को ठोंगें मार कर दाने उचक कर ले जाते।

    एक रोज़ बाग़ के माली ने सारा को मना किया कि वो यूँ खाने-पीने की चीज़ें बाग़ में हर तरफ़ फैलाया करे क्योंकि इस तरह बाग़ में च्यूँटियाँ और वो कीड़े-मकोड़े भी फैल जाते हैं जो बाग़ को ख़राब करते हैं। माली ने सारा को समझाया कि वो उन दाने को सारे बाग़ की घास में बिखेरने के बजाय उन्हें किसी कोने में या दरख़्त के साए में किसी मिट्टी के बर्तन में रख दिया करे ताकि बाग़ में आने वाले जानवर ख़ुद ही एक जगह से खाना खा लें और बाग़ भी साफ़ दिखाई दे।

    एक दिन सारा की अम्मी ने एक मिट्टी के बड़े कटोरे में पानी और कुछ सूखी रोटी के टुकड़े रख कर उससे कहा कि वो ये कटोरा बाग़ में दरख़्त की छाओं में रख आए ताकि वहाँ ये दाना-पानी ठंडा भी रहे और जानवर-ओ-परिंदे अपनी प्यास बुझाने के साथ-साथ खाना भी खा लें।

    सारा ने जल्दी से जूते पहने और घर से बाग़ की जानिब कटोरा लेकर चल दी। अगर-चे ये बाग़ सारा के घर के बिलकुल सामने था लेकिन इस सख़्त चिल-चिलाती गर्मी में दो क़दम चलना भी मुश्किल था। उसको गर्मी से बहुत पसीना आने लगा। जब वो पानी का कटोरा बाग़ में रख कर अपने घर की तरफ़ लौट रही थी तब उसने देखा कि इतनी गर्मी में भी च्यूँटियों की एक पूरी फ़ौज लाइन से बाग़ के एक कोने से दूसरे कोने की तरफ़ आना-जाना कर रही है और ज़मीन पर घास से जगह-जगह च्यूँटियों ने मिट्टी बाहर निकालना शुरू कर दी है। सारा को बाग़ में च्यूँटियों का यूँ जगह-जगह सुराख़ करना पसंद आया। उसे लगा कि ये च्यूँटियाँ सारे बाग़ में फैल कर बाग़ की घास को ख़राब कर रही हैं। उसने अपना पैर च्यूँटियों की क़तार पर रखा और अपने जूते से मिट्टी बराबर करते हुए उन सुराख़ों को बंद करने की कोशिश करने लगी। अभी वो ऐसा कर ही रही थी कि अचानक बहुत सारी च्यूँटियाँ ग़ुस्से में उसके पैर पर चढ़ने और जूते में घुसने लगीं। जब सारा को जूते के अंदर च्यूँटियाँ रेंगती महसूस हुईं तो वो पाँव पटख़ते हुए घर की जानिब दौड़ी। इतनी देर में एक-दो च्यूँटियों ने उसके पाँव पर काटने की भी कोशिश की। सारा ज़ोर-ज़ोर से अपनी अम्मी को पुकारने लगी।

    “अम्मी ये च्यूँटियाँ मुझे काट रही हैं।”

    उसने घर में दाख़िल होते ही अपनी अम्मी को आवाज़ लगाई और दर्द से चिल्लाते हुए एक जूता पाँव से उतार कर फेंका और दूसरा पहने-पहने भाग कर कमरे में घुस गई। सारा की अम्मी उसकी ये हालत देख कर परेशान हो गईं और तक़रीबन दौड़ते हुए सारा के पास कर उससे पूछा,

    “क्या हुआ बेटी तुम तो बाग़ में पानी रखने गई थी फिर ये च्यूँटियाँ कहाँ से साथ ले आईं?”

    “अम्मी मैंने च्यूँटियों की लंबी क़तार को पाँव से तोड़ने की कोशिश की थी क्योंकि वो बाग़ में घास पर जगह-जगह सुराख़ करके मिट्टी बाहर फेंक रही थीं और बाग़ की ख़ूबसूरती को ख़राब कर रही थीं।”

    सारा ने अपना पैर खुजलाते हुए कहा।

    “अरे नहीं सारा तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा बिलकुल नहीं है कि ये च्यूँटियाँ बाग़ ख़राब कर रही हैं। ये भी क़ुदरत ने पैदा की हैं और इनकी मौजूदगी भी इस बाग़ का एक हिस्सा ही है। चूँकि ये बारिश और सर्दी में ज़िंदा नहीं रह सकतीं इसलिए ये सिर्फ़ गर्मियों के मौसम में ज़मीन के अंदर से बाहर निकलती हैं और अपना रिज़्क़ तलाश करके ज़ेर-ए-ज़मीन अपने घरों में ले जाती हैं। ये च्यूँटियाँ बहुत मेहनती होती हैं अपने वज़्न से कई गुना ज़्यादा वज़्न का दाना अपने सर पर उठा कर बहुत मेहनत से अपने घर ले जा सकती हैं। ये निहायत मेहनती और मुत्तहिद जानदार हैं। तुम्हें उन्हें तंग नहीं करना चाहीए... जब बिला-वजह तुम किसी भी जानदार को परेशान करोगी तो वो पलट कर ऐसा ही ग़ुस्सा दिखाएगा जैसा इन च्यूँटियों ने किया।” सारा की अम्मी ने सारा को ग़ुस्ल-ख़ाने की जानिब ले जाते हुए कहा।

    “अम्मी अल्लाह मियाँ ने च्यूँटियाँ क्यों बनाई हैं? तो ये ख़ूबसूरत हैं और ना-कार आमद बल्कि उलटा इन्सानों और जानवरों को काटती हैं... सब ही उनसे बचना चाहते हैं और उनसे अपने घरों को साफ़ रखना चाहते हैं मगर फिर भी ये ज़मीन के अंदर घर बना लेती हैं।”

    सारा ने मुँह बिसूरते हुए कहा। च्यूँटियों के काटने से उसके पैर में जलन हो रही थी और पाँव का अँगूठा भी सुर्ख़ हो गया था।

    अम्मी ने सारा के पाँव धुलाते हुए समझाया, और कहा कि, “अल्लाह ता'ला ने दुनिया में कोई भी मख़लूक़ बेकार पैदा नहीं की। च्यूँटियों के भी क़ुदरत ने फ़ायदे रखे हैं। सबसे बड़ा फ़ायदा तो ये है कि इन्सान इस छोटी सी मख़लूक़ से मुत्तहिद, मुनज़्ज़म और मेहनत का सबक़ सीखे। ये नन्ही सी मख़लूक़ एक हाथी को भी ज़मीन पे गिरा देने की ताक़त रखती है। तुम्हें पता है कि ये च्यूँटियाँ कितनी दिलचस्प मख़लूक़ हैं।”

    सारा को च्यूँटियों के अहम और ताक़तवर मख़लूक़ होने पर हैरत हो रही थी। वो उनके बारे में मज़ीद जानने के लिए बेचैन हो गई। जब सारा की अम्मी उसके पाँव पर च्यूँटियों के काटने की जगह पर मरहम लगा रही थी तो उसने तजस्सुस से अपनी अम्मी से कहा,

    “अम्मी आप मुझे बताईए कुछ उन नन्ही-मुन्नी ताक़तवर मख़लूक़ के बारे में... ये छोटी सी च्यूँटी हाथी को कैसे गिरा सकती है?”

    सारा की अम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा कि, “आज रात को मैं तुम्हें च्यूँटियों के बारे में बताऊँगी, मेरे पास एक च्यूँटियों पर तस्वीरी किताब भी है उसमें से तुम्हें कुछ पढ़ कर सुनाऊँगी और तस्वीरें भी दिखाऊँगी। अभी तुम अपने बिस्तर पे बैठ कर अपनी कलर बुक में तस्वीरें बनाओ और रंग भरो, तब तक मैं कुछ घर के काम कर लूँ।”

    उस रोज़ दिन-भर सारा च्यूँटियों के बारे में सोचती रही। रात को खाने और दाँत माँझने के बा'द जब वो बिस्तर पे सोने के लिए लेटी तो उसने अपनी अम्मी को याद दिलाया कि आज उन्हें च्यूँटी की कहानी सुनानी है।

    सारा की अम्मी ने पहले सारा के पाँव में च्यूँटी के काटने का निशान देखा जो मरहम लगाने से ठीक हो गया था। उन्होंने ख़ुदा का शुक्र अदा करते हुए उसे बताया कि च्यूँटियाँ कभी-कभी बहुत ख़तरनाक तरीक़े से काट लेती हैं और उनके काटने पर इन्सान कई दिन तक सूजन और जलन महसूस करता है। यही वजह है कि इतना बड़ा और ताक़तवर हाथी अपनी नाज़ुक सूंड में च्यूँटी के काटने से बहुत डरता है। वो उस तकलीफ़ को बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर पाता और कभी-कभी तो दर्द से बेहोश हो जाता है।”

    सारा का तजस्सुस बढ़ गया था वो च्यूँटियों के बारे में मज़ीद जानने के लिए बेचैन हो गई थी। सारा की अम्मी ने जानवरों और हशरात पर एक किताब किताबों की अलमारी से निकाली और कुछ वर्क़ पलटने के बाद सारा को बताया कि ये नन्ही-मुन्नी च्यूँटियाँ बहुत अर्से से साईंस-दानों के लिए दिलचस्प रही हैं। क्योंकि ये मुन्नी सी च्यूँटियाँ ज़मीन के अंदर इन्सानों की तरह अपना पूरा एक शहर बसा कर निहायत मुनज़्ज़म तरीक़े से रहती हैं और ये तमाम च्यूँटियाँ अपने काम मुख़्तलिफ़ गिरोहों में तक़सीम कर लेती हैं। क़ुदरत ने च्यूँटियों को कई दर्जे में भी तक़सीम किया हुआ है और हर चियूंटी अपनी ज़िम्मेदारी अपने दर्जे के मुताबिक़ अदा करती है। जैसा कि ज़मीन के नीचे बसे च्यूँटियों के शहर में हर चियूंटी का अहम किरदार होता है। उनमें कुछ मज़दूर च्यूँटियाँ होती हैं जिनका काम ज़मीन के अंदर घर बनाना और गर्मियों में मिट्टी बाहर निकाल कर दूसरी च्यूँटियों के लिए रास्ता बनाना है। इसके इलावा कुछ मुहाफ़िज़ च्यूँटियाँ भी होती हैं जो ज़मीन के नीचे मलिका च्यूँटी और उसके अंडों की हिफ़ाज़त करती हैं। कुछ च्यूँटियाँ खाना जमा कर के ज़ख़ीरा करती हैं और कुछ च्यूँटियाँ ख़ासतौर पर दीगर हशरात और जानवरों से लड़ने और घर को बचाने की तर्बियत पाती हैं। ये सारी च्यूँटियाँ रंग और साईज़ में पहचानी जाती हैं। ये च्यूँटियाँ आपस में बातचीत भी करती हैं और एक दूसरे को उनकी ख़ुशबू से पहचानती हैं। साईंस-दान कहते हैं कि दुनिया में च्यूँटियों की इक़साम की ता'दाद बारह हज़ार के क़रीब है। ये सारी इक़साम इलाक़े के मौसम और ज़मीन की सख़्ती और नरमी की वजह से वुजूद में आती हैं। मुख़्तलिफ़ इक़साम की इन च्यूँटियों में तीन अहम क़िस्म की च्यूँटियाँ इन्सानों की ज़िंदगी के लिए भी फ़ाइदा-मंद हैं जो तक़रीबन हर जगह पाई जाती हैं।

    पहले नंबर पर शहद वाली च्यूँटियाँ हैं जिनके बारे में साईंसदान कहते हैं कि ये च्यूँटियों की एक अनोखी क़िस्म है। इस क़िस्म की च्यूँटियों के पेट में शहद होता है। ये च्यूँटियाँ अपने बिलों में ही रहती हैं। ये ज़मीन के नीचे अपनी ख़ुराक दूसरी उन च्यूँटियों से हासिल करती हैं जो च्यूँटियाँ फूलों का रस चूस कर आती हैं और बिल में फुज़ला ख़ारिज करती हैं। शहद वाली च्यूँटियाँ उस फ़ुज़्ले को चूस लेती हैं, जिससे शहद बनता है ये शहद बहुत क़ीमती होता है। इन शहद वाली च्यूँटियों की जसामत अंगूर की तरह होती है। ये ज़मीन के नीचे ये दूसरे हमलावरों कीड़ों से ख़ुद को महफ़ूज़ रखती हैं लेकिन ज़मीन के नीचे गहराई में नमी वाला माहौल उनके लिए अच्छा नहीं है। ये च्यूँटियाँ ख़ुद उस माहौल से बचने के लिए ये अपने ख़ास जिस्म से एक जरासीम-कुश माद्दा ख़ारिज करती हैं और उस माद्दे को वो अपने जिस्म पर चारों तरफ़ लगाती रहती हैं। उस माद्दे से वो नमी वाले माहौल से ज़मीन के अंदर महफ़ूज़ रहती हैं।

    इन च्यूँटियों से दूसरी च्यूँटियाँ भी शहद हासिल करती हैं। दूसरी च्यूँटियों का शहद हासिल करने का तरीक़ा ये है कि ये अपने ख़ास एंटीना से शहद वाली च्यूँटियों के एंटीने को थपथपाती है, जिससे शहद वाली च्यूँटी अपना मुँह खोल देती है और ये शहद हासिल करती है। शहद की लेने और देने के सिलसिले को कंट्रोल करने के लिए उनके पास एक ख़ास वाल्व होता है जिसमें वो इज़ाफ़ी शहद डाल देती हैं और उनका निकला हुआ शहद ज़ाया नहीं होता।

    इन च्यूँटियों की उम्र चंद माह ही होती है। ऐसी च्यूँटियों का शहद बहुत कम मिक़दार में होता है लेकिन ये इन्सानों की बहुत सी मोहलिक बीमारियों की दवाएँ बनाने में काम आता है।

    दूसरे नंबर पर फ़ौजी च्यूँटियाँ हैं। ये च्यूँटियाँ फ़ौजियों की तरह रहती हैं। यानी पूरा लश्कर बना कर एक साथ रहती हैं। इनकी ता'दाद लाखों में होती है। ये अपने घर अक्सर बदलती रहती हैं और एक जगह से दूसरी जगह सफ़र करती रहती हैं। ये च्यूँटियाँ तक़रीबन बत्तीस दिन की मुहिम पर काम करती हैं, जिसमें सोलह दिन ये आगे बढ़ती हैं और बाक़ी सोलह दिन आराम करती हैं। आराम के दिनों में इनकी मलिका अंडे देती है और च्यूँटियाँ एक दूसरे की टाँगों में टाँगें फंसा कर या हाथ से हाथ जोड़ कर ज़ंजीर बनाते हुए अपनी मलिका के गिर्द पर्दा ताने रहती हैं। जिससे मलिका और बच्चे महफ़ूज़ रहते हैं। इन फ़ौजी च्यूँटियों को ख़ुराक इकट्ठी करने के लिए ग्रुप में भेजा जाता है जिसमें वो दूसरे कीड़े-मकोड़े और छोटे जानवर शिकार करती हैं। इनका लश्कर तीस फुट तक बड़ा होता है। ये मरे हुए जानवर और ज़िंदा छिपकलियाँ, चूहों वग़ैरा का चट सफ़ाया कर देती हैं। इन मुर्दा जानवरों के ठिकाने लगने की वजह से माहौल में जरासीम नहीं फैलते और इन्सान बीमारियों से महफ़ूज़ रहता है।

    च्यूँटियों की तीसरी क़िस्म ज़हरीले पौदों के पत्ते काटने वाली च्यूँटियों की है। ये च्यूँटियाँ ऐसी होती हैं जो पत्ते काटती हैं और अपने शह्र में घर की तामीर के लिए ले जाती हैं जब इन पत्ते काटने वाली च्यूँटियों के दाँतों का असर कम हो जाता है तो ये रिटायर्ड हो जाती हैं। ये बूढ़ी च्यूँटियाँ बाक़ी च्यूँटियों की निसबत कम काम करती हैं लेकिन फिर भी ये बोझ उठा सकती हैं। ये च्यूँटियाँ अपने वज़्न से पचास फ़ीसद ज़्यादा वज़्न उठा सकती हैं। फलदार दरख़्तों के इर्द-गिर्द जितने भी ज़हरीले पौदे और पत्ते पैदा होते हैं ये उनकी ख़ुशबू पहचानती हैं और उनको काट-काट कर ख़त्म कर देती हैं।

    च्यूँटियाँ ज़मीन पर बहुत पुरानी मख़लूक़ हैं। इनका ज़िक्र मज़हबी किताबों में भी आया है। क़ुरआन में भी अल्लाह ता'ला ने सूरह नमल में इसका ज़िक्र किया है और इसके इलावा भी च्यूँटियों के कई क़िस्से दीनी और तारीख़ी किताबों में मौजूद हैं।

    सारा की अम्मी ने किताब में से च्यूँटियों की मुख़्तलिफ़ इक़साम की तसावीर सारा को दिखाईं तो उसको ये मुन्नी-मुन्नी सी च्यूँटियाँ वाक़ई बहुत बहादुर और कार-आमद मख़लूक़ महसूस हुईं। उसने किताब में तस्वीरें देखने और च्यूँटियों के बारे में इतना जानने के बा'द अपनी अम्मी से वा'दा किया कि अब वो बाग़ में च्यूँटियों को कभी नहीं मारेगी बल्कि अब उनका ब-ग़ौर जायज़ा लेने की कोशिश करेगी और अपने दोस्तों को भी च्यूँटियों की तरह मेहनती, बहादुर और इत्तिफ़ाक़-ओ-इत्तिहाद से रहने के बारे में बताएगी।

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