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दो चूहे

जमील जालिबी

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    दो चूहे थे जो एक दूसरे के बहुत गहरे दोस्त थे। एक चूहा शह्र की एक हवेली में बिल बना कर रहता था और दूसरा पहाड़ों के दरमियान एक गाँव में रहता था। गाँव और शह्र में फ़ासला बहुत था, इसलिए वो कभी-कभार ही एक दूसरे से मिलते थे।

    एक दिन जो मुलाक़ात हुई तो गाँव के चूहे ने अपने दोस्त शहरी चूहे से कहा, “भाई हम दोनों एक दूसरे के गहरे दोस्त हैं। किसी दिन मेरे घर तो आईए और साथ खाना खाइए।”

    शहरी चूहे ने उसकी दावत क़ुबूल कर ली और मुक़र्ररा दिन वहाँ पहुँच गया। गाँव का चूहा बहुत इज़्ज़त से पेश आया और अपने दोस्त की ख़ातिर मुदारात में कोई कसर उठा रखी। खाने में मटर, गोश्त के टुकड़े, आटा और पनीर और मीठे में पके हुए सेब के ताज़ा टुकड़े उसके सामने ला कर रखे। शहरी चूहा खाता रहा और वो ख़ुद उसके पास बैठा मीठी-मीठी बातें करता रहा। इस अंदेशे से कि कहीं मेहमान को खाना कम पड़ जाये, वो ख़ुद गेहूँ की बाली मुँह में लेकर आहिस्ता-आहिस्ता चबाता रहा।

    जब शहरी चूहा खाना खा चुका तो उसने कहा, “अरे यार-ए-जानी अगर इजाज़त हो तो मैं कुछ कहूँ?”

    गाँव के चूहे ने कहा, “कहो भाई ऐसी क्या बात है?”

    शहरी चूहे ने कहा, “तुम ऐसे ख़राब और गंदे बिल में क्यों रहते हो? इस जगह में सफ़ाई है और रौनक। चारों तरफ़ पहाड़, नदी और नाले हैं। दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आता। तुम क्यों शह्र में चल कर रहो। वहाँ बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। सरकारी दरबार हैं। साफ़-सुथरी रौशन सड़कें हैं। खाने के लिए तरह-तरह की चीज़ें हैं। आख़िर ये दो दिन की ज़िंदगी है। जो वक़्त हंसी-ख़ुशी और आराम से गुज़र जाये वो ग़नीमत है। बस अब तुम मेरे साथ चलो। दोनों पास रहेंगे। बाक़ी ज़िंदगी आराम से गुज़रेगी।”

    गाँव के चूहे को अपने दोस्त की बातें अच्छी लगीं और वो शह्र चलने पर राज़ी हो गया। शाम के वक़्त चल कर दोनों दोस्त आधी रात के क़रीब शह्र की उस हवेली में जा पहुँचे जहाँ शहरी चूहे का बिल था। हवेली में एक ही दिन पहले बड़ी दावत हुई थी जिसमें बड़े-बड़े अफ़्सर, ताजिर, ज़मींदार, वडेरे और वज़ीर शरीक हुए थे। वहाँ पहुँचे तो देखा कि हवेली के नौकरों ने अच्छे-अच्छे खाने खिड़कियों के पीछे छुपा रखे हैं। शहरी चूहे ने अपने दोस्त, गाँव के चूहे को रेशमी ईरानी क़ालीन पर बिठाया और खिड़कियों के पीछे छिपे हुए खानों में से तरह-तरह के खाने उसके सामने ला कर रखे। मेहमान चूहा खाता जाता और ख़ुश हो कर कहता जाता, “वाह यार क्या मज़े-दार खाने हैं। ऐसे खाने तो मैंने ख़्वाब में भी नहीं देखे थे।

    अभी वो दोनों क़ालीन पर बैठे खाने के मज़े लूट ही रहे थे कि यकायक किसी ने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के खुलने की आवाज़ पर दोनों दोस्त घबरा गए और जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। इतने में दो कुत्ते भी ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगे। ये आवाज़ सुनकर गाँव का चूहा ऐसा घबराया कि उसके होश-ओ-हवास उड़ गए। अभी वो दोनों एक कोने में दुबके हुए थे कि बिल्लियों के ग़ुर्राने की आवाज़ सुनाई दी। गाँव के चूहे ने घबरा कर अपने दोस्त शहरी चूहे से कहा, “ऐ भाई अगर शह्र में ऐसा मज़ा और ये ज़िंदगी है तो ये तुमको मुबारक हो। मैं तो बाज़ आया। ऐसी ख़ुशी से तो मुझे अपना गाँव, अपना गंदा बिल और मटर के दाने ही ख़ूब हैं।”

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