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हिरन के पेट में मुश्क

अबरार मोहसिन

हिरन के पेट में मुश्क

अबरार मोहसिन

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    आपने हिरन तो ज़रूर देखा होगा। जी हाँ, वही दुबला-पतला, ख़ूबसूरत आँखों का नूर जो इस क़दर तेज़ दौड़ता है कि आँधी-ओ-तूफ़ान भी उसकी गर्द को नहीं पा सकते। हिरन का रंग उमूमन कत्थई या ख़ाकी होता है। आपने काले रंग का हिरन ग़ालिबान कभी देखा होगा। दर-हक़ीक़त काले रंग का हिरन हर दौर में पाया जाता है। ये ज़्यादा-तर शुमाली हिन्दोस्तान में हिमालया के जंगलों में ही पाया जाता है।

    आप सोच रहे होंगे कि हिरन का रंग काला होना तो कोई ऐसी अनोखी बात नहीं है। जिस तरह बहुत से दूसरे जानवरों, परिंदों और ख़ुद इन्सानों का रंग होता है, उसी तरह अगर हिरन भी काले हों तो इसमें ता'ज्जुब की क्या बात है?

    दर-अस्ल बात ये कि इस हिरन के पेट में एक ऐसी चीज़ छिपी होती है जिसकी ख़ुशबू का सारी दुनिया में जवाब नहीं। इस अजीब ख़ुशबू को मुश्क या मुश्कनाफ़ा कहते हैं। मुश्क का इत्र बनाया जाता है, इसके अलावा दवाओं में भी इसका इस्तिमाल किया जाता है। अब सवाल ये है कि हिरन का रंग काला क्यों और उसके पेट में मुश्क क्यों होता है? इस सिलसिले में एक मज़ेदार कहानी सुनो।

    ये उन दिनों की बात है जब तो हिरन का रंग काला था और ही उसके पेट में मुश्क था।

    किसी जगह एक बहुत बड़े दरिया के किनारे एक गुनजान जंगल आबाद था। उस जंगल में हर क़िस्म के जानवर रहते थे। जंगल का बादशाह शेर था। रियाया बड़ी ख़ुश-हाल थी। जंगल में खाने-पीने की किसी चीज़ की कमी थी। सारे जानवर सुख और इत्मीनान की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। जंगल के नज़दीक जो दरिया था उसमें घड़ियाल की हुकूमत थी। घड़ियाल शेर की तरह क़ाबिल हुकमरान था बल्कि इंतिहाई ज़ालिम, लालची और मग़रूर था।

    घड़ियाल चाहता था कि उसकी हुकूमत दरिया के इलावा जंगल पर भी हो जाए। हालाँकि ऐसा मुम्किन था, क्योंकि घड़ियाल पानी का जानवर था, लेकिन लालची इन्सान हो या जानवर मुम्किन और ना-मुमकिन को सोचता ही नहीं। उसके इलावा जंगल के सारे जानवर ख़ुश थे। जब किसी मुल्क की रियाया मुत्मइन हो तो दुश्मन की निगाह उसकी तरफ़ नहीं उठ सकती।

    एक-बार घड़ियाल को एक तरकीब सूझी। सुबह ही सुबह हर-रोज़ जानवर दरिया पर पानी पीने आया करते थे। बस घड़ियाल किनारे के क़रीब ही पानी में छिप कर बैठ गया। इत्तिफ़ाक़ से वहाँ सबसे पहले गीदड़ पानी पीने आया। घड़ियाल ने झट उसकी दुम पकड़ ली। गीदड़ घबरा गया। घड़ियाल ने कहा,

    “बोल तेरा राजा कौन है?”

    “मेरा राजा तो शेर है?” गीदड़ बोला।

    घड़ियाल ने ग़ुस्से में कहा, “अगर जान की ख़ैर चाहता है तो मुझे अपना राजा कह।”

    गीदड़ हालाँकि घबरा गया था लेकिन उसने अपने औसान दरुस्त कर के कहा, हुज़ूर मैं एक अदना जानवर हूँ और आप हैं दरिया के बादशाह। आपने मेरी गंदी दुम पकड़ रखी है। छी-छी।”

    घड़ियाल ने फ़ौरन गीदड़ की दुम छोड़ दी। गीदड़ छलाँग मार कर दूर भागा और कहने लगा, “नालायक़, तुझ जैसे भी कहीं राजा बना करते हैं।”

    घड़ियाल जल भुन कर रह गया और गीदड़ भागम-भाग शेर के पास पहुँचा और उसे सारा क़िस्सा कह सुनाया।

    शेर उसी वक़्त दरिया के किनारे जा कर दहाड़ने लगा, “बुज़दिल घड़ियाल, मेरी रिआया को बहका रहा है। अगर हिम्मत है तो बाहर निकल कर कर मुक़ाबला कर।”

    घड़ियाल क़रीब ही पानी में छिपा हुआ सब-कुछ सुन रहा था। चूँकि बुज़दिल था इसलिए उसकी बात का जवाब देने की हिम्मत पड़ी।

    शेर चला गया। घड़ियाल सोचता रहा कि आख़िर कोई तरकीब तो ऐसी निकाली जाए कि शेर की हुकूमत कमज़ोर पड़ जाए और रिआया में बेचैनी फैले ताकि मैं आसानी से जंगल का राजा भी बन सकूँ। अचानक एक तरकीब उसके ज़ह्न में आई और वो मुस्कुराने लगा।

    शाम के वक़्त रोज़ की तरह हाथी उस दरिया में पानी पीने आया। घड़ियाल ने पानी से बाहर सर निकाल कर कहा, “सलाम महाराज।”

    “मैं राजा नहीं हूँ।” हाथी ने जवाब दिया। “राजा तो शेर है। मैं उसकी रिआया हूँ।”

    “क्यों मज़ाक़ करते हैं आप महाराज।” घड़ियाल ने कहा।

    “मज़ाक़...” हाथी ने हैरान हो कर कहा, “कौन कर रहा है मज़ाक़?”

    “आप कह रहे हैं कि आप जंगल के राजा नहीं हैं। अजी, क्या ये मज़ाक़ नहीं है?” घड़ियाल बोला।

    “मैं सच कह रहा हूँ कि जंगल का राजा शेर है। मैं नहीं हूँ।” हाथी ने जवाब दिया।

    “कमाल है!” घड़ियाल ने मक्कारी से कहा, पहाड़ जैसा लंबा-चौड़ा जिस्म, बा-रौब चेहरा, क्या शेर आपसे भी ज़्यादा बड़ा है?”

    “नहीं, शेर मुझ से बड़ा नहीं है।” हाथी ने जवाब दिया, “जंगल का कोई भी जानवर मेरे जैसा नहीं है। मगर शेर चूँकि इंतिहाई फुरतीला और होशयार है, इसीलिए वो राजा बना दिया गया है।”

    “अजी छोड़ दिए।” घड़ियाल ने क़हक़हा लगा कर कहा, “बस रहने भी दीजिए इन बेकार बातों को। क्या आप कुछ कम फुर्तीले और होशियार हैं? जब आप सबसे बड़े हैं तो आपको ही राजा बनना चाहिए। मुझे देखिए, दरिया का सबसे ज़्यादा बड़ा जानवर हूँ। इसलिए दरिया का राजा मैं ही हूँ।”

    हाथी कुछ सोचने लगा। घड़ियाल ने जब देखा कि उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों का जादू हाथी पर चलने लगा तो उसने और आग लगाई। “भला शेर कहाँ और आप कहाँ। वो आपकी टाँगों के बराबर भी तो नहीं है। आपको उसे राजा कहते हुए शर्म नहीं आती?”

    “मगर मैं करूँ क्या?” हाथी ने कहा।

    “राजा बन जाइए।” घड़ियाल ने जवाब दिया।

    “राजा बनना आसान तो नहीं।” हाथी ने कहा, “जंगल की सारी रिआया शेर से बहुत ही ज़्यादा ख़ुश है। फिर मुझे कौन राजा बनाएगा।

    घड़ियाल ने ज़रा देर सोच कर कहा, “बस रिआया को शेर से नाराज़ कर दो। इसकी हुकूमत कमज़ोर पड़ जाएगी। वो जंगल छोड़ कर भाग खड़ा होगा और आप के लिए मैदान साफ़ हो जाएगा।”

    हाथी ने सवाल किया, “रिआया को शेर से किस तरह नाराज़ करूँ?”

    “बहुत आसान है।” घड़ियाल ने जवाब दिया, “हर रोज़ दो-चार जानवरों को मार डालो। जानवर शेर से फ़र्याद करेंगे, मगर तुम अपना काम करते रहना और सब में धीरे-धीरे ये मशहूर कर देना कि शेर ख़ुद जानवरों को मार रहे हैं, समझे कुछ?”

    “बिलकुल समझ गया,” हाथी ने ख़ुशी से उछल कर कहा, “क्या तरकीब बताई है। मगर जब मैं राजा बन जाऊँगा तो आप को क्या दूँगा?”

    घड़ियाल बोला, “सिर्फ़ ये कि राजा तो तुम ही रहोगे मगर जंगल में सिक्का मेरा चलेगा और हाँ कभी-कभार कुछ जानवर मेरे लिए भेज दिया करना बस।”

    “बस इतनी सी बात।” बेवक़ूफ़ हाथी ने कहा और मक्कार घड़ियाल की बातों में कर उस दुनिया में अपने ही हाथों आग लगाने चला।

    घड़ियाल ने सोच रखा था कि जब जंगल में ख़ूब गड़-बड़ मच जाएगी तो वो जंगल में आग लगा देगा। जानवर आग से घबरा कर दरिया की तरफ़ आएँगे। उस वक़्त वो बे-बस होंगे। बस मैं जो चाहूँगा उनसे मनवा लूँगा।

    उसी दिन से जंगल में दो-एक जानवर हर रोज़ मरने लगे। सारे जंगल में खलबली मच गई। जानवरों ने शेर से फ़र्याद की शेर भी फ़िक्र में डूब गया। उस जंगल में शेर की हुकूमत में आज तक ऐसा कभी हुआ था।

    शेर ने जानवरों से कहा, “आप इत्मीनान रखें, मैं जल्द पता लगा कर उस बदमाश को सख़्त सज़ा दूँगा जो जानवरों का दुश्मन है।”

    दिन गुज़रते गए, मगर जानवरों का मारा जाना बंद हुआ। हाथी चुपके-चुपके जब भी मिलता जानवरों को मार डालता और सबसे कह देता, “अरे बेवकूफ़ो शेर ख़ुद ही तो जानवरों को मार डालता है। ज़ालिम ख़ुद राजा बना बैठा है और ज़ुल्म ढा रहा है।”

    जानवरों को हाथी की इस बात पर यक़ीन आने लगा। वो सोचने लगे कि ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता कि शेर के होते हुए कोई दूसरा जंगल में ऐसी हरकत करने की हिम्मत करे। ये ज़रूर शेर ही की बदमाशी है। इसको जंगल से बाहर निकाल देना चाहिए। वर्ना ये रफ़्ता-रफ़्ता हम सब को ख़त्म कर देगा।

    शेर को इन तमाम बातों की ख़बर थी वो ख़ुद उन दिनों बड़ा परेशान था। एक दिन वो एक गुफा के सामने सर झुकाए टहल रहा था कि उसे शोर-ओ-ग़ुल सुनाई दिया। उसने देखा। सारे जानवर चिल्लाते हुए चले रहे हैं।

    “क्या बात है?” शेर ने उनसे दर्याफ़्त किया।

    “बदमाश” जानवर एक साथ बोले, “बड़ा भोला बनता है। इतने बहुत से जानवरों को बे-क़ुसूर मार डाला। भाग जा यहाँ से वर्ना तेरी बोटियाँ नोच कर फेंक देंगे।

    “मगर मेरी बात तो सुनो। मुझे बताओ तो कि क्या हुआ है?” शेर ने ता'ज्जुब से पूछा मगर जानवरों ने जवाब देने की बजाय उस पर हमला कर दिया। शेर जान बचा कर भागा।

    जंगल में भाग दौड़ मची हुई थी। रिआया ग़ुस्से से पागल हो रही थी। राजा जंगल छोड़ कर भाग गया था। घड़ियाल ने सोचा मौक़ा अच्छा है और बस उसने जंगल में आग लगा दी।

    जंगल की आग चारों तरफ़ फैल गई। जानवर सारे के सारे घिर कर रह गए। आख़िर बाहर निकल कर जाएँ किस तरह। हर तरफ़ आग ही आग थी।

    हाथी सोच रहा था, “ये आग किसने लगाई है। अगर जंगल जल गया तो मैं राजा किस तरह बनूँगा?”

    इत्तिफ़ाक़ से जब घड़ियाल आग लगा रहा था तो वज़ीर-ए-आज़म हिरन, जो कि दूर-दराज़ के जंगलों का दौरा कर के वापिस रहा था, की नज़र उस पर पड़ गई।

    “घड़ियाल जंगल को आग लगा रहा है!” हिरन ता'ज्जुब से बड़बड़ाया। “ज़रूर जंगल में कुछ गड़बड़ है।” उसी वक़्त उसने शेर को जंगल से दूर बे-तहाशा भागते हुए देखा।

    “महाराज, महाराज।” हिरन ने राजा को आवाज़ दी। “ज़रा ठहरिए, ये सब क्या हो रहा है?”

    शेर ने कहा, “वज़ीर-ए-आज़म भागो, जानवरों ने हमारे ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी है।”

    “राजा साहब।” हिरन ने कहा, “इस वक़्त जानवरों को हमारी मदद की ज़रूरत है। वो आग में घिरे हुए हैं। मैंने अभी घड़ियाल को आग लगाते हुए देखा है।”

    “घड़ियाल को?” शेर ने चौंक कर कहा, “अच्छा, तो ये बात है। चलो वज़ीर-ए-आज़म जंगल में।”

    हिरन और शेर जलते हुए जंगल में कूद पड़े। जंगल के बीच सारे जानवर सहमे हुए खड़े थे। आग हर लम्हा उनके क़रीब आती जा रही थी और हाथी रो-रो कर सारे जानवरों को अस्ल बात बता रहा था। दर-अस्ल उसे अपनी नादानी पर अफ़सोस हो रहा था, क्योंकि अब उसे ख़ुद भी आग से बचने की कोई उम्मीद रह गई थी।

    शेर को देख कर हाथी गिड़-गिड़ाने लगा।

    “मुझे माफ़ कर दो महाराज। सारा क़ुसूर मेरा है। मुझे घड़ियाल ने बहका दिया था।”

    उसी वक़्त हिरन ने कहा, “ये रोने-धोने का वक़्त नहीं है हाथी मियाँ। जल्दी डैर पर जाओ और अपनी सूँड में पानी ला कर आग बुझाओ।”

    हाथी फ़ौरन दरिया पर गया। वहाँ घड़ियाल क़हक़हे लगा रहा था।

    “कहो हाथी मियाँ।” उसने कहा, “अब तो राजा बन ही गए।”

    “चुप बे मर्दूद!” हाथी ने गरज कर कहा, “वर्ना हड्डियाँ बराबर कर दूँगा।”

    हाथी दरिया में से पानी ले कर आग बुझाता रहा। आख़िर-कार आग बुझ गई और जानवरों ने इत्मीनान का साँस लिया। सबने शेर से माफ़ी माँगी। सबसे ज़्यादा शर्मिंदा हाथी था।

    शेर ने हाथी से कहा, “तुम्हारा क़ुसूर बहुत बड़ा है। मगर तुमने जंगल की आग बुझाई है, इस लिए हम तुम्हें माफ़ करते हैं। याद रखो, अगर अपने घर में ख़ुद ही आग लगाओगे तो ख़ुद भी जल कर मर जाओगे।”

    इसके बाद सबने वज़ीर-ए-आज़म को देखा जिनकी खाल जल कर स्याह पड़ चुकी थी।

    शेर ने कहा, “वज़ीर-ए-आज़म आप मुझे वापस बुला कर लाए। आप अपनी जान की पर्वा करते हुए अपने साथियों की ख़ातिर आग में कूद पड़े और आपका रंग जल कर काला हो गया। इसके इलावा आपने आग बुझाने की तरकीब हाथी को बताई। इन तमाम बातों के लिए मैं और जंगल के तमाम जानवर आपके एहसान-मंद हैं। आपने जो ये नेक काम किया है, इसके इवज़ आपका जिस्म एक ख़ुशबू से भर जाएगा जिसकी वजह से दुनिया वाले आपको क़द्र की निगाह से देखेंगे। मैं हालाँकि राजा हूँ मगर आपकी नेकी की बदौलत आपको सलाम करता हूँ।”

    उसी दिन से इस काले रंग के हिरन के पेट में से मुश्क निकलने लगा जो कि बड़ी ही क़ीमती चीज़ समझी जाती है।

    स्रोत:

    Sarita Shumara 84 May 1966 (Pg. 106)

      • प्रकाशक: विशवनाथ
      • प्रकाशन वर्ष: 1966

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