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रहम

MORE BYमोहम्मद ख़लील

    सर्दियों की ठिठुरती रात में हवा उसके चेहरे पर सूइयों की तरह चुभ रही थी। मौसम इतना सर्द था कि उसे अपना चेहरा बर्फ़ होता हुआ मा'लूम हुआ। रात के आठ बजे के क़रीब इशा की नमाज़ अदा करने के बाद वो तेज़-तेज़ क़दम उठाता हुआ घर को लौट रहा था। मस्जिद से पचास-साठ क़दम के फ़ासले पर दो-तीन गलियाँ छोड़ कर जैसे ही वो एक चौराहे पर पहुँचा उसने किसी के कराहने की निहायत मद्धम आवाज़ें सुनीं। वह्म जान कर उसने अपने सर को हल्का सा झटका दिया और रुकते क़दमों को दुबारा तेज़ कर दिया। लेकिन वो तीन-चार क़दम भी आगे रख पाया था कि कराहने की आवाज़ें दुबारा उसके कानों से टकराईं उन कराहों में रगों में जमा देने वाली सर्दी की वजह से कपकपाहट भी मौजूद थी। ये दर्दनाक आवाज़ें सुन कर उसका अपना जिस्म काँप उठा। उसे ऐसे महसूस हुआ कि जैसे कोई उसे मदद के लिए मिन्नत से बुला रहा हो। उसके क़दम वहीं रुक गए। कराहें उसे आगे जाने से रोक रही थीं और अपनी तरफ़ खींच रही थीं।

    उसी लम्हे उसे अपने गर्म-गर्म लिहाफ़ का ख़्याल आया और साथ ही उसे ऐसे लगा गोया उसे कोई अन-देखा ख़ौफ़ रोक रहा हो और कह रहा हो,

    “मियाँ ऐसी सर्दी में क्यों अपने बिस्तर की गर्मी और मीठी नींद का मज़ा बर्बाद करते हो? तुम्हें किसी की मदद करने की क्या ज़रूरत है? रह गई बात नेकी की तो इस बारे में भी तुम्हें परेशान होने की कोई हाजत नहीं है। तुम्हारी गुज़श्ता नमाज़ें और दिन-रात की रियाज़त तुम्हें काफ़ी हैं।”

    चुनाँचे उसने घर की तरफ़ जाने के लिए अपने पाँव को उठाना चाहा तो उसे महसूस हुआ कि वो आगे एक क़दम भी नहीं उठा सकेगा। सदियाँ गुज़र जाएँगी मगर वो यहीं खड़ा रहेगा। किसी अन-देखी, अनजानी क़ुव्वत ने उसे आगे जाने से रोक था।

    कराहने की आवाज़ मुसलसल रही थी। आख़िर कराहों की मज़बूत रस्सियों ने उसे जकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया।

    उसने सोचा...

    सब काम जन्नत के हुसूल और जहन्नुम से निजात के लिए थोड़ा ही किए जाते हैं। ख़ुदा की रज़ा के हुसूल का जज़्बा भी तो मौजूद होना चाहिए। अच्छे काम को सिर्फ़ अच्छा समझ कर ही किया जाए।

    उसने महसूस किया जैसे उसका बोझ किसी और ने उठा लिया हो। इसीलिए उसने ख़ुद को बहुत हल्का-फुलका महसूस किया। तब उसने आवाज़ की सिम्त में चलना शुरू कर दिया।

    दाएँ हाथ की गली में दस क़दम दूर नाली के साथ उसने बल्ब की रौशनी में तीन नन्हे और नाली के पानी में भीगे बिल्ली के बच्चों को देखा। वो साथ की टूटी हुई दीवार में ईंटों के साथ लगे सर्दी से काँप रहे थे।

    उसे उन बच्चों की इस हालत पर बहुत रहम आया। और उसने फ़ौरी तौर पर उन बच्चों की मदद करने का फ़ैसला किया, चुनाँचे उसने उन तीनों बच्चों को जो गंदे पानी में लिथड़े हुए थे उठाया और उस नई और गर्म चादर में लपेट लिया जो उसके अब्बा जान बड़े एहतिमाम से उसके लिए लाए थे। उसने उस वक़्त नई चादर की भी कोई परवा की। बिल्ली के बच्चे गर्म चादर में कर पुर-सुकून हो गए थे। वो ख़ुद ठिठुरता हुआ घर की जानिब तेज़-तेज़ क़दमों से चलने लगा।

    घर पहुँच कर उसने उन तीनों को आतिशदान के क़रीब बिठा दिया और प्यार से उनको देखने लगा। फिर कुछ सोच कर वो उठा और किचन से उनके लिए प्याले में दूध भर कर ले आया। उसने जैसे ही दूध उनके सामने रखा वो तीनों उसे जल्दी-जल्दी पीने लगे।

    जब वो बच्चे बिच-बिच कर के दूध पी रहे थे तो उसे ऐसे लगा जैसे कोई कह रहा हो,

    “रहम करो, अल्लाह रहम करने वालों को पसंद करता है।”

    स्रोत:

    फ़ैसला ख़ुद कीजिए (Pg. 45)

      • प्रकाशक: एजुकेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
      • प्रकाशन वर्ष: 2013

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