by नासिर अब्बास नय्यर
मीरा जी की नज़्म और नस्त्र के मुतालेआत
उस को इक शख़्स समझना तो मुनासिब ही नहीं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
उस को इक शख़्स समझना तो मुनासिब ही नहीं
यह किताब मशहूर उर्दू शायर मीरा जी की नज़्म और नस्त्र का एक जामे मुतालेआ है। नासिर अब्बास नय्यर की तसनीफ़ करदा यह किताब मीरा जी की अदबी खिदमात के मु्तलिफ़ पहलुओं का जायज़ा लेती है, जिसमें उनकी जदीदियत, तनक़ीदी नुक़्ता-ए-नज़र, तराजिम और "अजना के ग़ार" और "समंदर का बुलावा" जैसे मख़सूस कामों का गहराई से तज़िया शामिल है। मुसन्निफ़ एक ही अदीब पर मुकम्मल किताब लिखने के पीछे अपनी तरग़ीब पर भी ग़ौर करता है।
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