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बदन बाँधे हुए साँसों की रहदारी में रहते हैं

फ़रहत एहसास

बदन बाँधे हुए साँसों की रहदारी में रहते हैं

फ़रहत एहसास

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    बदन बाँधे हुए साँसों की रहदारी में रहते हैं

    कि हम हर दम कहीं जाने की तय्यारी में रहते हैं

    हों आँसू तो ये आँखें भली लगती नहीं हम को

    सो अक्सर आप अपनी ही दिल-आज़ारी में रहते हैं

    हमें मा'लूम है रौनक़ ये बाज़ारों की झूटी है

    मगर फिर भी फ़रेब-ए-हुस्न-ए-बाज़ारी में रहते हैं

    हम अहल-ए-'इश्क़ फिर अहल-ए-हवस से मात खा बैठे

    वज़ीफ़ा-ख़्वार बज़्म-ए-हुस्न-ए-दरबारी में रहते हैं

    हमारे दिल तो हैं मसरूफ़ सरकारें गिराने में

    बदन ता'मील-ए-अहकामात-ए-सरकारी में रहते हैं

    दबे हैं ख़ाक में कितने ही सूरज चाँद और तारे

    सो हम अपनी ज़मीं की आसमाँ-कारी में रहते हैं

    हमारी शा'इरी इक मुस्तक़िल होली का मौसम है

    हज़ारों रंग इस लफ़्ज़ों की पिचकारी में रहते हैं

    ‘जनाब-ए-फ़रहत-एहसास' अब शहरी हैं सहराई

    मुसलसल दरमियान-ए-ख़्वाब-ओ-बे-दारी में रहते हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : मोहब्बत कर के देखो ना (पृष्ठ 120)
    • रचनाकार : फ़रहत एहसास
    • प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2019)
    • संस्करण : First

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