हर एक शब यूँही देखेंगी सू-ए-दर आँखें
हर एक शब यूँही देखेंगी सू-ए-दर आँखें
तुझे गँवा के न सोएँगी उम्र-भर आँखें
तुलू-ए-सुब्ह से पहले ही बुझ न जाएँ कहीं
ये दश्त-ए-शब में सितारों की हम-सफ़र आँखें
सितम ये कम तो नहीं दिल गिरफ़्तगी के लिए
मैं शहर भर में अकेला इधर-उधर आँखें
शुमार उस की सख़ावत का क्या करें कि वो शख़्स
चराग़ बाँटता फिरता है छीन कर आँखें
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हुआ जब तो मुझ पे भेद खुला
कि पत्थरों को समझती रहीं गुहर आँखें
मैं अपने अश्क सँभालूँगा कब तलक 'मोहसिन'
ज़माना संग-ब-कफ़ है तो शीशागर आँखें
- पुस्तक : Urdu Adab (पृष्ठ 59)
- रचनाकार : Iqbal Hussain
- प्रकाशन : Iqbal Hussain Publishers (Jan, Feb. Mar 1996)
- संस्करण : Jan, Feb. Mar 1996
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