Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

रूह पर जिस्म कोई बार न समझा जाए

तरकश प्रदीप

रूह पर जिस्म कोई बार न समझा जाए

तरकश प्रदीप

MORE BYतरकश प्रदीप

    रूह पर जिस्म कोई बार समझा जाए

    ये हवस है सो इसे प्यार समझा जाए

    कोई ख़्वाबों में भी खोया हुआ हो सकता है

    हर खुली आँख को बेदार समझा जाए

    कितनी बातें हमें समझाई गई होती हैं

    जैसे दीवार को दीवार समझा जाए

    जब हिदायत नहीं मिलती तिरी जानिब से मुझे

    मुझ अदाकार से किरदार समझा जाए

    कितने परवाने बचाता हूँ बुझा कर मैं शम'

    मुझ को ज़ुल्मत का तरफ़-दार समझा जाए

    मैं समझने से नहीं रोक रहा हूँ लेकिन

    ख़ुद को इतना भी समझदार समझा जाए

    स्रोत :
    • पुस्तक : उदास लोगों का होना बहुत ज़रूरी है (पृष्ठ 89)
    • रचनाकार : तर्कश प्रदीप
    • प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2023)
    • संस्करण : 2nd

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here

    बोलिए