तुहमत-ए-'इश्क़ पर नाज़ हम ने किया ये तो तमग़ा है हम 'आशिक़ों के लिए

तुहमत-ए-'इश्क़ पर नाज़ हम ने किया ये तो तमग़ा है हम 'आशिक़ों के लिए
अर्शी मालिक
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तुहमत-ए-'इश्क़ पर नाज़ हम ने किया ये तो तमग़ा है हम 'आशिक़ों के लिए
सर बचाया नहीं बारिश-ए-संग से आइने वक़्फ़ हैं पत्थरों के लिए
अहल-ए-दिल के अदब की निशानी है ये बे-अदब से भी सब्र-ओ-तहम्मुल करें
बे-रुख़ी और र'ऊनत यहाँ जुर्म है ज़ाब्ते और हैं दिल-जलों के लिए
मैं हूँ ताँबा अगर तू करे कीमिया ये तिरा फ़ज़्ल है मेरे रब्ब-उल-वरा
मुँह ख़ज़ानों के तेरे हमेशा खुले मेरे जैसे तही-दामनों के लिए
जिस जगह बोलना फ़र्ज़ था उस जगह मैं ने जुर्म-ए-ख़मोशी किया बारहा
जो थे मंसूर वो रौनक़-ए-दार हैं क्या है इरशाद हम बुज़दिलों के लिए
ये गुज़ारिश है ऐ मेरे चारा-गराँ अपने नुस्ख़े में लिख एक हर्फ़-ए-दु'आ
हाथ है मेरे मालिक का दस्त-ए-शिफ़ा दिल के रिसते हुए आबलों के लिए
हम ज़मीं की कशिश में थे जकड़े हुए ख़ुल्द को छोड़ कर इस जगह आ बसे
नफ़रतें बुग़्ज़-ओ-कीने यहाँ 'आम हैं ये ज़मीं वक़्फ़ है पस्तियों के लिए
वक़्त के हाथ से जो भी चरके लगे राएगाँ कब गए शा'इरी में ढले
ये अमानत है महफ़ूज़ औराक़ में आने वाले नए मौसमों के लिए
बहते पानी पे पाबंदियाँ मत लगा फ़िक्र के ताएरों पर न पहरे बिठा
कोई रस्ता तो रहने दे ज़ालिम खुला मेरे जज़्बों की जौलानियों के लिए
'उम्र-ए-रफ़्ता को देखा तो धचका लगा चंद बोसीदा बे-रूह अबवाब हैं
वो भी सीलन-ज़दा और दीमक लगे गोया रक्खे हैं आतिश-कदों के लिए
सारी रस्मों रिवाजों की बख़िया-गरी एक झटका लगा तो उधड़ जाएगी
हम को 'अर्शी' लिबास-ए-जुनूँ चाहिए जो बना है हमीं मनचलों के लिए
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