मर्द-ए-मुसलमाँ जदीद
इस वक़्त है मोमिन की नई शान नई आन
किरदार में गुफ़्तार में शैतान है शैतान
बे-कारी रिया-कारी जहाँ-दारी-ओ-जबरूत
इन चार 'अनासिर का मुरक्कब है मुसलमान
हम-साया-ए-इबलीस-ए-ल’ईं लाल-बुझक्कड़
जब चाहे बदल देता है ये मा'नी-ए-क़ुरआन
इस राज़ को अब भूल गया है ये मछन्दर
क्या चीज़ है इंसाँ के लिए क़ुव्वत-ए-ईमान
क़ुदरत के मक़ासिद के ख़िलाफ़ इस के इरादे
दुनिया में परेशान है 'उक़्बा में पशेमान
जिस से कि धड़क जाए ज़माना वो कड़क बम
शैतानों के दिल जिस से दहल जाएँ वो तूफ़ान
हर क़ौल-ओ-'अमल इस का है क़ुरआन मुख़ालिफ़
औरों को सुनाता है ये अल्लाह का फ़रमान
अपनों से हर इक जंग में बन जाता है ग़ाज़ी
ग़ैरों को फ़क़त देख के हो जाता है बे-जान
रटता है कि दुनिया पे रही मेरी हुकूमत
सोचा न कभी कैसे बना जाता है सुलतान
सब क़ा’र-ए-मुज़िल्लत में गिरे जाते हैं धड़ धड़
वो शैख़ हों सय्यद हों कि मिर्ज़ा हों कि अफ़्ग़ान
मज़हब से शुजा'अत से क़यादत से है नफ़रत
ये बात अगर सच है तो अल्लाह निगहबान
लिखता है तिरे कार-ए-सियह-ताब को 'असरार'
ले अब तिरे किरदार की ये भी हुई पहचान
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