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आज़ार देखे क्या क्या इन पलकों से अटक कर

मीर तक़ी मीर

आज़ार देखे क्या क्या इन पलकों से अटक कर

मीर तक़ी मीर

MORE BYमीर तक़ी मीर

    आज़ार देखे क्या क्या इन पलकों से अटक कर

    जी ले गए ये काँटे दिल में खटक खटक कर

    सर्व-ओ-तदर्व दोनों फिर आप में आए

    गुलज़ार में चला था वो शोख़ टुक लटक कर

    कब आँख खोल देखा तेरे तईं सिरहाने

    नाचार मर गए हम सर को पटक पटक कर

    हासिल ब-जुज़ कुदूरत इस ख़ाक-दाँ से क्या है

    ख़ुश वो कि उठ गए हैं दामाँ झटक झटक कर

    ये मुश्त-ए-ख़ाक या'नी इंसान ही है रू-कश

    वर्ना उठाई किन ने इस आसमाँ की टक्कर

    दिल काम चाहता है अब उस के गेसुओं से

    वाँ मर गए हैं कितने बरसों अटक अटक कर

    टुक मुँह से उस के दी-शब बुर्क़ा’ सरक गया था

    जाती रही नज़र से महताब सी छिटक कर

    धौला चुके थे मिल कर कल लौंडे मय-कदे के

    पुर-सरगिराँ हो वा'इज़ जाता रहा सटक कर

    कल रक़्स-ए-शैख़ मुतलक़ दिल को लगा मेरे

    आया वो हीज़-ए-शर’ई कितना मटक मटक कर

    मंज़िल की 'मीर' उस की कब राह तुझ से निकले

    याँ ख़िज़्र से हज़ारों मर मर गए भटक कर

    स्रोत :
    • पुस्तक : मीरियात - दीवान नंo- 1, ग़ज़ल नंo- 0227

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