आसी रिज़वी के शेर
मर्तबे में 'मीर' ओ 'मोमिन' से है हर कोई बुलंद
इन में हर बे-बहर ग़ालिब से बड़ा फ़नकार है
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नस्र अब्बा नज़्म अमाँ दोनों को इंकार है
ये जो नसरी नज़्म है ये किस की पैदा-वार है
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दाद सिर्फ़ अपनों को देते हैं गिरोह-अंदर-गिरोह
उन के टोले से जो बाहर हो गया मुरदार है
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